भारत ने 1971 की जंग में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया था। पाकिस्तान 13 दिनों में ही घुटने टेकने पर मजबूर हो गया था। उस वक्त भारतीय सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब। पाकिस्तान का आत्मसमर्पण करवाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।
भारत ने पाकिस्तान को हर तरीके से पस्त कर दिया था। पाकिस्तानी नौसेना के कराची हर्बर को भारतीय सेना ने तबाह कर दिया था। इससे पूर्वी पाकिस्तान तक पाकिस्तान जरूरत की चीजें अब नहीं पहुंचा पा रहा था।
दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना जैसलमेर पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ रही थी। भारतीय वायु सेना ने लौंगेवाला पोस्ट पर उसे रोक दिया। पाकिस्तानी टैंकों के भारतीय वायु सेना ने तो चीथड़े उड़ा दिए थे।
अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा था। भारत पर वह युद्धविराम के लिए दबाव बना रहा था। इधर रूस भारत की मदद कर रहा था। एक परमाणु पनडुब्बी उसने भारत की सहायता के लिए भेज दी थी। इससे अमरीका और रूस भी उस वक्त आमने-सामने हो गए थे।
ढाका के गवर्नर हाउस में 14 दिसंबर, 1971 को एक रणनीतिक बैठक होनी थी। भारतीय सेना को इसकी जानकारी मिल गई। चाय मिग विमानों ने हमला बोल दिया। गवर्नर हाउस तबाह हो गया। जनरल नियाजी बुरी तरीके से घबरा गए थे। वे रोने लगे थे। दूसरी ओर गवर्नर जनरल मलिक ने त्यागपत्र दे दिया।
जनरल जैकब को दरअसल पाकिस्तान को आत्मसमर्पण करवाने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। वे ढाका पहुंच गए थे। जनरल नियाजी को उन्होंने आत्मसमर्पण करने के दस्तावेज हस्ताक्षर करने के लिए सौंपे, पर नियाजी की आंखों से आंसू निकल आए थे। उन्होंने कहा कि मैं सरेंडर कहां कर रहा हूं। तुम तो सिर्फ सीजफायर की बात करने के लिए यहां आए हो।
जैकब ने नियाजी को कह दिया था कि हस्ताक्षर कर दें। नहीं तो उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा की वे गारंटी नहीं ले सकेंगे। दोबारा विचार करने के लिए आधा घंटा उन्होंने नियाजी को दे दिया।
ढाका में 26 हजार 400 पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे। भारत के लगभग 3000 सैनिकों ने ढाका को घेर रखा था। फिर भी पाकिस्तानी सैनिकों का हौसला टूट चुका था। अब उनके बस सरेंडर करने की देर थी। जैकब हालांकि बेचैन थे। उन्हें लग रहा था कि कहीं नियाजी सरेंडर करने से मना न कर दे। सीजफायर का वक्त भी अब पूरा होने वाला था।
कुछ घंटे में जगजीत सिंह अरोरा भी यहां पहुंचने वाले थे। कुछ देर के बाद नियाजी के पास जैकब पहुंचे। यहां खामोशी पसरी हुई थी। अपनी कुर्सी पर जनरल नियाजी बैठे हुए थे। सरेंडर वाले कागजात उनके सामने टेबल पर पड़े थे।
जैकब ने उनसे फिर सवाल किया। उन्होंने पूछा कि कागजात पर उन्होंने हस्ताक्षर किए या नहीं? नियाजी ने उसका कोई जवाब नहीं दिया। तीन बार और यही सवाल जैकब ने पूछा। फिर भी नियाजी चुप रहे। उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे।
इशारा तो जैकब समझ ही गए थे। सरेंडर के कागजात उन्होंने अपने हाथों में ले लिए। नियाजी से जैकब ने कहा- मैं मान लेता हूं कि आपने स्वीकार कर लिया है। इसके बाद जैकब ने नियाजी को बताया कि सरेंडर की व्यवस्था हो रखी है। रेस कोर्स में तुम्हारा सरेंडर होना है।
जैकब ने लगभग 3 बजे नियाजी को एयरपोर्ट चलने के लिए कहा। स्टाफ कार में दोनों सवार हुए। लगभग 4:30 बजे ये लोग एयरपोर्ट पहुंच गए। इधर 4 हेलीकॉप्टर और 5 M-14 फ्लीट के साथ जनरल अरोरा भी पहुंच गए थे।
रेस कोर्स के लिए जनरल अरोरा अपनी पत्नी और नियाजी के साथ निकल गए। जनरल जैकब सिपाहियों के साथ एक ट्रक में सवार हो गए और उनके पीछे बढ़ चले। रेस कोर्स में एक गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण हुआ। अरोरा और नियाजी कुर्सी पर बैठ गए।
जनरल नियाजी ने सरेंडर के दस्तावेजों पर 4:31 बजे हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के आगे हथियार डाल दिए। इस तरह से पाकिस्तान का आत्मसमर्पण हो गया। जनरल अरोरा को जनरल नियाजी ने अपनी पिस्टल भी सौंप दी।
भारतीय सेना की वीरता के सामने पाकिस्तानी सेना नतमस्तक हो गई। इस तरह से पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश के रूप में सामने आया। रेस कोर्स में बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। वे खूब हल्ला कर रहे थे। जनरल नियाजी को तो जैसे भीड़ मार ही देना चाहती थी। हालांकि, भारतीय सेना ने जनरल नियाजी को बचा लिया।