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गुजरात में मरीजों का हाल देख आप भी कहेंगे ये मॉडल देश को नहीं चाहिये

Logic Taranjeet 14 April 2021
गुजरात में मरीजों का हाल देख आप भी कहेंगे ये मॉडल देश को नहीं चाहिये

गुजरात मॉडल का प्रोपेगैंडा देश भर में ऐसा फैलाया गया कि आज लोगों के मन में विकास का दूसरा नाम गुजरात बन गया। यहां तक की गुजरात के लोग भी गुजरात मॉडल के झांसे में रहे हैं। पिछले साल भी और इस साल भी जब वहां के लोग अस्पतालों के बार दर-दर भटक रहे हैं तब उन्हें वो गुजरात मॉडल दिखाई नहीं दे रहा है। अपनी झुंझलाहट के बीच वो गुजरात मॉडल पर तंज करना नहीं भूलते हैं।

झूठ के इतने लंबे दौर में रहने के बाद आसान नहीं होता है उससे बाहर आना, क्योंकि सिर्फ झूठ ही नहीं है, सांप्रदायिकता के जरिए इतना जहर भरा गया है कि किसी सामान्य के लिए उससे बाहर आना असंभव होगा। पिछले साल गुजरात के अस्पतालों के बाहर जो हाहाकर मचा था उसकी खबरें देश को कम पता चलीं। इस साल भी हाहाकार मचा है और जिस राज्य की जनता ने नरेंद्र मोदी को इतना प्यार किया उस राज्य की जनता बिलख रही है और प्रधानमंत्री बंगाल में गुजरात मॉडल बेच रहे हैं। वहां के अस्पतालों से एक साल से इसी तरह की खबरें आ रही हैं लेकिन लोगों को सुधार के नाम पर हाहाकार मिल रहा है।

GMERS से गायब हो गए मरीज

दरअसल हकीकत सामने आई, जब GMERS अस्पताल से 52 साल के अश्विन कनोजिया लापता हो गए। परिवार के लोगों ने अस्पताल में काफी खोजा लेकिन जब नहीं मिले तो पुलिस के पास मामला पहुंचा। इसके बाद स्टाफ, पुलिस और परिवार के लोगों ने अस्पताल में खोजना शुरू किया। बाद में अश्विन बाथरुम में मृत मिले। उनके शव से बदबू आ रही थी, आप कल्पना करें कि अस्पताल के एक बाथरुम में एक लाश रखी है और किसी को पता तक नहीं चलता है। अस्पताल में इतने बाथरुम तो होते नहीं है। एक बाथरुम एक घंटे बंद रह जाए तो वहां भीड़ लग जाती है।

सरकारी अस्पताल GMERS SOLA MEDICAL COLLEGE AND HOSPITAL में स्टाफ नहीं है और ये अस्पताल 6 नर्सों के भरोसे चल रहा है। इसके चार आईसीयू वार्ड में 64 बिस्तर हैं और आधे भर गए हैं। एक नर्स के जिम्मे 6-7 मरीज है। जरा सी भी देरी का मतलब जान का खतरा है। कायदे से एक मरीज़ पर एक नर्स हो, लेकिन 6 मरीजों पर एक नर्स है। कोविड को 1 साल से ज्यादा हो गया है और ऐसे में अगर कोई सरकार अभी भी इंतजाम नहीं कर पाई है, तो ये कैसा मॉडल है। लेकिन जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह जब गुजरात की बात करते हैं तो लगता है कि गुजरात अगला अमेरिका है।

भावनगर में फर्श पर पड़े हैं मरीज

इतना ही नहीं भावनगर के अस्पताल का वीडियो भी आपने देखा होगा। कोरोना के मरीजों को फर्श पर लिटा रखा है। मरीजों का इलाज स्ट्रेचर पर हो रहा है, जो व्हील चेयर पर आया है उसी पर इलाज हो रहा है। ये रिपोर्ट किसी भी गोदी मीडिया के प्राइम टाइम पर नहीं चली। अस्पतालों में हाल ये है कि मरीजों को ठीक ढंग से पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है।

गुजरात के अखबार और चैनल ऐसी खबरों से भरे हुए हैं। वहां भी गोदी मीडिया है, लेकिन वहां के कई पत्रकार जोखिम उठा रहे हैं और आम जनता के साथ जो हो रहा है उसे छाप रहे हैं। हालांकि नेशनल मीडिया इन सबसे काफी दूर है। उसका अपना अलग ट्रैक चल रहा है। एक साल पहले भी जब गुजरात के अस्पतालों का ये हाल हुआ था, तब भी सिर्फ लीपापोती कर दी गई थी। एक साल में भी सरकार कोई स्थायी बंदोबस्त करने में सफल नहीं हुई है।

हालांकि सरकार को पता है कि जब वोट धर्म के नाम पर फैलाए जहर से मिलना है तो क्यों अस्पताल को ठीक करने की मेहनत करें। 3-4 दिन में एक बार सांप्रदायिक भाषण दे दो, आईटी सेल के द्वारा फेक मैसेज फैलाओ, गोदी मीडिया से चिल्लम चिल्ली वाली डिबेट कराओ और लोगों को छोड़ दो अस्पताल के बाहर मरने के लिए। यही तो है गुजरात मॉडल जो पूरे देश में फैलाया जा रहा है।

संस्कार के लिए पेट्रोल-डीजल-केरोसीन का किया जा रहा है इस्तेमाल

गुजरात के सूरत में तो मॉडल का असल रंग दिख रहा है। वहां पर कोरोना महामारी से हालात इतने बिगड़ रहे हैं कि श्मशान घाट में चिताओं के अंतिम संस्कार के लिए लाइन लग रही है। सूरत में कई श्मशान घाट कोरोना के कारण मरने वाले लोगों की चिताओं से भरे हुए हैं और कई जगहों पर पैसे लेकर जल्दी अंतिम संस्कार किया जा रहा है। इतना ही नहीं सूरत के ही रामनाथ घेला श्मशान घाट में चिताओं को चलाने के लिए देसी घी की जगह पेट्रोल डीजल और केरोसीन का इस्तेमाल किए जाने की भी खबरें सामने आई है।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.