साल 2014 में बड़ा सियासी झटका खाने के बाद कांग्रेस ने साल 2019 के लिए काफी सपने सजाए थे। लेकिन नरेंद्र मोदी के सामने टिक नहीं सके। हाल ये हुआ कि अमेठी भी हाथ से निकल गया। प्रियंका गांधी वाड्रा को सालों से माना जा रहा था कि वो कांग्रेस का ट्रंप कार्ड है लेकिन मोदी लहर में वो भी कुछ नहीं कर सकी और इसके बाद राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी ठुकरानी पड़ी और एक बार फिर से सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष बनी। कांग्रेस के लिए चुनावी राजनीति का हाल ये है कि सोनिया गांधी अंतिम वक्त में रैली रद्द कर देती हैं, राहुल गांधी रैली में ऐसी ऐसी बातें बोल देते हैं कि उनकी जगह प्रियंका गांधी को भेजना पड़ता है। सारी चीजें गड़बड़ हो जाती हैं और ऐसे में कांग्रेस अगर आने वाले वक्त में अगर इन 5 बातों का ख्याल रखे तो पार्टी साल 2020 में कुछ कमाल कर सकती है।
प्रियंका गांधी को फ्रंट-फुट पर खेलने की छूट दी जाये
साल 2019 के आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस में महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। प्रियंका गांधी की पहली औपचारिक राजनीतिक पारी पूरी तरह असफल रही और वो अमेठी में राहुल गांधी की हार को टाल नहीं सकीं। ऐसा जरूरी नहीं कि पहली ही पारी में कामयाब हो सके। आगे भी कोशिश की जा सकती है और प्रियंका इस वक्त वही कर रही है। महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों से वो दूर रहीं लेकिन झारखंड के मैदान में जब राहुल गांधी ने ‘रेप इन इंडिया’ बवाल कर दिया तो, पाकुड़ में रैली के लिए प्रियंका गांधी को भेजा गया।
कांग्रेस के स्थापना दिवस के मौके पर पूरे देश में कांग्रेस नेता मैदान में उतरे थे। राहुल गांधी ने भी गुवाहाटी पहुंच कर जितने जोरदार हमले हो सकते थे, मोदी सरकार पर किये लेकिन प्रियंका गांधी ने एक ही झटके में भाई को भी मीडिया की सुर्खियों से गायब कर दिया और खुद छा गई। उन्नाव रेप कांड को लेकर भी प्रियंका गांधी ने यूपी का तूफानी दौरा किया और पूरा सियासी मैदान लूट लिया। 2020 में कांग्रेस के लिए बेहतर होगा, प्रियंका गांधी वाड्रा को इसी तरह आगे बढ़ कर राजनीति का खेल खेलने की पूरी छूट दे दे।
राहुल गांधी भाषण में गलती न करें
राहुल गांधी तो संसद से सड़क तक लिखे हुए नोट लेकर जाते रहे हैं। नोट देखकर ही सवाल पूछते हैं और बातें करते हैं। खुद ही इन बातों के बारे में बताते भी हैं और ये कोई बुराई नहीं है। आखिर सोनिया गांधी भी तो ऐसा ही करती हैं और मायावती जैसी नेता भी लिखे शब्दों को ही पड़ती है। पढ़ने में कोई चूक हो जाये तो बात अलग है और वैसे भी अब हर कोई मोदी जैसा वक्ता हो भी नहीं सकता है। नए साल में या तो राहुल गांधी बिना गलती के बोले या फिर लिखा हुआ भाषण ही पढ़ें। कम से कम झारखंड की रैली और रामलीला मैदान जैसी गलती और उसके बाद फजीहत तो नहीं झेलनी पड़ेगी।
कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हो सोनिया गांधी
सोनिया गांधी फिलहाल कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं और स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति होनी अभी बाकी है। इसके बावजूद सोनिया गांधी पर बड़ी जिम्मेदारी है। बतौर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी कांग्रेस और विपक्ष के लिए अच्छी भूमिका निभा सकती हैं। ये कोई नया प्रयोग नहीं बल्कि दस साल तक का आजमाया हुआ कारगर नुस्खा है। बार बार देखा गया है कि विपक्षी नेताओं के बीच राहुल गांधी फिट नहीं होते हैं। विपक्ष के भी कई नेता राहुल गांधी को जूनियर मानते हैं और कांग्रेस के राजनीतिक वारिस होते हुए भी वो जेनरेशन गैप के शिकार हो जाते हैं। महाराष्ट्र में बने विपक्षी गठबंधन से ये सीख सामने आयी है कि राहुल गांधी के मुकाबले सोनिया गांधी के साथ विपक्ष के लिए भी गठबंधन करना कम मुश्किल है। शरद पवार ने सारी बातचीत सोनिया गांधी से की और राहुल गांधी पूरे सीन से गायब रहे।
अमरिंदर सिंह जैसे सख्त नेता को बनाया जाए अध्यक्ष
राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार से न हो और हाल ही में राहुल गांधी के अध्यक्ष के रूप में पार्टी में लौटने की भी चर्चा रही है, लेकिन वो अपनी बात पर कायम हैं। वैसे भी राहुल गांधी को इतनी छूट तो मिलनी ही चाहिए कि वो जिम्मेदारियां निभाते हुए खुद के लिए भी स्पेस रख सकें। जिस तरह कुछ लोगों को काम करने की आदत होती है, छुट्टियां भी बहुत लोगों को वैसे ही पसंद होती हैं। राहुल गांधी को छुट्टियों के लिए पूरा हक मिलना चाहिए। आखिर ट्वीट-पॉलिटिक्स तो वो दक्षिण कोरिया की राजधानी पहुंच कर भी कर ही लेते हैं। अब अगर फिर से अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी पर दबाव डाला जाता तो है तो ये बहुत नाइंसाफी होगी। और सोनिया गांधी के लिए भी ज्यादा दिन तक कांग्रेस को ऐसे आगे ले जाना मुश्किल होगा। राहुल गांधी ये भी नहीं चाहते कि प्रियंका गांधी वाड्रा को भी कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाये। ऐसे में कांग्रेस को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो भाजपा नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से डट कर मुकाबला कर सके और जरूरत पड़ने पर मुंहतोड़ जवाब दे सके।
मोदी-शाह से लड़ने के लिए एक जरूरी शर्त ये भी है कि उस नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई आरोप न हों और कोर्ट, सीबीआई, ईडी का सामना न करना पड़े। इस वजह से कांग्रेस के बहुत से नेता फिट नहीं हो पाते हैं। लेकिन कांग्रेस के पास कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा कद्दावर नेता भी है। एक तो वो राष्ट्रवादी छवि वाले नेता जो भाजपा पर भारी पड़ेंगे।
सोशल मीडिया पर मेहनत
भाजपा की जीत के पीछे का सबसे बड़ा राज उसका सोशल मीडिया है। लेकिन वहीं कांग्रेस का सोशल मीडिया काफी कमजोर रह रहा है। इस वजह से कांग्रेस लोगों से सीधा जुड़ नहीं पा रही है और भाजपा इसका पूरा फायदा उठा रही है। ऐसे में कांग्रेस को एक बेहतर आईटी सेल की जरूरत है और सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी पूरी तरह से दर्ज कराने की जरूरत है।