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हर किसी के बस की बात नहीं गुच्छी की सब्जी खाना, कीमत जानकर रह जाएंगे दंग

अच्छी सेहत के लिए सब्जी खानी चाहिए। हरी-पत्तेदार सब्जियां बड़ी लाभकारी होती हैं। सब्जियों के दाम कभी-कभी बढ़ भी जाते हैं। कई बार कुछ सब्जियों के दाम 200 रुपये किलो तक भी पहुंच जाते हैं। फिर भी लोग इन सब्जियों को खा लेते हैं। ऐसे में यदि कोई सब्जी हजार रुपए किलो की मिले तो क्या आप उसे खाएंगे? जी हां, गुच्छी की सब्जी ऐसी ही है। सिर्फ भारत में मिलती है। कीमत इसकी आपको हैरान कर देगी। संभव नहीं है इसे एक आम आदमी के लिए खरीद पाना।

जंगली मशरूम भी कहते हैं

इस सब्जी को गुच्छी के नाम से जानते हैं। इसे आप जंगली मशरूम कह सकते हैं। इसी की प्रजाति से यह आता है। हिमालय के इलाकों में यह मिलता है। बड़ी ही दुर्लभ सब्जियों में इसकी गिनती होती है। बहुत से देश इस सब्जी की मांग करते हैं। भारत से इस सब्जी का निर्यात भी होता है।

दाम तो ऐसा है कि जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। जी हां 25 से 30 हजार रुपये किलो यह सब्जी बाजार में बिकती है।

कई नाम हैं इसके

गुच्ची को कई नामों से भी जाना जाता है। इसे छतरी भी बुलाते हैं। डुंघरू के नाम से भी यह जाना जाता है। टटमोर भी इसे बुलाते हैं। इसका न सिर पता चलता है। न ही इसका पैर दिखता है। और औषधीय गुण तो इसमें भरे पड़े हैं।

यहां उगती है सब्जी

हिमाचल प्रदेश में यह सब्जी मिलती है। हालांकि, इसे ढूंढना बहुत कठिन होता है। शिमला में भी यह मिल जाता है। जंगलों में इसे ढूंढने के लिए जाना पड़ता है। घनी झाड़ियों के बीच यह सब्जी पैदा होती है। घास के बीच यह मिलती है। पैनी नजरों से इसे ढूंढना पड़ता है।

ढूंढने निकल पड़ते हैं

ढूंढने में बड़ी मेहनत भी लगती है। लोग इन जंगलों में चले जाते हैं। गुच्छी को ढूंढते हैं। ज्यादा से ज्यादा मात्रा में इसे पाने की उनकी कोशिश होती है। फरवरी माह से थोड़ा पहले गुच्छी की सब्जी मिलती है। ग्रामीणों के बीच होड़ लगी रहती है इसे ज्यादा-से-ज्यादा ढूंढने की। आखिर यह मुनाफे का सौदा होता है।

रहता है इंतजार

जितनी ज्यादा गुच्छी मिलेगी, बेचकर फायदा उतना मिलेगा। इसलिए तो इंतजार रहता है इसका बड़ी बेसब्री से। सीजन आता नहीं है कि लोग दौड़ पड़ते हैं। खासकर बेरोजगार लोग तो और इसे ढूंढने आते हैं। बढ़िया मुनाफा उन्हें मिल जाता है।

गुच्छी निकलती कैसे है? इस सवाल का जवाब हिमाचल के स्थानीय लोग देते हैं। वे बताते हैं कि बिजली की गड़गड़ाहट और चमक से यह बर्फ से निकल जाती है। ज्यादातर जाड़े के दिनों में यह खाई जाती है।

1980 का वो भंडारा

कहा जाता है कि 1980 के सिंहस्थ कुंभ मेले में एक भंडारा चला था। एक हफ्ता तक यह चला था। जूना अखाड़ा के एक महंत ने चलाया था। इसमें गुच्छी की सब्जी खिलाई गई थी। यह 45 लाख रुपये की थी।

गुच्छी का वैज्ञानिक नाम

चाऊ के नाम से भी हिमाचल में इसे जानते हैं। वैज्ञानिक नाम इसका मारकुला एस्क्यूलेंटा है। इसे उगने के लिए 18 से 21 डिग्री तापमान की जरूरत होती है। औषधीय गुणों की इसमें भरमार है। दिल के लिए बड़ा फायदेमंद है।

सेहत के लिए फायदेमंद

गठिया में इसे खाना लाभकारी होता है। स्तन कैंसर में भी फायदा पहुंचाता है। यह सूजन को घटा देता है। विटामिन बी और डी खासकर इसमें मौजूद होते हैं। कई तरह की दवाइयां इससे बनाई जाती हैं। पेंसिलिंन जैसी दवाओं में भी यह इस्तेमाल होता है।

विदेशों से मांग

विदेशों में गुच्छी की सब्जी की अच्छी खासी मांग है। इटली से इसकी मांग आती है। अमेरिका और स्विट्जरलैंड से भी लोग इसे मंगाते हैं। फ्रांस से भी इसकी मांग भारत में आती है।बारिश के दौरान इसे जमा करते हैं। फिर इसे सुखा लिया जाता है। इसके बाद यह इस्तेमाल में आता है। बड़े होटल वाले इसे खरीद लेते हैं। अपने यहां वे इसे भोजन में पड़ोसते हैं।

पीएम मोदी भी खाते हैं

पाकिस्तान में भी गुच्छे की सब्जी उगती है। यहां हिंदूकुश पहाड़ों पर यह उगती है। एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसके बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि गुच्छी की सब्जी हफ्ते में एक बार वे खा ही लेते हैं। सेहत इससे अच्छी बनी रहती है।