कहने को तो आज़ादी एक बहुत साधारण विषय है पर, आज़ादी अपने आपमें एक बहुत बड़ा शब्द है, जिसका विस्तरण और सम्बंध इस दुनिया की छोटी से छोटी संरचना से लेकर पूरे ब्रह्माण्ड से है।
हर व्यक्ति देशभक्ति के गीत सुनकर कहीं न कहीं भावुक होते हुए, अपने सीने में देश की लिए कुछ कर गुज़रने की भावना को जागते हुए, अपने देशपर गर्व से ओतप्रोत हो रहा था ।
लेकिन कब तक दोस्तों? १५ अगस्त ख़त्म और देशभक्ति का असल पर्याय बदल उठा आखिर क्यों ? जहाँ तहाँ तिरंगा झंडा फेका दिख जाएगा, भारत माता की मूर्ति विसर्जन के साथ ही लोग बॉलीवुड के आइटम सांग्स पर थिरकते नज़र आएंगे ।
क्यों ?
नहीं, सवाल नहीं पूछ रहा । मैं कौन होता हूँ किसी की देशभक्ति साबित करने वाला?
लेकिन एक भारतीय होने के नाते एक इच्छा रखते हुए कह रहा हूँ ।
बस यही उम्मीद है कि यह भावनायें सदा हर दिल में बस्ती रहे और हम सब निःस्वार्थ होकर अपने देशहित के प्रति जागरूक रहें, नाकि १५ अगस्त है तो भर भर कर देशभक्ति का गुणगान करें ।
देश की आज़ादी तो बहुत बड़ा पैमाना है, चलिए आज हम अपने संघर्ष के दायरे को समेट कर, अपने आपको आज़ाद करने की एक कामियाब कोशिश करते हैं ।
हमारे अपने व्यक्तित्व का एक पहलु ” स्वार्थ ” जो की सबसे बड़ा गुण है, पर एक बात का मैं पहले ही खुलासा करदूँ, मैं स्वार्थ की परिभाषा या उसको किसी अच्छाई या बुराई से मापदंड नहीं कर रहा हूँ, अगर करूंगा तो तर्क – वितर्क होगा, सबका अपना नजरिया होगा ।
मैं अपनी बात को आसान शब्दों में बयान करने का प्रयास करता हूँ, यक़ीनन आपको समझ में आजायेगा । जब कोई व्यक्तित्व ‘ स्वार्थ ‘ के धुंए से घिर जाता है, उसे अपनी इच्छा और कामना के सिवा कुछ और नज़र नहीं आता, वो केवल अपने मनोरथ और इच्छाओं की पूर्ती में संलग्न रहता है । मैं जानता हूँ, मैं जो कहने जा रहा हूँ कोई आसान काम नहीं है, पर मुमकिन ज़रूर है । किसी भी अच्छे बदलाव की कोशिश हमें अपने आप करनी होती है, मेरा मानना है कि, इस बात से हम सब सहमत हैं ।
तो शुरुवात करते हैं अपने आप से,
हमें किसी ऐसे परिचित व्यक्ति को अपनी क्रिया में सम्मिलित करना होगा, जिसके साथ हम ज़्यादा से ज़्यादा समय व्यतीत करते हैं, और खासकर उस व्यक्ति की प्रति जब हमारा व्यवहार एक तरफ़ा हो (अपनी स्वार्थ सिद्धि) ।
अब हमें शुरुआत ऐसे करनी है कि हम अपने उसी साथी की छोटी छोटी इच्छा / आशा के अनुरूप काम करना है, जिस से वैचारिक या मानसिक अलगाव कम होता चला जाये और धीरे धीरे सामंजस्य बढ़ेगा और बिना किसी कठिनाई के हम जीवन मार्ग पर प्रगति की दिशा में अग्रसर होते रहेंगे ।
वैसे मुझे कहना तो नहीं चाहिए पर फिर कहूंगा, दुसरे व्यक्ति की इच्छा या आशा का ध्यान तो ज़रूर रखना पर अपने व्यक्तित्व को बिना खोये एक सीमित दायरे में रहकर । बस इसी तरह अगर समाज का हर एक व्यक्ति एक दुसरे के प्रति समर्पित और निस्वार्थ भाव से सामंजस्य बनाते हुए जियेगा, तो कहीं न कहीं हम सब देश का उज्वल भविष्य निर्माण कर सकते हैं ।
सोंचने में तो यह एक अबोध बालक की कल्पना जैसा है, पर अगर सच होजाये तो कितना अच्छा होगा, समाज का हर व्यक्ति अपने स्वार्थ की भावना से मुक्त होकर, देश की प्रगति में अपना सकुशल योगदान दे सकता है । मेरे विचार से यह होगी ये होगी सच्ची आज़ादी ।