रामायण सिर्फ एक ग्रंथ नहीं है। रामायण एक शिक्षा देने वाली किताब भी है। रामायण कर्तव्यों का बोध कराता है। रामायण एक भाई का कर्तव्य बताता है। एक पत्नी का कर्तव्य बताता है। एक पिता का कर्तव्य बताता है। एक सेवक का कर्तव्य बताता है।
रामायण को महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है। रामायण में कई कहानियां पढ़ने के लिए मिलती हैं। कुछ कहानियां ऐसी भी हैं, जिनके बारे में कम लोग ही जानते हैं। हनुमान जी से भी संबंधित एक ऐसी ही कहानी है। पूरे रामायण में हनुमान जी के बारे में पढ़ने के लिए मिलता है। हनुमान जी श्री राम के सच्चे भक्त थे। वे उनके सच्चे सेवक भी थे।
इसलिए संकटमोचन कहलाए हनुमान
श्री राम हनुमान जी के बिना अपनी जीवन यात्रा की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। हनुमान जी ने श्रीराम को संकट से भी बचाया था। तभी तो हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा गया है। हनुमान जी के बारे में हर कोई जानता है कि उन्होंने हमेशा ब्रम्हचर्य का पालन किया। हनुमान जी ने श्री राम की बड़ी मदद की।
माता सीता की खोज में निकले हनुमान
रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था। वह माता सीता को अपने साथ लंका ले गया था। उसने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा था। राम सीता के अपहरण के बाद बहुत परेशान थे। वे सीता को ढूंढ रहे थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात सुग्रीव और हनुमान से हुई थी। हनुमान जी ने माता सीता को खोजना शुरू किया था। सीता को ढूंढने के लिए वे लंका भी गए थे। इस दौरान उन्हें समुद्र भी पार करना पड़ा था।
हनुमान जी ने जला डाली लंका
लंका पहुंचकर हनुमान जी माता सीता से मिले थे। माता-पिता को उन्होंने श्रीराम द्वारा दी गई एक अंगूठी भी दिखाई थी। इससे सीता को यकीन हो गया था कि श्री राम उन्हें लेने आ रहे हैं। हनुमान जी ने लंका में बड़ा उत्पात मचाया था। अंत में उन्हें पकड़कर रावण के दरबार में मेघनाद लेकर गया था। वहां हनुमान की पूंछ में रावण ने आग लगवा दी थी। इसके बाद लंका को हनुमान ने जला डाला था।
मछली के पेट में गया हनुमान जी का पसीना
वे समुद्र में अपनी पूंछ की आग बुझाने के लिए उतरे थे। उनका पसीना बहकर समुद्र में चला गया था। उनका पसीना एक मछली के पेट में चला गया। इससे यह मछली गर्भवती हो गई थी। उधर पाताल पर राज करने वाले अहिरावण के सैनिक इस मछली को पकड़कर ले गए। मछली का पेट काटा गया, तो इससे वानर के रूप में एक बच्चा निकला। यह हनुमान जी का पुत्र था। इसका नाम मकरध्वज रखा गया।
पाताल लोक का प्रहरी बना हनुमान जी का बेटा
अहिरावण ने मकरध्वज को पाताल लोक का प्रहरी बना दिया। उधर रावण के साथ युद्ध शुरू हो गया था। भयानक युद्ध चल रहा था। एक वक्त ऐसा आया, जब रावण बहुत परेशान हो गया था। अहिरावण उसका दूर का भाई था। आखिरकार रावण को अहिरावण से मदद मांगनी पड़ी थी। अहिरावण युद्ध भूमि में पहुंच गया था। अहिरावण ने राम और लक्ष्मण को बंदी बना लिया था। वह उन्हें लेकर पाताल लोक में चला गया था।
हनुमान जी और मकरध्वज की मुलाकात
श्री राम और लक्ष्मण को किसी तरीके से मुक्त कराना था। हनुमान जी यह जिम्मेवारी लेते हुए पाताल लोक पहुंच गए थे। वहां पर मकरध्वज से उनका सामना हुआ था। मकरध्वज ने हनुमान जी को अपने बारे में बताया था। उसने उनसे कहा कि कि वह उनका पुत्र है। हनुमान जी को इस पर यकीन नहीं हुआ। इस पर मकरध्वज ने सारी कहानी का डाली। इसके बाद हनुमान जी को भरोसा हो गया। हनुमान जी ने उससे रास्ता देने के लिए कहा।
हनुमान और मकरध्वज का युद्ध
मकरध्वज ने कहा कि जैसे आप स्वामी भक्त हैं, वैसे ही मैं भी हूं। मुझे अपनी जिम्मेवारी हर हाल में निभानी है। ऐसे में हनुमान और उनके बेटे मकरध्वज के बीच युद्ध हुआ। दोनों ही बड़े बलशाली थे। एक-दूसरे पर दोनों भारी पड़ रहे थे। हालांकि, अंत में पिता हनुमान ने बेटे मकरध्वज को हरा दिया। इसके बाद उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण को मुक्त कराया। उन्होंने श्रीराम से मकरध्वज का परिचय भी कराया।
श्री राम ने मकरध्वज को बनाया पाताल लोक का राजा
श्री राम को हनुमान जी ने बताया कि यह मेरा बेटा है। श्री राम ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बना दिया। इस घटना के बारे में महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में लिखा भी है। इस तरह से ब्रम्हचर्य का पालन करने के बाद भी हनुमान जी का एक बेटा था। मकरध्वज का मंदिर ग्वालियर में बना हुआ है, जहां उनकी पूजा होती है।