कश्मीर घाटी अभी भी अशांत बनी हुई है। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी बार-बार यहां घुसपैठ की फिराक में रहते हैं। हाजी पीर पाक को लौटकर भारत ने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। हर दिन कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ हो रही है। आतंकवादी तो मार गिराए ही जा रहे हैं, लेकिन हमारे जवान भी शहीद हो रहे हैं।
हालांकि इतिहास इस बात का गवाह है कि इस घुसपैठ को एक वक्त बंद करना मुमकिन था। भारत ने 1965 के युद्ध में एक बड़ी भूल कर दी थी। पाकिस्तान के साथ इस युद्ध के दौरान एक बड़ी चूक भारत से हो गई। यदि वह भूल नहीं होती तो शायद आज इतने बड़े पैमाने पर घुसपैठ नहीं हो पाती।
भारत की वो बड़ी भूल
मेजर रंजीत दयाल 1965 की जंग के महानायक थे। इस युद्ध को जीतने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। एक ऐसी चीज भारत ने पाकिस्तान को लौटा दी थी जो उसे नहीं लौटानी चाहिए थी। रंजीत दयाल ने भी इसे भारत की एक बहुत बड़ी भूल करार दिया था।
भारत ने हाजी पीर पास को पाकिस्तान को लौटा दिया था। भारतीय सेना ने अद्भुत साहस और वीरता का प्रदर्शन करते हुए इसे जीता था। हाजी पीर पास को जीतने में भारत के कई सैनिकों घायल भी हुए थे। फिर भी इस हाजी पीर को पाकिस्तान को लौटा दिया गया।
आसान नहीं थी ये जीत
हाजी पीर को जीत पाना किसी भी सेना के लिए बहुत ही कठिन था। फिर भी भारत ने इस पर जीत दर्ज की थी। पंजाब रेजीमेंट में 1 पैरा बटालियन के मेजर रंजीत दयाल को इस जीत का नायक कहा जाता है। उन्होंने इस युद्ध में ऐसी वीरता दिखाई कि उन्हें इसके लिए देश के दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान महावीर चक्र देकर भी सम्मानित किया गया।
ऑपरेशन जिब्राल्टर
पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया गया था। पाकिस्तान ने बहुत ही गुप्त तरीके से अपने इस सैन्य अभियान को शुरू किया था। उसने कश्मीर घाटी में 35 हजार से भी अधिक घुसपैठियों को भेज दिया था। जिस जगह से इन्हें घुसपैठ करनी थी, वह जगह हाजी पीर थी।
भारत की जवाबी कार्रवाई
भारतीय सेना को जानकारी हो गई कि पाकिस्तान हाजी पीर के जरिए बड़ी तादाद में घुसपैठ कराने जा रहा है। उसने भी पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई का आगाज कर दिया। रंजीत दयाल ने भी हाजी पीर पर कब्जा करने के लिए कमान संभाल ली।
रात का वो कठिन वक्त
हाजी पीर पर कब्जा करने की इन्होंने ठान तो ली, लेकिन यह इतना भी आसान काम नहीं था। रात हो चुकी थी। रात का वक्त इस मिशन को अंजाम देने के लिए चुना गया था। मूसलाधार बारिश उस वक्त हो रही थी।
पीठ पर गोला-बारूद का बोझ रंजीत दयाल के जवानों ने उठा रखा था। करीब डेढ़ हजार फुट की ऊंचाई पर उन्हें चढ़ना था। रुकावटें तो रास्ते में बहुत सारी थीं, फिर भी मेजर रंजीत दयाल के बुलंद हौसले के आगे ये कुछ नहीं थीं।
हौंसला इसे कहते हैं
वीर जवान आगे बढ़ते जा रहे थे। युद्ध की रणनीति खराब मौसम को अच्छा मानती है। कहा जाता है कि खराब मौसम में दुश्मनों पर हमला बोलना फायदेमंद होता है। हालांकि, उस वक्त का मौसम कुछ ज्यादा ही खराब था। ऐसे में चढ़ाई करना बहुत ही कठिन था। रात में तो यह चढ़ाई नामुमकिन सी लग रही थी।
हमारे जवान हाजी पीर की चोटी पर सुबह से पहले नहीं पहुंचते तो पाकिस्तान की गोलियों से नहीं बचते। ऐसे में यह मिशन फेल हो जाता। यही कारण था कि वीर जवानों ने रात में ही चढ़ाई करने का निश्चय कर लिया।
बोल दिया हमला
मेजर रंजीत दयाल की यह टुकड़ी सुबह लगभग 4:30 बजे उरी-पूंछ हाईवे पर पहुंच गई। जैसे ही सूरज उगा वैसे ही हाजी पीर दर्रे पर भारत के वीर जवानों ने धावा बोल दिया। सेना की एक टुकड़ी फायरिंग करती रही, ताकि पाकिस्तानी सैनिक उलझे रहें। एक और टुकड़ी मेजर रंजीत दयाल की अगुवाई में आगे बढ़ी।
लहराने लगा तिरंगा
सामने से इस टुकड़ी ने पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला बोल दिया। पाकिस्तानी बिल्कुल भी नहीं समझ सके। भारतीय सैनिकों ने बस थोड़ी ही देर में इस पर कब्जा पा लिया। यहां हमारा तिरंगा लहराने लगा।
इन्होंने कर दिया वापस
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे। इन दोनों के बीच 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में समझौता हो गया। युद्ध समाप्त हो गया। भारत ने पाकिस्तान को इस समझौते के अंतर्गत हाजी पीर लौटा दिया। आज यदि हाजी पीर हमारे पास होता तो बात ही कुछ और होती। पाकिस्तानी घुसपैठ को रोक पाना आज इतना मुश्किल नहीं होता।