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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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इतिहास बन गया धनानंद से बदला लेने का चाणक्य का ये तरीका

धनानंद से पिता की हत्या अपने अपमान का प्रतिशोध और अपनी शिखा न बांधने का संकल्प लेने वाले चाणक्य अपनी कूटनीति से धनानंद से प्रतिशोध लेने में कामयाब रहे थे
Information Anupam Kumari 17 November 2019

भारत के महान अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ की बात होती है तो सबसे पहले नाम चाणक्य का ही हमारे और आपके दिमाग में आता है। बचपन से ही वे विलक्षण प्रतिभा वाले व्यक्ति रहे थे। अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तुलना में उनकी तार्कितता एकदम अलग किस्म की रही थी। वेद और पुराणों में तो उनकी रुचि बचपन से ही हो गई थी। आगे चलकर इसी वजह से चाणक्य न केवल एक कुशल नेतृत्वकर्ता, बल्कि बड़े रणनीतिकारों में शामिल हुए और कौटिल्य, विष्णुगुप्त, मल्लनाग, वात्स्यान जैसे अनेक नामों से जाने गये। हालांकि, इनके इतने नाम क्यों पड़े, इसके पीछे की कहानी चाणक्य के पिता की मौत के प्रतिशोध से संबंधित है।

तक्षशिला में 350 ई.पू. में जन्मे चाणक्य का नाम महान शिक्षक और उनके पिता चणक मुनि ने बचपन में कौटिल्य रखा था। अपने राज्य की रक्षा के लिए चिंतित रहने वाले चणक मुनि क्रूर राजा धनानंद नीतियों को गलत मानते थे और उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार के सहयोग से रणनीति बनाकर राजा धनानंद को सत्ता से उखाड़ फेंकने की शपथ ले ली थी। दुर्भाग्यवश धनानंद को इसका पता चलने पर उसने चणक को कैद करवा लिया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगाते हुए उनका सिर कलम करवाकर राज्य के मुख्य चैराहे पर लटका दिया, जिसका चाणक्य को बड़ा सदमा लगा।

पिता का दाह संस्कार करते वक्त चाणक्य ने पवित्र गंगा जल अपने हाथों में लेकर धनानंद के वंश का नाश करने तक पका हुआ भोजन नहीं ग्रहण करने की कड़ी प्रतिज्ञा ली थी। घर-बार छोड़कर वे जंगल की ओर भाग निकले। थकने की वजह से बेहोश होकर जब वे गिर पड़े, तो एक संत के उन्हें उठाने और फिर नाम पूछने पर धनानंद के भय से उन्होंने अपना नाम विष्णुगुप्त बता दिया था। संत ने चाणक्य को अपने साथ ले जाकर उन्हें शिक्षा-दीक्षा दी और कौटिल्य इस तरह स विष्णुगुप्त बन गये। अपनी निपुणता और मेहनत व लगन की बदौलत वे आधुनिक पाकिस्तान में स्थित तक्षशिला विश्वविद्यालय के शिक्षक बन गये।

बेहद बुद्धिमान और कुशल तो विष्णगुप्त थे हीं इस वजह से बहुत जल्द उनकी ख्याति पूरे तक्षशिला में फैलती चली गई। एक प्रकांड विद्वान के रूप में वे हर जगह जाने जाने लगे। जो भी लोग उन्हें सुनते थे, उनकी बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे। इसी दौरान सिकंदर ने पोरस के राज्य पर धावा बोल दिया। उसने उसके राज्य पर अपना कब्जा भी जमा लिया। ये अलग बात थी कि पोरस की कोई बात सिकंदर को बहुत प्रभावित कर गई और उसने उसके राज्य को लौटा दिया।

सिकंदर ने जब आक्रमण किया तो वह बेहद विनाशकारी रहा। इसकी वजह से हर ओर तबाही का मंजर नजर आने लगा था। जान-माल का नुकसान पोरस को युद्ध में बृहद पैमाने पर हुआ। चाणक्य को भी सिकंदर द्वारा मचाये गये तांडव की पूरी जानकारी थी। सिकंदर के पांव लगातार बढ़ते ही जा रहे थे। अब उसका अगला लक्ष्य तक्षशिला पर कब्जा जमाना था। भारत को अपने अधीन लेने का उसका सपना था। इसलिए उसने तक्षशिला की ओर भी बढ़ना शुरू कर दिया। ऐसे में चाणक्य मगध प्रस्थान कर गये। सिकंदर की वजह से उन्हें राज्य की चिंता बड़ी सता रही थी।

इस तरह से वे धनानंद के दरबार भी पहुंच गये और राज्य की दयनीय हालत के साथ सिकंदर के विनाशकारी आक्रमण के बारे में उसे अवगत कराते हुए आगाह किया। धनानंद तो भोग-विलास में डूबा था। उसने चाणक्य की बातों की जरा भी परवाह नहीं की और उनका अपमान कर दिया। पहले ही चाणक्य के मन में अपने पिता की हत्या को लेकर बड़ा क्रोध था, ऊपर से धनानंद के अपमान से उनकी क्रोधाग्नि और भड़क उठी और फिर से उन्होंने धनानंद से बदला लेने का प्रण ले लिया।

चाणक्य ने बदला पूरा नहीं होने तक अपनी शिखा नहीं बांधने की प्रतिज्ञा कर ली। उनके मित्र शकटार से उन्होंने कहा कि उन्हें एक ऐसे युवक की आवश्यकता है, जिसमें राजा बनने के सारे गुण हों। शकटार से उन्हें धनानंद के दरबार में कभी काम कर चुकी मुरा दासी के बारे में पता चला, जिसका अपमान करके धनानंद ने उसे दरबार से बाहर कर दिया था। शकटार ने उसके बेटे चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में बताया कि वह शासक बन सकता है। चंद्रगुप्त के घर जाकर उनकी मां को विश्वास में लेकर वे चंद्रगुप्त को अपने आश्रम ले आते हैं और धनानंद से बदला लेने के लिए तैयार कर देते हैं।

धर्म के सहारे वे चंद्रगुप्त की ताकत बढ़ाने के लिए अपना नाम वात्स्यान मुनि कर लेते हैं और प्रवचन सुनाकर युवाओं को चंद्रगुप्त की सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करने लगते हैं, जिससे चंद्रगुप्त के पास एक ताकतवर सेना तैयार हो जाती है। धनानंद को जब तक चाणक्य की साजिश का आभास हुआ, तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी थी। भोग-विलास में डूबा धनानंद कोई रणनीति तैयार नहीं कर सका और चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सलाह पर मगध पर हमला कर दिया। धनानंद के साथ उसके पूरे वंश को चंद्रगुप्त ने खत्म करके चाणक्य का प्रतिशोध पूरा कर दिया।

इस तरह से चाणक्य न केवल अपनी कूटनीति से धनानंद से प्रतिशोध लेने में कामयाब रहे, बल्कि एक अत्याचारी शासक का अंत भी उन्होंने करवाकर जनता के कष्टों का निवारण किया। यदि आपके पास भी चाणक्य से जुड़ी कोई रोचक जानकारी है तो हमारे साथ इसे जरूर शेयर करें और यह कहानी यदि अच्छी लगी हो तो शेयर करके इस बाकी लोगों को भी बताएं।

Anupam Kumari

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