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रहस्यों का खजाना है ‘रानी की बावड़ी’, बीमारियों को छूमंतर कर देता है कुएं का पानी

रहस्यों का खजाना है 'रानी की बावड़ी', बीमारियों को छूमंतर कर देता है कुएं का पानी

देश हमारा अद्भुत है। यहां की चीजें भी अद्भुत हैं। हमारे देश में एक से बढ़कर एक चीजें देखने के लिए मिलती हैं। ये ऐतिहासिक चीजें हैं। इन्हें वर्षों पहले बनाया गया था। आज ये धरोहर बन चुकी हैं।।केवल देश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए।

भारतीय नोट पर मिली जगह

इसी तरह की एक धरोहर गुजरात में स्थित है। नाम है इसका रानी की वाव। इसे रानी की बावड़ी भी कहते हैं। यह गुजरात के पाटण में स्थित है। इसे रानी की बावड़ी इसलिए कहते हैं, क्योंकि यह सीढ़ीदार कुआं है। वर्ष 2018 में इसे भारतीय नोट पर भी जगह मिली थी। जी हां, भारतीय रिजर्व बैंक ने यह कदम उठाया था।  100 रुपये के नोट पर इसका चित्र छापा गया था।

बना यूनेस्को की धरोहर

यही नहीं, यूनेस्को की भी यह धरोहर बन चुका है। 22 जून, 2014 को यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत स्थल में जगह दी थी। एक वक्त था जब पानी के लिए कुएं खुदवाए जाते थे। राजा-महाराजा अपने राज्य में खूब कुएं खुदवाते थे। पानी की तब बड़ी कमी रहती थी। इसी कमी को दूर करने के लिए वे ऐसा करते थे। पूरे देश में न जाने कितने कुएं हैं, जो सैकड़ों वर्ष पुराने हैं। कई कुएं की उम्र तो हजार साल से भी ज्यादा है। रानी की बावड़ी भी कम पुरानी नहीं है। यह 900 साल से भी अधिक पुरानी हो चुकी है।

वास्तुकला का नायाब नमूना

हमारे देश में कई ऐतिहासिक इमारतें अपनी खासियत के लिए प्रसिद्ध हैं। निश्चित तौर पर रानी की बावड़ी को भी इनमें से एक कहा जा सकता है। भले ही यह कुआं है, मगर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। सरस्वती नदी के किनारे इसका निर्माण हुआ था। यह 11वीं सदी में बनाया गया था। सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में यह बना था।

उनकी पत्नी रानी उदयमति ने 1063 ईस्वी में इसका निर्माण करवाया था। जूनागढ़ के चूड़ासमा के राजा रा’ खेंगार की बेटी थीं रानी उदयमति। भीमदेव प्रथम मुलाराजा के बेटे थे। हालांकि इसका निर्माण वे पूरा नहीं करवा सकी थीं। बाद में करणदेव प्रथम ने इसे पूरा करवाया था।

भगवान विष्णु के अवतारों की नक्काशी

रानी की बावड़ी वास्तव में अद्भुत है। इसकी लंबाई 64 मीटर की है। यही नहीं इसकी चौड़ाई भी 20 मीटर की और गहराई 27 मीटर की है। यह अपने आप में बहुत ही अनोखा है। इसकी दीवार और स्तंभ कलाकृतियों से सजे हुए हैं। मूर्तियों की शानदार नक्काशी भी इन पर देखने के लिए मिलती है। ये नक्काशियां भगवान विष्णु के अलग-अलग अवतारों को समर्पित हैं।

इनमें भगवान नरसिंह, भगवान राम, कल्कि, वामन और महिषासुरमर्दिनि आदि अवतार देखने के लिए मिलते हैं। इसे बनाने के लिए मारु गुर्जर आर्किटेक्चर स्टाइल को प्रयोग में लाया गया है। बहुत ही खूबसूरत तरीके से इसका इस्तेमाल किया गया है।

दुनिया की सबसे रहस्यमयी बावड़ी का इतिहास || Rani ki vav History in Hindi

दब गया था गाद में

सरस्वती नदी के किनारे होने की वजह से यह गाद में दब गया था। लगभग 7वीं शताब्दी तक यह दबा हुआ था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इसे ढूंढ निकालने का श्रेय जाता है। खोजे जाने के बाद इसकी साफ-सफाई करवाई गई थी। इसी के बाद से यह पर्यटन केंद्र के रूप में भी विकसित हो गया।

देखने लायक है मूर्तिकला

इसकी सीढ़ियों की कतारों की संख्या पहले सात हुआ करती थी। हालांकि, अब इनमें से दो विलुप्त हो गई हैं। रानी की बावड़ी में मूर्तिकला देखने लायक है। 500 से भी अधिक मूर्तिकला यहां दिख जाती हैं। इन्हें देख कर कोई भी अपने दांतो तले उंगली दबा सकता है।

30 किमी लंबी सुरंग

रानी की बावड़ी अनोखी है। 30 किलोमीटर लंबी एक रहस्यमई सुरंग भी इसमें मौजूद है। पाटण के सिद्धपुर में जाकर यह सुरंग निकलती है। यह सुरंग ऐसे ही नहीं बनाई गई थी। युद्ध के दौरान या फिर विषम परिस्थितियों में यह इस्तेमाल में आती थी। राजा और उसका परिवार इसे इस्तेमाल करता था। अब इसमें पत्थर भर गए हैं। कीचड़ भी भरे हुए हैं। इस वजह से यह फिलहाल बंद है।

औषधि से कम नहीं कुएं का पानी

यहां के पानी के बारे में भी एक मान्यता प्रचलित है। कहा जाता है कि इसमें नहाने से किसी तरह की बीमारी नहीं होती है। आयुर्वेदिक पौधे यहां लगे हुए हैं। मान्यताओं के मुताबिक ये औषधि के रूप में काम करते हैं।