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मैं जिंदगीभर गांव से बाहर नहीं गया,आज गांव में भी कोरोना आ गया, हमें बचा लीजिए

मैं एक बहुत ही छोटे गांव से हूँ. मेरे गाँव में आज तक सड़क भी नहीं बनी. बिजली आती है लेकिन कब चली जाए इसका कोई भरोसा नहीं है. रोजगार का कोई साधन नहीं और आमदनी का स्त्रोत केवल खेती है. दो बीघा जमीन में खेती करके जिन्दगी बिता दी. कभी गांव से बाहर नहीं गया. मेरे साथी संगति सब सूरत गुजरात और बम्बई चले गए लेकिन मैं नहीं गया. सोचा कि गांव में पैदा हुआ हूँ तो यहीं रहकर कुछ कर लूँगा. गांव नहीं छोडूंगा. लेकिन आज हमारे गांव में भी कोरोना वायरस आ गया है. हमें बचा लीजिए सरकार.

जब देश दुनिया में कोरोना फ़ैल रहा था तो मन एक सुकून था कि अच्छा हुआ कहीं कमाने नहीं गए. जाते तो आज हम भी वहां फंसे होते. कोरोना के चक्कर में किसी जगह रुके होते. आज कम से कम अपने गांव में तो हूँ. अपने घर में हूँ. चार पैसे का लालच नहीं किया तो आज सुरक्षित हूँ. लेकिन अब मैं सुरक्षित नहीं हूँ सरकार. कल सुनने को मिला कि बाहर से आया एक लड़का कोरोना पोजिटिव पाया गया है. उसे वायरस लग गया है. अब मन में बहुत डर है.

सुना था बाहर के चीन देश से आने वालों के साथ कोरोना आया है, तो साहब हमारा क्या कुसूर

सोचा कि गांव से बाहर कभी कदम नहीं रखा की वहां दुनियाभर भर का जंजाल है और दुनियाभर की बीमारियाँ. लेकिन आज ये बीमारी मेरे घर के पास आ गई. ठीक मेरे बाड़े के अगली गली में. उस गली में जहाँ पर मैं अपनी फसल रखता था. आज सब बंद हो गया. घर की पिछली गली में नहीं जा पा रहा हूँ. बहुत मन में डर है. बचा लीजिए सरकार. जिस डर की वजह से पूरी जिन्दगी गांव से बाहर नहीं गया और गरीबी में जीवन काट दिया आज वही डर शहर से होता हुआ मेरी गली में चला आया. हमारा क्या कसूर है. हम तो लेने नहीं गए. कहाँ से आ गया ये.

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हम ये भी नहीं कहते कि हमाए गांव के लड़के बच्चों को आप घर आने से मना कर दीजिए. उन्हें घर भेजी लेकिन थोड़ा ध्यान रखिए. कहते हैं कि बाहर से आने वालों को गांव के स्कूल में रोकना है. लेकिन सरपंच सचिव यहाँ कुछ नहीं कर रहे हैं. कोई सुनता नहीं है. कहते हैं जितना हो रहा है कर रहे हैं.

हमें बचा लीजिए माई-बाप. हमें उस बीमारी से नहीं मरना है. बचा लीजिए सरकार, बचा लीजिए…

                          एक लाचार ग्रामीण