आओ एक बार फिर मोमबत्ती निकालें, रात को मार्च करें, सोशल मीडिया पर प्रियंका हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिंदा है जैसे पोस्ट शेयर करते हैं। फिर से सरकार, कानून पर सवाल करते हैं। कुछ बड़े बड़े लेखकों की बातें लिखते हैं। महिलाओं के हक में आवाज उठाने का दिखावा करते हैं। प्रियंका को अगली निर्भया बता देते हैं लेकिन क्या इससे आगे कोई लड़की प्रियंका नहीं बनेगी या फिर किसी लड़की की तुलना हम निर्भया से नहीं करेंगे। प्रियंका रेड्डी के साथ जो हुआ वो बेहद गलत था, वो घिनौनापन था, उसके आरोपियों को मौत की सजा होनी चाहिए। ये सब हम हर बार बोलते हैं, लेकिन क्या इससे कुछ हुआ?
2012 में जब दिल्ली में निर्भया के साथ रेप हुआ था, पूरा देश सड़क पर एक साथ आ गया था, इसके बाद लगा था कि शायद अब इस देश में एख लड़की सिर उठा कर अपनी आजादी के साथ जी सकेगी। एक उम्मीद सी जाग गई थी कि अब शायद हमारी बेटी या बहन बेखौफ सड़क पर घूम सकेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ एक बार फिर वो घड़ी लौट आई है। फिर एक लड़की की जिंदगी गई, उसके साथ रेप हुआ और जला दिया गया उसका शरीर। सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल तक पर बहुत सवाल उठाए गए हैं।
ऐसे में इसका विरोध प्रकट करने के लिए एक लड़की अनु दुबे सड़क पर अकेले आती है। अपने भविष्य को सुरक्षित करने की मांग लेकर आती है। पार्लियामेंट हाउस के बाहर अकेले चुपचाप धरने पर बैठ जाती है और वो अपने सुरक्षित भविष्य की मांग करती है। लेकिन हमारी पुलिस उसी लड़की को उठा कर घंटों तक पुलिस स्टेशन ले जाती है। कहा जाता है कि उस लड़की के पास प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं थी। वैसे भी वो जिस जगह पर थी वहां पर कानून बनाए जाते हैं, देश को चलाने वाले सांसद उस स्थान पर बैठे होते हैं। लेकिन पुलिस को क्या मतलब वो तो वहां से भगा देंगे न?
संसद के बाहर प्रदर्शन करने वाली लड़की को तो पुलिस ले गई, जिसके बाद मामला गरमा गया था। खैर वो अलग मुद्दा है। लेकिन जिस वक्त ये लड़की संसद के बाहर वाली सड़क पर धरना दे कर बैठी थी। उस वक्त हमारे सांसद प्रियंका रेड्डी पर बात नहीं कर रहे थे। इन सांसदों के पास मुद्दा होता है तो नाथूराम गोडसे, राम मंदिर, महाराष्ट्र सरकार, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा पर किसने ध्यान दिया? इस पूरे मुद्दे पर विपक्ष से लेकर सरकार दोनों चुप है। न राज्य सरकार ने कुछ ऐसा किया जिससे लगे कि वो महिला सुरक्षा के मामले पर सख्त है। न तो 6 साल में मोदी सरकार ने कुछ ऐसा किया, न तो दशकों तक कांग्रेस की सरकार ने कुछ किया। बस वादें किए और उसके बाद उन्हें तोड़ दिया।
मैं इस बार किसी सरकार पर आरोप नहीं लगाउंगा, क्योंकि थक चुका हूं सरकार, पुलिस, कानून, मंत्रियों के लिए बोलते बोलते, लेकिन अब आप भी उतने ही कसूरवार हैं। क्योंकि जब ये नेता आपको मालिक बना कर वोट मांगने के लिए आते हैं तो आप इनसे ये नहीं पूछते कि कब कानून आएगा, आप मजहब, जात, इलाका देख कर वोट दे देते हैं। इन लोगों से पूछा कि पिछली बार सदन में क्या किया, कितनी बार आपके मुद्दों को उठाया? लेकिन नहीं आप ये नहीं सोचते या तो भेड़ चाल देख कर किसी एक दल को वोट दे देते हैं या बड़ी बड़ी बातें देख कर बहक जाते हैं और मुद्दों की राजनीति दब कर रह जाती है।
इन सांसदों को जिनके पास इस देश के सबसे अहम मुद्दे पर काम करने के लिए वक्त नहीं है, उनको मैं अपने टैक्स के पैसे को बर्बाद नहीं करने दूंगा। संसद में हर वक्त घटिया राजनीति की ही जगह अब नहीं चाहिए। अब मुद्दों पर बात करने का वक्त आ गया है। गरीबी, महिला सुरक्षा, शिक्षा अब इन पर बात होगी। जब ये सांसद इस पर कदम उठाएंगे तो ही ये संसद में जाएं नहीं तो इस्तीफा दे, हम दोबारा चुनाव करवाने के लिए तैयार है लेकिन इस बार मुद्दों पर बात होगी।
हैरानी की बात है कि संसद में महिला सुरक्षा का मुद्दा हमेशा गायब रहता है। ये बस चुनाव के वक्त सामने आता है और फिर गायब, तो क्या जरूरत है इस देश की लगभग आधी आबादी को इन नेताओं की, जिनके पास एक मजबूत कदम उठाने का वक्त और इरादा दोनों ही नहीं है। ये बस आरोप की राजनीति करने के लिए आए हैं और मुफ्त का पैसा कमाने के लिए तो मेरा टैक्स का पैसा इन जैसे नेताओं के लिए नहीं है। अगर सब एक सुर में इन नेताओं पर दबाव बनाए कि बलात्कारियों को सरे आम गोली मार दी जाए तो ये हमेशा के लिए खत्म नहीं हो जाएगा।