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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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क्या सरकार की आलोचना या सवाल करना अब देशद्रोह हो गया है?

पहले 49 नागरिकों का पत्र और अब 185, ये देश के वो नागरिक हैं, जो देश में गद्दारों वाला काम कर रहे हैं। इसलिए तो 49 लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया है।
Logic Politics Tadka Taranjeet 8 October 2019

पहले 49 नागरिकों का पत्र और अब 185, ये देश के वो नागरिक हैं, जो देश में गद्दारों वाला काम कर रहे हैं। इसलिए तो 49 लोगों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया है। इन 49 लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारे देश के वजीर-ए-आजम को पत्र लिख कर ये कहने की वो मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाएं, इस पर रोक लगाई जाए। इन लोगों ने तो कई अपराध कर दिए हैं, पहला तो हमारे प्रधानमंत्री से सवाल किया, दूसरा जय श्री राम का नारा लगा कर लोगों की हत्या करने वाले हिंदू भक्तों की भीड़ के खिलाफ कानून लाने वालों के लिए सजा मांग ली। ये मुर्ख लोग क्या समझें कि हमारा देश संविधान से नहीं बल्कि जय श्री राम के नारे से चल रहा है।

एक आदमी पर लोगों ने ही कर दिया फैसला

हाल ही का एक मामला है, बिहार में एक आदमी को मार दिया गया, हां माना कि उस पर हत्या का आरोप था, लेकिन उसके लिए हमारे देश में कानून और न्याय है। जो उसे सजा देता, लेकिन नहीं लोगों को इतना सब्र पसंद नहीं आया और उन्होंने दे दना दन मुक्के ही मुक्के एक इंसान पर बरसा दिए, क्योंकि उस पर हत्या का आरोप था। मामला सिर्फ यही नहीं था इन लोगों के साथ ही पुलिस भी खड़ी हुई नजर आई और उनकी रोकन की हिम्मत नहीं हुई। अब ये पुलिस भीड़ के सामने बेबस थी, जय श्री राम के नारे के सामने लाचार थी या फिर इस मामले में मिली हुई थी।

अब ऐसे में देश की 49 हस्तियां सरकारModi government को पत्र लिखती हैं और कहती है कि मॉब लिंचिंग पर कानून बनाया जाए और उन पर देश द्रोह का मुकदमा चालू कर दिया जाता है। मेरी नजर में बिहार के एक कोर्ट का इन 49 लोगों पर एफआईआर करने का आदेश झकझोरने वाला, निराशाजनक और कानून के वास्तविक अर्थ को गलत ठहराने वाला है। राजद्रोह, सार्वजनिक उपद्रव, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने और शांति भंग करने से संबंधित आरोपों पर आईपीसी की कई धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। लेकिन अंधभक्तों के अलावा ज्यादातर लोग सहमत होंगे कि खत लिखने वालों का उद्देश्य वही था, जो एक लोकतंत्र में आदर्श नागरिक का होना चाहिए, यानी की प्रधानमंत्री से, सरकार से सवाल करना, वाद-विवाद करना, असहमति और राष्ट्र के मुद्दों पर सत्ता को चुनौती देना। यही तो शायद Open democracy लोकतंत्र की पहचान होती है।

क्या अंग्रेजों के युग में आज भी जी रहे हैं हम?

राजद्रोह के कानून 17 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में उस वक्त बनाए गए जब विधान बनाने वालों को लगता था कि सरकार के बारे में सिर्फ अच्छे नजरिए ही होने चाहिए। बुरे नजरिए सरकार और राजशाही के लिए खतरा होते हैं। इसी भावना को 1870 में आईपीसी में शामिल कर लिया गया। ये कानून पहली बार बाल गंगाधर को सजा देने के लिए साल 1897 में इस्तेमाल किया गया था। इस केस में आईपीसी की धारा 124A (राजद्रोह से संबंधित) को संशोधित किया गया। इसमें ‘घृणा’, ‘अवमानना’ और ‘वैमनस्य’ शामिल किए गए ताकि बेवफाई और ‘दुश्मनी की भावना’ को भी साथ लिया जा सके। साल 1908 में जब राजद्रोह के एक दूसरे केस में बाल गंगाधर तिलक को दोषी साबित किया गया तो उन्होंने कहा कि सरकार ने पूरे देश को एक जेल में बदल दिया है और हम सभी इसके बंदी हैं।’ गांधी पर भी बाद में यंग इंडिया में लिखे गए आर्टिकल पर राजद्रोह का मामला चला और जैसा विख्यात है, उन्होंने साहस के साथ अपने ‘अपराध’ को माना।

