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कोई नहीं टक्कर में तो क्यों विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह की जरूरत पड़ती है?

भारतीय जनता पार्टी और सोशल मीडिया की आर्मी की तरफ से हर बार एक ही बात कही जाती है कि अगर भाजपा नहीं तो कौन? चाहें फिर वो लोकसभा चुनाव हो, विधानसभा या पार्षद के, हर चुनाव में, हर राज्य में आपको भारतीय जनता पार्टी के कई नेता ये कहते हुए दिखाई देंगे कि भाजपा नहीं तो कौन? हालांकि ऐसा कई बार सभी को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टक्कर में कौन है? राहुल गांधी को हर तरह से नाकामयाब साबित कर दिया है, चाहे फिर वे नेता हो, सोशल मीडिया की आर्मी हो या फिर भाजपा का आईटी सेल, उन्होंने कांग्रेस पार्टी को घोटालों की पार्टी, चोरों की पार्टी, कह दिया है और राहुल गांधी को एक दम फिसड्डी बना दिया है। ऐसे में बात उसके बाद तीसरे मोर्चे की आती है तो वहां पर सवाल आता है कि नेता कौन होगा क्योंकि वहां पर काफी मुश्किल है कि एक नेता को चुन लिया जाए।

ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर एक नेता बना पाना तो वाकई में मुश्किल है। हालांकि कई नेता है जो नरेंद्र मोदी की टक्कर में खड़े हो सकते हैं और भाजपा नहीं तो कौन के सवाल पर लगाम लगा सकते हैं। बस इन नेताओं को सही से राष्ट्रीय स्तर पर उतारने की जरूरत है। फिलहाल बात करते हैं महाराष्ट्र की तो ये राज्य चुनावी माहौल से ग्रस्त है, यहां पर लगातार बयान आ रहे हैं, नेताओं की टिकट पर बवाल मचा हुआ है और मौकाप्रस्त गठबंधन बन रहे हैं। ऐसे में भाजपा ने एक बार फिर से विपक्ष को फेल साबित करने की कोशिश शुरु कर दी है। भारतीय जनता पार्टी ने खुलेआम कह दिया है कि भाजपा की टक्कर में कोई नहीं है। लेकिन इस बार एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने मौका पकड़ा और तुरंत ही हमला कर दिया। शरद पवार ने कहा कि अगर भाजपा की टक्कर में कोई नहीं है तो फिर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री के अलावा अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री से लेकर फिल्मी सितारों तक को प्रचार के लिए क्यों बुलाया जा रहा है।

अगर विपक्ष नहीं तो पीएम, सीएम की रैलियां क्यों

कहने को तो ये एक राजनीतिक बयान है लेकिन अगर इस बयान को समझें तो इससे इत्तेफाक रखना भी सही है। ये सिर्फ महाराष्ट्र या हरियाणा की कहानी नहीं है, हर चुनावी राज्य में ऐसा ही होता है। पहले तो भारतीय जनता पार्टी कहती फिरती है कि हमारा कोई विपक्ष नहीं है फलां चुनाव हम दो तिहाई बहुमत से जीतेंगे, हाल ही में एक नेता ने तो कह दिया कि भाजपा को जीतने के लिए चुनाव की ही जरूरत नहीं है। इन सबके बावजूद भाजपा अपने सबसे बड़े स्टार कैंपेनर नरेंद्र मोदी से भी रैलियां करवाते हैं, इसके अलावा अमित शाह भी जनसभा करते हैं और जुबान से तीर चलाते हैं। योगी आदित्यनाथ से लेकर हेमा मालिनी तक कई नेता आते हैं, और रैलियां करते हैं। अगर भारतीय जनता पार्टी इतनी ही अपनी जीत को लेकर आश्वस्त होती है तो फिर इन सब रैलियों की, नेताओं की, सितारों की क्या जरूरत है।

अकेले महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री 9, गृहमंत्री अमित शाह 20, मुख्यमंत्री फडनवीस 50 रैलियां कर रहे हैं। अगर भाजपा की टक्कर में कोई नहीं है तो फिर वो पूरे महाराष्ट्र में क्यों घूम रहे हैं? अगर महाराष्ट्र की जनता के मन में भी भाजपा नहीं तो कौन का सवाल है तो फिर नरेंद्र मोदी, अमित शाह को रैलियां करने की क्या जरूरत है। क्या यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ जो अलग अलग मुख्यमंत्री बुलाए जा रहे हैं, उनके राज्य में सब चंगा है जो वो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए वोट मांग रहे हैं और वो भी तब जब एक तरफ कहते हैं कि विपक्ष है नहीं हम ही जीतेंगे और दूसरी तरफ अलग अलग राज्यों से काम काज को छोड़ कर वोट मांग रहे हैं।

क्या मुख्यमंत्री के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे?

क्या इसके पीछे का कारण है कि महाराष्ट्र चुनाव में या फिर हरियाणा में भी मुख्यमंत्री अपने काम के दम पर जनता से वोट नहीं मांग सकते हैं? क्या फिर नरेंद्र मोदी की जरूरत पड़ेगी? क्या सिर्फ राष्ट्रवाद, 370, तीन तलाक, हिंदूत्व, सेना, राहुल गांधी के नाम पर ही वोट मांगे जा सकते हैं? क्या भाजपा के पास सत्ता होने के बावजूद इनके अलावा मुद्दे और वोट मांगने वाले चेहरे नहीं है? क्यों हर चुनाव की जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी के कंधों पर आती है? हर चुनाव में मोदी के काम पर चर्चा होती है न कि मुख्यमंत्री? इस बार मुद्दों के साथ-साथ जनता को उम्मीदवारों से ये सवाल भी पूछना चाहिए कि हम वोट मोदी को देंगे या मुख्यमंत्री चुनेंगे? क्या लोकल मुद्दों पर काम होगा?