भारत में कुछ समय से चुनाव की परिभाषा अलग हो गई है। साल 2014 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उसके बाद से एक अलग लहर दिखी है। पंचायत चुनाव से लेकर सांसद चुनाव तक हर चुनाव की महत्वता बहुत ज्यादा बढ़ गई है। क्योंकि हर चुनाव में हमारे प्रधानमंत्री स्वयं जा कर भाजपा के लिए प्रचार करते हैं। अब जब हर चुनाव में प्रधानमंत्री खुद से जाकर प्रचार करेगा तो स्वभाविक है कि मीडिया उसे बहुत बड़े पैमाने पर दिखाएगा और चुनाव की हैसियत भी बढ़ेगी।
ऐसा ही कुछ मार्च से भी भारत में चल रहा था, 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे थे। जिनमें पश्चिम बंगाल, तमिल नाडू, पुड्डुचेरी, असम, केरल शामिल थे। इन चुनावों के नतीजे घोषित हुए, जिसमें असम और पुड्डुचेरी में तो भाजपा ने सरकार बना ली है और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की वापसी हुई है। केरल में लेफ्ट और तमिल नाडू में डीएमके सरकार बनाने में सफल रही है। इन नतीजों के बारे में बहुत सी बातें सुनने और कहने को मिल रही होंगी।
एक बात जो सभी को लंबे वक्त से चुभ रही है वो है कोरोना, क्योंकि जब इन राज्यों में चुनाव हो रहे थे, तो पूरे देश में कोरोना वायरस अपना भयावह रूप दिखा रहा था। लोग एक एक सांस के लिए तड़प रहे थे। अस्पतालों के बाहर संघर्ष कर रहे थे। बाप अपने लाल को बेड दिलाने के लिए डॉक्टरों के पैर पकड़ रहा था। तो पत्नी अपने सुहाग के लिए दवाई की काला बाजारी सह रही थी। बेटा अपने वृद्ध पिता को गोद में लिए भाग रहा था कि कहीं उसे ऑक्सीजन का सिलेंडर मिल जाए। जब देश इन सबसे जूझ रहा था तो हमारे देश में उत्सव की तरह मतदान कराए जा रहे थे।
जिस प्रधानमंत्री को अपनी जनता का हाथ थाम कर अस्पताल में इलाज करवाना चाहिये था, वो बेशर्मों की तरह पश्चिम बंगाल में दीदी-ओ-दीदी कर रहे थे। जिस गृहमंत्री को देश में दर दर भटक रहे लोगों को सांसों की किल्लत से बाहर निकालना चाहिये था, वो इन चुनावी राज्यों में अपनी पार्टी के गुणगान कर रहे थे। ये कोविड-19 की पहली वेव नहीं है जो सबकुछ अचानक हो रहा हो। एक साल से ज्यादा वक्त से भारत में कोविड वायरस अपना डेरा डाल कर बैठा हुआ है। और इस बीच में हम 6-7 राज्यों में चुनाव करवा चुके हैं। क्या हमारे देश में सत्ता और कुर्सी इतनी जरूरी है कि लोगों की जान चली जाए लेकिन चुनाव नहीं टाल सके।
ये चुनाव में कोई भी पार्टी जीती हो लेकिन हार तो इंसानियत की हुई है। भारतीय जनता पार्टी बेशक 2 राज्यों में सत्त में बैठेगी, पश्चिम बंगाल में सरकार तो नहीं बना पाई लेकिन बेहद शानदार नंबर के साथ विपक्ष में बैठेगी और इससे बंगाल में आगे के दरवाजे खोल लिए हैं। लेकिन ये सारी उपलब्धियां लोगों की जान की कीमत पर हासिल हुई है। इन चुनावी सफलता की सीढ़ी के नीचे किसी के बाप की, तो किसी के पति, तो किसी मां की लाशें हैं। लाशों के इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी हमारे प्रधानमंत्री को इस सफलता के लिए बहुत सारी बधाई।
इस सफलता से हो सकता है आपको और आपकी सरकार को शायद चैन की नींद आ जाए, लेकिन उन मासूम सी छोटी सी बेटियों को कभी चैन की नींद नहीं आगी जिन्होंने अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया। वो बाप कभी चैन की नींद नहीं सो पाएगा जिसके कंधे पर उसके नौजवान बेटे का शव रखा था। वो मां नहीं सो पाएगी जिसके पैरों में उसके बेटे की लाश रिक्शे पर रखी हुई थी। आप इस सफलता का जश्न मनाई लेकिन थोड़ा संवेदनशील हो कर क्योंकि आप जिस गली मोहल्ले में जाएंगे ना लाशों के ढेर वहां पर मातम मनाया जा रहा है। उन लोगों के मातम में खलल मत डालियेगा क्योंकि अब वो अपने परिवार वालों को सिर्फ याद ही कर पाएंगे।
प्रधानमंत्री जी थोड़ी कमी रह गई होगी तभी पश्चिम बंगाल में सरकार से रह गए, कोई नहीं ब्रीफ केस चला सकते हैं। जब इंसानियत खत्म हो चुकी है तो लोकतंत्र भी कर ही दीजिये क्यों किसी को भी उम्मीद में रखना, कुछ खास अमीरों के साथ आपके अच्छे संबंध है ही। तो आप कर सकते हैं, उम्मीद है आप निराश नहीं करेंगे। एक बार फिर से लाशों के ढेर से मिली इस सफलता के लिए आपको बहुत बधाई।