नई दिल्ली: हाँ तो भाईओं-भेनों आ गया आपका अपना सबसे प्यारा त्योहार दिवाली. हाँ तो भाइयों और बहनों, आ गया है आपका अपना सबसे प्यारा और मीठा सा त्योहार दिवाली. मीठा से याद आया दिवाली दरअसल मिठास भरा त्यौहार होता है जिसमें हम अपने रिश्तेदार, दोस्तों और पड़ोसियों को तरह तरह की मिठाइयाँ बाँटते हैं. अब भाई बात मिठाई की हो तो आम तौर पर सबके मुँह में पानी भी आता है. किन्तु एक मिठाई ऐसी है जो हर दिवाली हर घर में कुछ नया ही इतिहास रचती है. और Diwali पर वो इतिहास रचने का काम करती है हमारे, आपके, हम सबके घर की ख़ास सोनपापड़ी
Deepawali festival आते ही हमें कई सारी चीजों का इन्तजार रहता है. लेकिन सबसे अधिक इन्तजार रहता है पिछले साल वाला सोनपापड़ी का डिब्बा Diwali पर अपने रिश्तेदारों को सरका देने का.
इस दीवाली मैं भगवान् से यही प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु मुझे पिछले साल वाली सोनपापड़ी से बचा लें. और जानते हैं क्या-क्या होता है-
मिलती हैं धमकियाँ
कल एक अंजान नंबर से फोन आया और उसने मुझे धमकी दी. फोन करने वाले शख्स ने कहा कि “तुम्हारे घर पिछले सोनपापड़ी कोरियर कर देंगे ज्यादा बकैती करोगे तो”.
अब आप ही बताइए ये आतंक नहीं तो और क्या है. आप किसी को परमाणु की धमकी दे लीजिए या उसके गाड़ी की हवा निकाल दीजिए लेकिन सोनपापड़ी देकर उसे मारने कि कोशिश कतई नहीं करिए.
और मैं अपना डिब्बा पहचान गया
मिसेस शर्मा Deepawli gift देने आईं, एक पल को तो मन में सोनपापड़ी के बारे में सोचकर डर गया लेकिन अंदर से हिम्मत बाँधी क्योकि डिब्बा कुछ अलग तरीके का दिखाई दे रहा था. उन्होंने happy diwali बोला और चलीं गईं. उनके जाते ही डरते हुए मैंने वो गिफ्ट खोला तो उसमे से एक जाना पहचान डिब्बा मिला. अचानक ध्यान आया अरे ये तो वही डिब्बा है जो मैंने पिछले साल गुप्ता जी को भिजवाया था. तब समझ आया ये साला पटाखों का धंधा दिवाली में छोटा काम है. असली बिन्निस है सोनपापड़ी स्मगलिंग का और एक घर से दूसरे घर उसे चेप देने का.
एक देश-एक सोन पापड़ी
पुराना वाला डिब्बा मुझे वापिस मिल गया इससे कुछ ख़ास डर नहीं लगा. लेकिन जब समाचार में एक घोषणा सुनी तो मन में जैसे सैलाब आ गया हो. सरकार ने घोषणा करते हुए सोनपापड़ी को दिवाली का सबसे बेहतर उपहार करार दिया था. और कहा था कि
“मितरों आज से एक देश एक सोन पापड़ी” कि योजना हम लागू करते हैं और ये भाई दूज तक चलेगी. ऐसा लगा जैसे मन बैठ गया हो. हे प्रभु ये “एक कॉलोनी एक सोनपापड़ी” तक तो ठीक था लेकिन एक देश एक सोनपापड़ी करके आपने तो हमारा जीवन नर्क कर दिया.
फिर सामने आई एक कहानी
सोनपापड़ी का दीवापली में इस कदर इस्तेमाल देखकर मन में ये इक्षा जागृत हुई कि आखिर इसकी उत्पत्ति की हुई. ये रचना आखिर किस महापुरुष की है. तो सामने आई एक रामायण काल कि कहानी जिसमे कई सारी बातें पता चलीं. जानकारी मिली कि ये रामायण काल से चली आ रही परंपरा है. पहले भी ये भेंट स्वरुप दिया जाता था लेकिन तब लोग अच्छे थे और खा लिया करते थे. आज लोगों के अंदर गिफ्ट एक्सचेंज करने कि होड़ ऐसी मची हुई है कि लौटा देते हैं. यानी की एक बेहतर योजना को बदतर हमने ही बनाया है इसीलिए भुगतना पड़ रहा है.
तो आखिर में “हे मेरी प्रिय सोनपापड़ी, मुझे नहीं पता कि तुम्हे कैसा लगता है जब तुम Diwali में एक डिब्बे में बंद होकर सालों तक एक घर से दूसरे घर तक भटकती रहती हो. अपने खाने वाले मालिक के तलाश में तुम्हारा यूं भटकना मुझे अच्छा नहीं लगा. लेकिन सच कहूं तो मैं तुम्हे खा भी नहीं सकता. इसीलिए इस दीवाली तुम मुझसे जितना दूर हो सके चली जाओ. दूर हो जाओ मेरी इस जिन्दगी से और मेरी दीवाली को बेहतर बना दो. इस दीवाली मेरे प्यारे लोगों से यही विनती है कि डिब्बे में करेला भरकर दे देना लेकिन पिछले साल वाली सोनपापड़ी नहीं”
चलिए आपको दीवाली की शुभकामनायें. मैं पिछले साल वाला डिब्बा पड़ोसी को देकर आता हूँ तब तक आप बताइए ये ऊपर लिखीं बातें सच है या नहीं?