महाराष्ट्र में एक नई सरकार बन गई है। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री बने हैं और पहली बार ठाकरे परिवार का कोई शख्स मुख्यमंत्री बना है। महाराष्ट्र के राज्यपाल ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दी और उन्होंने एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली है। इसके साथ ही अब कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र का महा सियासी ड्रामा खत्म हो गया है और कुछ जनता को अब टीवी चैनलों पर महाराष्ट्र के अलावा और राज्यों की खबरें भी देखने को मिलेंगी। लेकिन ऐसे में सवाल पूछा जाना लाज्मी है कि ये 3 पहियों वाली गाड़ी कब तक चलेगी? क्या ये 5 साल तक टिक सकेगी? क्योंकि अगर गौर करें तो इन तीनों पार्टियों के अलग-अलग विचार हैं। खासकर इस सरकार का टिकना तीन बातों पर निर्भर करेगा।
तीन बातों पर निर्भर करेगी ये तीन पहियों की गाड़ी
पहली बात जो कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि ये तीनों पार्टियां एक साथ इसलिए आई, क्योंकि ये भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहती हैं। हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस वक्त कांग्रेस की सबसे बड़ी प्राथमिकता भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने से रोकना है। लेकिन फिर भी ये तीनों पार्टियां दावा कर रही हैं कि उन्होंने एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाया है जो कि महाराष्ट्र के हित में है, लेकिन देवेंद्र फडणवीस के मुताबिक ये कॉमन मैक्सिमम प्रोग्राम है, जिसका मकसद भाजपा को सत्ता से बाहर रखना है। अगर गौर कर के देखा जाए तो राजनीति के 2 अलग-अलग ध्रुव है। जिनमें एक हिंदुत्व का समर्थन करने वाली विचारधारा है और दूसरी विचारधारा धर्मनिरपेक्षता की है। ये दोनों ध्रुव इसलिए मिले हैं क्योंकि ये तीसरे प्लेयर, जो देश की एक बड़ी पार्टी है भाजपा, उसे बाहर रखना चाहते हैं। इसलिए ये सरकार बनी है। शिवसेना का मुखपत्र ‘सामना’ हर सुबह लिखता है कि ये अखबार ‘हिंदुत्व का जोरदार समर्थन’ करता है। ऐसी पार्टी के साथ सेक्युलर कांग्रेस और एनसीपी कैसे सरकार चलाएंगी, ये काफी बड़ी चुनौती है।
शरद पवार पर टिका है सब कुछ
इसके अलावा दूसरा कारण हो सकता है कि जिसमें सरकार के कब तक चलने की बात अटकती है। वो है शरद पवार। कहने को तो शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री है लेकिन इस सरकार का रिमोट कंट्रोल जो है वो शरद पवार के पास है। वो ही इन तीनों पार्टियों को एक साथ लेकर आए हैं। शरद पवार ने ही कांग्रेस को मनाया, सोनिया गांधी को मनाया कि वो शिवसेना के साथ सरकार बनाएं और शिवसेना को भी उन्होंने एक तरह से उकसाया कि अगर इस वक्त आपने सरकार नहीं बनाई तो आपका मुख्यमंत्री कभी नहीं बन पाएगा। शिवसेना और भाजपा चुनाव में एक साथ लड़े थे, लेकिन चुनाव के बाद दोनों के बीच मतभेद हो गया। क्योंकि शिवसेना चाहती थी कि ढाई साल के लिए उनका मुख्यमंत्री बने, लेकिन भाजपा इसके लिए मानी नहीं। तो शरद पवार एक तरह से शिव सेना को उकसाकर उस गठबंधन से बाहर लेकर आए और कांग्रेस को भी दूसरी तरफ से मनाया और बहुमत जुटाया। इसलिए ये सरकार तब तक चलेगी, जबतक शरद पवार चाहेंगे. हालांकि शरद पवार कह रहे हैं कि ये सरकार पांच साल चलेगी।
भाजपा के ऑपरेशन लोटस को कैसे रोक सकेंगे ये तीनों
लेकिन इसमें तीसरा बड़ा फैक्टर भाजपा का होगा, कि वो कब तक चाहती है कि ये सरकार चले। भाजपा यहां पर दो चीजें कर सकती है। एक तो वो ऑपरेशन लोटस चला सकती है। ऑपरेशन लोटस का मतलब वो कुछ सदस्यों से इस्तीफा दिलवा दे। जैसा उसने कर्नाटक में किया और इससे पहले भी कई राज्यों में वो ऐसा कर चुकी है। फिलहाल इस गठबंधन के पास 166 का आंकड़ा है। मान लीजिए कि इनके 20 या 25 विधायकों को भाजपा एक-एक करके इस्तीफा दिलवा दे और बहुमत की सरकार को अल्पमत में ले आए। ये एक तरीका हो सकता है, लेकिन भाजपा इतनी मात खाने के बाद दोबारा ऐसा करेगी, ये फिलहाल कहना मुश्किल है। भारतीय जनता पार्टी की काफी फजीहत भी हो चुकी है।
हालांकि लॉन्ग टर्म में भाजपा का ये प्रोजेक्ट जरूर होगा। उन्होंने जो इतना अपमान सहा है कि सरकार बनाने के बाद साढ़े तीन दिन में उनकी सरकार गिर गई, वो चाहेंगे कि दोबारा वो सत्ता पर काबिज हों। इस सरकार पर एक और दबाव ये हो सकता है कि एनसीपी के छगन भुजबल या प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं। अब आगे ये भी हो सकता है कि केंद्रीय एजेंसियां कुछ नए मुकदमे खोल दे। भ्रष्टाचार के मामले पर भी ये सरकार गिर सकती है। तो कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि ये तीन पहियों की सरकार है। जिसका संतुलन थोड़ा मुश्किल हो सकता है। ये तीन कारण तय करेंगे कि महाराष्ट्र की ये नई सरकार कितने दिन तक चलेगी या कितने दिन तक टिकेगी।