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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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भारत और पाकिस्तान के बीच इस जंग में दो सगे भाइयों का हुआ था आमना-सामना

जब भारत और पाकिस्तान के बीच पहली जंग हुई थी तब दोनों मुल्कों की सेना की ओर से दो सगे भाई गैब्रियल जोजेफ और राफेल जॉन युद्ध के मैदान में आमने-सामने थे।
Information Anupam Kumari 3 February 2020
भारत और पाकिस्तान के बीच इस जंग में दो सगे भाइयों का हुआ था आमना-सामना

भारत का जब 1947 में बंटवारा हुआ तो यह बंटवारा भारत को बहुत से ऐसे जख्म दे गया, जिसके घाव आज भी कई दिलों में ताजा हैं। आपको यह जानकर शायद हैरानी होगी कि जब भारत के बंटवारे के एक साल के बाद कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच पहली जंग हुई थी, उस जंग में दोनों मुल्कों की सेना की ओर से दो सगे भाई युद्ध के मैदान में आमने-सामने थे। जी हां, इस लड़ाई में दो सगे भाइयों का आमना-सामना हुआ था और इनमें से एक भारत की सेना में था, जबकि दूसरा पाकिस्तान की सेना में। यहां हम आपको ऐसे ही दो भाइयों के बारे में बता रहे हैं।

सेना में हुए शामिल

यह कहानी है संयुक्त भारत के पंजाब के शहर लायलपुर की। यह आज पाकिस्तान के पंजाब के फैसलाबाद में स्थित है। यहां एक छोटा सा गांव खुशपुर के नाम से हुआ करता था, जो कि मूल रूप से एक ईसाई गांव था। कहा जाता है कि इस गांव को आबाद बीसवीं सदी में बेल्जियम से आए मिशनरियों ने किया था। गैब्रियल जोजेफ नामक एक युवक का परिवार यहीं आकर बस गया था। एक बार गैब्रियल नौकरी की तलाश में अपने कुछ दोस्तों के साथ अमृतसर चले गए। कुछ लोगों की सलाह पर वे भारतीय सेना में शामिल हो गए। दूसरी ओर उनसे दो साल बड़े उनके भाई राफेल जॉन जो अमृतसर में थे, वे पहले से ही सेना में काम कर रहे थे। परिवार वालों ने सोचा कि अमृतसर से लायलपुर ज्यादा दूर नहीं है। ऐसे में गैब्रियल आते-जाते रहेंगे।

नहीं था अंदाजा

इसके बाद भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया। बंटवारे के बाद लायलपुर जहां पाकिस्तान में चला गया, वहीं अमृतसर भारत में रह गया। इस तरह से गैब्रियल जहां भारत में रह गए, वहीं बड़े भाई राफेल पाकिस्तान के हो गए। परिवार वालों को पहले लगा कि गैब्रियल को पाकिस्तान आने-जाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। शायद यह दिक्कत होती भी नहीं, लेकिन दोनों भाइयों के बीच सेना की नौकरी आड़े आ गई। इस वजह से गैब्रियल का पाकिस्तान और राफेल का भारत आना मुश्किल हो गया। इस बारे में राफेल जॉन की बेटी एस्टीला जॉन ने एक बार बीबीसी से बातचीत में बताया भी था कि उनके चाचा गैब्रियल ने उनसे कहा था कि उन्हें इस बात का तनिक भी अनुमान नहीं था कि भारत का बंटवारा होने जा रहा है। उन्हें तो लगा था कि यह महज अफवाह है, लेकिन अचानक बंटवारे की लकीर खींच दी गई और भारत और पाकिस्तान नाम के दो अलग-अलग मुल्क बन गए।

फिर से वापसी

बताया जाता है कि जब बंटवारे के एक वर्ष के अंदर ही भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने लगा तो इस दौरान दोनों भाई अपनी-अपनी सेना की ओर से सीमा पर लड़ने के लिए आमने-सामने हो गए थे। इस दौरान पाकिस्तान में रह रहे गैब्रियल के परिवार वाले बहुत परेशान हो गए थे। गनीमत रही कि इस युद्ध में इन दोनों ही भाइयों को कुछ नहीं हुआ और दोनों सही सलामत युद्ध से लौट गए। बताया जाता है कि पिता के अनुरोध करने पर 1960 में गैब्रियल ने सेना की नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन इसके 5 साल के बाद जब फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी तो उन्हें लड़ने के लिए वापस बुला लिया गया था। इस वक्त गैब्रियल के घर में कोहराम मच गया था। घरवालों का रो-रोकर बुरा हाल था। हालांकि इस दौरान बड़े भाई राफेल जॉन शारीरिक रूप से युद्ध के लिए अक्षम पाए गए और उन्हें वापस भेज दिया गया। इससे परिवार ने राहत की सांस ली थी।

ऐसे होता था संपर्क

बताया जाता है कि चिट्ठियों के माध्यम से ही गैब्रियल का अपने परिवारवालों से संपर्क होता था। बाद में फोन की सुविधा अमृतसर में शुरू हुई तो कभी-कभी फोन पर बात होने लगी। हालांकि, गैब्रियल के परिवार वाले उन्हें ज्यादा फोन भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि वे सेना में थे। उनसे यह सवाल किया जाता कि बार-बार उनके पास पाकिस्तान से फोन क्यों आ रहा है?

लौटे अपने घर

आखिरकार गैब्रियल ने 70 के दशक में सेना से अवकाश ले लिया। इसके बाद वे पाकिस्तान में अपने पैतृक घर पहुंचे। 19 साल का लड़का अब 50 वर्ष की उम्र में अपने घर लौटा था। मां-बाप तो एक बार अपने बेटे से मिलने की ख्वाहिश दिलों में दबाए ही संसार से विदा हो गए थे। फिर भी जब गैब्रियल अपने घर लौटे तो उनका जबरदस्त स्वागत किया गया था। पूरे गांव में त्योहार का माहौल बन गया था। वर्ष 2012 में बड़े भाई राफेल जॉन तो 2014 में छोटे भाई गैब्रियल ने भी हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद ली।

Anupam Kumari

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मेरी कलम ही मेरी पहचान