भारत को 1947 में आजादी मिल गई थी। देश की आजादी के बाद भी रहें इतनी आसान नहीं थीं। नई सरकार के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी थीं। खाद्यान्न की उपज को बढ़ाना इसमें सबसे प्रमुख था। जवाहरलाल नेहरू इस दिशा में कदम बढ़ा रहे थे। वे इसे लेकर बड़े चिंतित भी थे।
अन्न का उत्पादन बढ़ाना पहली प्राथमिकता थी। सरकारी बंगलो में भी अन्न उपजाए जाने लगे थे। यहां तक कि दिल्ली के पार्क में भी अन्य उपजाए जा रहे थे। प्रधानमंत्री नेहरू ने प्रधानमंत्री आवास तक का बगीचा उजड़वा दिया था। उन्होंने बगीचे में भी खेती करवा दी थी।
नेहरू ने प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेट्री को एक चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने यह पत्र 20 जुलाई, 1949 को लिखा था। इसमें उन्होंने अधिक अन्न उपजाओ अभियान को लेकर कई बातों का जिक्र किया था। उन्होंने इसके लिए दिल्ली में उपलब्ध जमीन को लेकर सुझाव दिए थे।
नेहरू ने लिखा था कि इस तरह की हर जमीन इस्तेमाल में लाई जानी चाहिए। बहुत से बड़े-बड़े कंपाउंड भी दिल्ली में मौजूद हैं। इन जगहों पर भी खाद्यान्न उपजाए जा सकते हैं।
नेहरू ने चिट्ठी में प्रिंसिपल प्राइवेट सेक्रेट्री से एक सवाल भी किया था। उन्होंने उनसे पूछा था कि स्टेट विभाग से क्या वे तत्काल कदम उठाने के लिए कहेंगे। यह भी उन्होंने लिखा था कि दिल्ली में एक भी फूल नहीं उगेंगे तो कोई बात नहीं। दिल्ली में मैदान और लॉन कम तादाद में हैं। किसी-न-किसी तरीके से खाद्यान्न उपजाना जरूरी है।
चिट्ठी में उन्होंने लिखा था कि वर्तमान हालात और संसाधनों पर सब कुछ निर्भर करेगा। गवर्नमेंट हाउस के बारे में गवर्नर जनरल पहले ही उदाहरण पेश कर चुके हैं। बिल्कुल ऐसा ही सभी मंत्रियों एवं सरकार के अधिकारियों को भी करना चाहिए।
गांधी की राह पर नेहरू
देश को आत्मनिर्भर बनाने में गांधी जी की बड़ी भूमिका रही थी। आमजनों को उन्होंने खादी का मंत्र दिया था। खादी के साथ चरखे का भी मंत्र गांधी जी ने दिया था। अपना कपड़ा खुद बनाने की राह पर चलने के लिए उन्होंने कहा था। नेहरू ने भी बिल्कुल वैसा ही किया। उन्होंने खाद्यान्न खुद पैदा करने का मंत्र दिया।
खाद्यान्न उत्पादन को लेकर नेहरू का इरादा पूरी तरीके से साफ था। तीन मूर्ति भवन के फूलों के बगीचे भी उन्होंने ट्रैक्टर से जुतवा दिए थे। अब फूलों की नहीं, बल्कि अनाज की खेती हो रही थी। डॉ राजेंद्र प्रसाद भी बिल्कुल ऐसा ही करना चाह रहे थे। राज्य संपदा विभाग ने कह दिया था कि यह संभव नहीं है। ऐसे में अधिकारियों को नेहरू ने डांट लगाई थी। राजेंद्र प्रसाद से उन्होंने कहा था कि वे अपने बंगले को ट्रैक्टर से जुतवा लें।
राज्य संपदा विभाग को नेहरू ने एक पत्र लिखा था। उसमें उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में बताया था। नेहरू ने लिखा था कि अपने मकान से सटी जमीन पर वे खेती करवाना चाहते हैं। इस पर राज्य विभाग आपत्ति कर रहा है। यह बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है। सरकार की यह नीति है। जमीन के एक-एक टुकड़े पर खाद्यान्न उत्पादन होना चाहिए।
नेहरू ने यह भी लिखा था कि दिल्ली की हर सरकारी जमीन को इसके लिए उपलब्ध कराना चाहिए। राज्य विभाग की यह जिम्मेवारी है। जमीन चाहे मकान से जुड़ी हो या किसी भी किस्म की हो। जरूरत पड़ने पर ट्रैक्टर से यहां भी जुताई हो सकती है। हल्के फगुरसन ट्रैक्टर भी अब कृषि मंत्री के पास हैं। इन्हें भी इसके लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। इन्हें आपको देने में उन्हें बड़ी खुशी होगी। अपने बगीचे के एक भाग को मैं इन्हीं से जुतवाने भी जा रहा हूं।
खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना था। तीन मूर्ति भवन में जुताई की गई राष्ट्रपति भवन में भी खेती होने लगी थी। ट्रैक्टर देश में ही बनने लगे थे। दुनिया के बड़े भोजन प्रबंधन विशेषज्ञों से सुझाव लिए जाने लगे। हर संभव कोशिश की गई। फिर भी 1951 तक भी अनाज का उत्पादन ज्यादा नहीं हो सका। विदेश से अनाज का आयात करने की जरूरत अब भी थी। नेहरू चिंतित तो हुए, मगर वे निराश नहीं थे।
नेहरू ने लाल किले से 15 अगस्त, 1952 को संबोधित किया था। इसमें उन्होंने देश के कई हिस्सों में आई प्राकृतिक आपदाओं का जिक्र किया। उन्होंने माना कि तय तारीख पर देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन सका। देश के कई हिस्सों में खाद्यान्न की भारी कमी है। हमें अपनी कोशिशें जारी रखनी पड़ेंगी।