भारतीय अर्थव्यवस्था गड्ढे में जा रही है. देश में बेरोजगारी ने रिकाॅर्ड ध्वस्त कर दिया है. एक तो नौकरी मिल नहीं रही और दूसरी तरह जिनकी है, उनकी नौकरी जा रही है. इसी तरह की एक और बुरी खबर आ रही है कि इस साल निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की सैलरी उनकी उम्मीदों के अनुरुप नहीं बढ़ने वाली है या कह सकते हैं कि इस साल सैलरी में कोई इजाफा नहीं होने वाला है.
अर्थव्यवस्था इस कदर प्रभावित होती जा रही है कि इस साल कई निजी कंपनियों ने सैलरी बढ़ाने से इंकार कर दिया है. अधिकांश कंपनियों ने नाम मात्र की सैलरी बढ़ाने की बात स्वीकार की है. सीएमआईई की ओर से जारी ताजे आंकड़ों के अनुसार यह तथ्य सामने आया है कि प्राइवेट सेक्टर में इस वर्ष सैलरी में बढ़ोतरी पिछले 10 साल के सबसे न्यूनतम स्तर पर रही है. वहीं बात बेरोजगारी की करें तो भारत में बेरोजगारी दर इस समय 6.1 प्रतिशत है जो अब तक का सबसे उच्च स्तर है.
देश के प्रतिष्ठित मीडिया समूह हिंदुस्तान टाइम्स की ओर से सीएमआईई प्राॅवेस डाटाबेस के विस्तृत विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो साल में भारतीय कंपनियों अथवा भारत में व्यापार कर रही कंपनियों के कारोबार में गिरावट आई है जिसकी वजह से भारतीयों की आमदनी प्रभावित हुई है.इसी वजह से निजी क्षेत्र में सैलरी बढ़ोतरी की दर बीते दस सालों में सबसे खराब हो गई है.
एक और सर्वेक्षण एजेंसी केयर रेटिंग्स ने भी अपने सर्वेक्षण में यह पाया है कि भारत में इस वित्तीय वर्ष में भर्तियों की हालत बेहद खराब है और दिन प्रतिदिन ये बदतर होती जा रही है. आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों की मानें तो ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ये एक सदमे की तरह है, इससे उबरने की कोशिशें शुरु नहीं की गई तो भारत कितने साल पीछे चला जाएगा, इसका अनुमान लगाना कठिन है.
देश में जिन क्षेत्रों में रोजगार देने की व्यापक संभावनाएं हैं, वो बुरी तरह से मंदी की चपेट में हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम ऑटोमोबाइल सेक्टर, लाॅजिस्टिक, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, बैंकिंग, बीमा सेक्टर आदि है. इन सेक्टर्स में मंदी की मार इस कदर पड़ी है कि लगता है कि जैसे ये भर्ती करना ही भूल गए हैं. यही वजह है कि भारत का रोजगार परिदृश्य धुंधला दिखाई पड़ने लगा है जो बेहद चिंताजनक स्थिति है.
पीएलएफएएस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2011 12 में बेरोजगारी की संख्या 1.08 करोड़ थी जो वर्ष 2017 18 में बढ़ कर दोगुनी से भी ज्यादा 2.85 करोड़ पहुंच गई है. 1999 2000 तथा 2011 12 के बीच बेरोजगारों की संख्या 01 करोड़ के करीब थी. देश भर में एक बड़ी जनसंख्या श्रम बल में शामिल हो रही है लेकिन रोजगार पैदा नहीं हो पा रहे हैं.
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि देश की जनता और मीडिया इस मुद्दे पर खामोश है और अपनी आने वाली पीढ़ियों की बर्बादी की दास्तां अपने हाथों से लिख रही है.