हालांकि तब हम गुलाम थे लेकिन आज भी कुछ खास आजाद नहीं नजर आ रहे हैं। क्योंकि अगर सरकार की आलोचना करना या उनकी नीतियों पर सवाल उठाना देशद्रोह हैं और धारा 124 का इस्तेमाल किया जा रहा है तो ये गुलामी नहीं तो और क्या हैं। जिस सरकार में आज हम हैं क्या वो अंग्रेजों की हूकुमत की तरह पेश नहीं आ रही है। क्या हमारे देश में अगर कोई नागरिक सरकार से सवाल करेगा तो उसे देश द्रोही कह देंगे। क्या उसका आधार ये होगा कि वो पिछली सरकार से सवाल नहीं करता था, इस सरकार से करता है, इसलिए वो देश द्रोही है। कुछ तर्क दिए जाते हैं कि ये लोग कांग्रेस के चमचे हैं, इसलिए सवाल नहीं करते हैं तो क्या फिर हम ये कह दें कि अन्ना हजारे का भारतीय जनता पार्टी से कोई रिश्ता था? क्योंकि वो भी भाजपा सरकार में लोकपाल औऱ भ्रष्टाचार पर कुछ खास बोलते हुए नजर नहीं आए हैं। क्या हमारे देश से भ्रष्टाचार खत्म हो गया है जो अन्ना हजारे चुप हो गए हैं, जी नहीं लेकिन उन्हें अभी सही नहीं लग रहा कि वो कुछ बोले, ठीक वैसे ही जैसे इन 49 नागरिकों को लगा कि पहले ठीक था शायद अब ज्यादा खराब हो गया है। मैं आज के मॉब लिंचिंग के मामलों में और कल के मामलों में नहीं जाउंगा वो राजनीतिक चर्चा का विषय हो सकता है जिसमें हकीकत से परे ले जाने की कोशिश की जाती है। लेकिन इन नागरिकों के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज हुआ है वो यकीनन लोकतंत्र के खिलाफ है।

185 नागरिक आए समर्थन में

तभी तो देखिये न इन 49 लोगों के समर्थन में और 185 नागरिकों ने प्रधानमंत्री और सरकार को खुला पत्र लिख दिया है। इन लोगों ने लिखा कि हमारे 49 साथियों पर केवल इसलिए fir दर्ज कर दी गई है क्योंकि उन्होंने समाज के एक जिम्मेदार नागरिक होने का उदाहरण दिया था। उन्होंने प्रधानमंत्री को देश में हावी हो रहे भीड़तंत्र और मॉब लिंचिंग पर एख खुला पत्र लिखा था। क्या ये देशद्रोह है? या एक साजिश है न्यायालयों का इस्तेमाल कर देश के नागरिकों की आवाज दबाने की? ये कुछ सवाल इस पत्र में लोगों ने किए हैं।

हम सभी जो भारतीय सांस्कृतिक समुदाय का हिस्सा हैं, एक विवेक पसंद नागरिक होने के नाते, इसकी कड़ी शब्दों में निंदा करते हैं। हम अपने साथियों द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र के हर एक शब्द का समर्थन करते हैं। इसलिए वो पत्र हम एक बार फिर साझा करते हुए सांस्कृतिक , शैक्षणिक और विधिक समुदाय से अपील करते हैं कि वो इसे आगे बढ़ाएं। हम जैसे अनेक, रोज आवाज उठाएंगे। मॉब लिंचिंग के खिलाफ। प्रतिरोध पर हमले के खिलाफ। दमन के लिए कोर्ट के इस्तेमाल के खिलाफ। क्योंकि ये जरूरी है। इस पत्र के साथ अपर्णा सेन, अडूर गोपालकृणन, श्याम बेनेगल, अनुराग कश्यप, आशीष नंदी और रामचंद्र गुहा सहित 49 प्रतिष्ठित नागरिकों द्वारा 23 जलाई 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र को भी साझा किया गया है।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई रैलियों में कहा है कि आलोचना करना लोकतत्र की रीढ़ की हड्डी के सामान होता है। अब अगर आलोचना करने पर सजा होने लगी है तो समझ लें कि लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी टूट गई है या फिर प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं। लेकिन मैं ये तो दावे से कह सकता हूं कि लोकतंत्र में आलोचना सबसे अहम होती है। सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना, सरकार से सवाल करना यही एक सशक्त लोकतंत्र बनाता है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.