हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया कि वो और केंद्र सरकार गिरती अर्थव्यवस्था को संभाल लेंगे। तभी सभी बुद्धिजीवियों के दिमाग की घंटी बजी और उन्होंने सोचा और कुछ ने तो पूछा भी कि कैसे? अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए पैसे की जरूरत है, और वही तो हमारे पास नहीं है। लोगों ने कहा कि देश अगर आर्थिक मंदी की तरफ जा रहा है तो लिक्विडिटी की कमी के कारण जा रहा है और सरकार को अगर अपने बजट के वादों को पूरा करना है तो उसके खजाने में पैसा कहां से आ रहा है या फिर कहां से आने वाला है? यानी कि सरकार के सामने सबसे बड़ा संकट जो नजर आ रहा था वो था कि पैसा कहां है? लेकिन कौन जानता था कि मोदी जी तो 4 कदम आगे निकलेंगे उन्होंने तो RBI को पहले ही अपने पाले में कर लिया था, जैसे नोटबंदी में किया था बिलकुल वैसे ही। आरबीआई ने एक बार फिर से आंखों पर पट्टी बांध ली और सरकार के सिरदर्द को कम करने के लिए बहुत बड़ी मदद कर दी है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सेंट्रल बोर्ड ने सोमवार को 1,76,051 करोड़ रुपये केंद्र में बैठी मोदी सरकार को ट्रांसफर करने का फैसला कर लिया है। इसमें 1,23,414 करोड़ रुपये वित्त वर्ष 2018-19 का सरप्लस और 52,637 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान शामिल है। इसकी सिफारिश संशोधित आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क में की गई है, जिसे सेंट्रल बोर्ड की बैठक में सोमवार को स्वीकार किया गया था।
आरबीआई ने सरकार की सलाह से सेंट्रल बैंक के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था। ये कमेटी आरबीआई के पूर्व गर्वनर बिमल जालान की अध्यक्षता में बनाई गई थी। इस कमेटी में पूर्व डिप्टी गर्वनर राकेश मोहन जैसे लोग भी शामिल थे। इस कमेटी ने आरबीआई की बैलेंस शीट को मैनेज करने के लिए नए फॉर्मूले की सिफारिश की थी। इस कमेटी ने समीक्षा में इस बात पर भी चर्चा की कि आरबीआई की बैलेंसशीट का हर साल कितना पैसा सरकार को जा सकता है, उसका एक नया फॉर्मूला बना दिया जाए। इस सिफारिश को आज सरकार ने पूरी तरह से स्वीकार कर लिया है। कमेटी की सिफारिश पर ही ये तय कि गया है कि इस साल आरबीआई 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये केंद्र सरकार को ट्रांसफर करेगी।
अब तक सरकार को आरबीआई की ओर से डिविडेंड के तौर पर 60-65 हजार करोड़ रुपये दिए जाते थे। इसे अब बढ़ा दिया गया है और अब ये रकम 1 लाख 23 हजार करोड़ रुपये कर दी गई है। एक तरीके से इसमें दोगुनी बढ़ोतरी की गई है। नए फॉर्मूले के तहत करीबन 52-53 हजार करोड़ रुपये का एक्सेस सरप्लस पाया गया है, जिसे कमेटी ने सरकार को ट्रांसफर करने के लिए कहा है।
सरकार ने इस साल के बजट में डिविडेंड और रिजर्व कैपिटल के तौर पर सिर्फ 90 हजार करोड़ का प्रावधान किया था। लेकिन अब आरबीआई को इस साल 58 हजार करोड़ रुपये की एक एडिशनल इनकम हो गई है। सरकार इस साल फिस्कल डेफिसिट का जो टारगेट बनाकर चली है, उसमें सरकार की कोशिश है कि वो इसका उल्लंघन ना करे और ये 3.3-3.4 परसेंट ऑफ जीडीपी रहे, तो शायद अब इसको मैनेज करने में सरकार को आसानी हो जाएगी। मंदी की खबरों के बीच में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये ऐलान किया था कि लिक्विडिटी की कोई कमी नहीं होगी तो सरकार बैंकों और नेशनल हाउसिंग बैंक दोनों को करीबन 90 हजार करोड़ का फंड मुहैया कराने की कोशिश करेंगे। अब आरबीआई के ऐलान के बाद आप ये समझ सकते हैं कि ये पैसा सरकार के पास आ गया है और इशका सोर्स क्या था।
अभी तक आरबीआई का मेनडेट था कि वो अपने पास रिजर्व कैपिटल 12 परसेंट रखे। लेकिन अब कह दिया गया है कि आरबीआई इसे घटाकर 5.5 से 6.5 परसेंट के बीच में रखे। अगर मौजूदा दौर की बात करें तो आरबीआई के पास टोटल बैलेंस शीट का 6.8 परसेंट पैसा ही रिजर्व था। कमेटी की सिफारिश के बाद आरबीआई ने सुझाए गए 5.5 से 6.5 परसेंट के बैंड का निचला हिस्सा पकड़ा है। अगर आरबीआई को अपनी ऑटोनॉमी दिखानी होती या अपने बैलेंसशीट की ज्यादा चिंता होती तो वो कह सकती थी कि वो इसे 6.5 परसेंट रखेंगे। अगर ऐसा होता तो सरकार को थोड़े कम पैसे जाते।
सरकार को इस वक्त पैसों की बहुत जरूरत थी। ऐसे में आरबीआई के इस फैसले से सरकार को बहुत बड़ी राहत मिल गई है। सरकार के हाथों में थोड़े पैसे आ गए हैं। वित्त मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बात और कही थी कि एमएसएमई के जीएसटी रिफंड के जो पैसे बाकी हैं, उसे भी सरकार जल्दी लौटाएगी। इससे पता चलता है कि सरकार के पास देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। प्राइवेट सेक्टर का छोड़िए, पब्लिक सेक्टर के जो सरकार के अपने प्रोजेक्ट हैं, उसमें देने के लिए भी पैसे समय पर नहीं जा पा रहे थे। ऐसे में आरबीआई से पैसा मिलने से सरकार को राहत जरूर मिलेगी।
जीडीपी में लगातार गिरावट हो रही है, बेरोजगारी सबसे उच्चतम स्तर पर है, रुपया लगातार गिरता ही जा रहा है। छोटे कारोबार बंद हो रहे हैं, इसकी परवाह किए बिना मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक से पैसे लेने का जो निर्णय किया है वो बहुत ही बचकाना है और अगर इसके लिए मैं कहूं कि यहां से देश के लिए एक आर्थिक त्रासदी का रास्ता खुल गया है, तो वो गलत नहीं होगा। ये दुनिया में एकमात्र ऐसा उदाहरण होगा जहां पर कोई सरकार अपनी आर्थिक गलतियों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक की तिजोरी को खाली करने पर उतर आई है। मोदी सरकार लंबे वक्त से इस कोशिस में लगी थी लेकिन पहले के गवर्नर इश फैसले पर सरकार के खिलाफ थे, पहले राजन फिर उर्जित पटेल दोनों ने इसका कड़ा विरोध किया। पटेल ने इस्तीफा दिया और आरोप लगाया कि सरकार के गलत इंतजाम की वजह से आज देश आर्थिक संकट में हैं।
आरबीआई के इस फैसले के बाद कहा जा सकता है कि आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच जो मतभेद थे वो खत्म हो गए है। लेकिन एक चर्चा अभी भी होगी कि क्या भारत का सेंट्रल बैंकर पहले की तरह से ऑटोनॉमस है। इसका जवाब पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन ने इस तरह से देने की कोशिश की है कि इस फैसले को इस संदर्भ में ना देखा जाए, कि आरबीआई ने सरकार को बंपर गिफ्ट दे दिया है या सरकार की लॉटरी लग गई है। दरअसल, आरबीआई की बैलेंसशीट सरकार के पॉलिसी मैंडेट का नतीजा है। इसलिए नए फॉर्मूले के तहत आरबीआई के पास जो एक्स्ट्रा पैसा है, वो सरकार को क्यों ना ट्रांसफर हो। इसके साथ में इस बात का पूरा ध्यान रखा जाए कि देश की जो फाइनेंशियल स्टेबिलिटी है, उसके लिए उसके पास पर्याप्त पैसा हो, जिससे जब जरूरत पड़े तो वो बाजार में दखल कर सके और बाजार और इकनॉमी को संभाल सके। कुछ इसी तरह के तर्क सरकार की तरफ से भी दिए जा सकते हैं। लेकिन अर्थशास्त्री आने वाले समय में इस पर बहस करेंगे कि क्या आरबीआई और सरकार के बीच में जो ऑटोनॉमी वाला रिश्ता था, वो बदलकर सब-ऑर्डिनेट का रिश्ता बन गया है?
हालांकि आपको बता दें कि केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच रिजर्व को लेकर मतभेद हो चुके हैं। इसी तनातनी के बीच ही रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया था।