भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में गृहमंत्री बनने के बाद से ही पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे, और इस पद के लिए गहमा-गहमी भी काफी तेज हो गई थी। मीडिया में रोज एक नया नाम सामने आता जिसे अमित शाह के बाद पार्टी का अध्यक्ष बताया जाने लगा। लेकिन मामले में ट्विस्ट आया और सभी के सारे गुणा गणित फेल हो गए क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह एक बार फिर से पार्टी अध्यक्ष का पद संभालने वाले हैं, वो भी जब वो गृहमंत्री के पद पर है। लेकिन पार्टी ने जेपी नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बनाया है। शायद पार्टी को भरोसा नहीं है कि वो अच्छे से संभाल पाएंगे या नहीं। हालांकि ऐसे में एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या इस वक्त देश में सबसे ज्यादा राज्यों में सत्ता में होने वाली भारतीय जनता पार्टी जिसके सामने पूरा विपक्ष फेल होता जा रहा है, उसके पास कोई नेता ही नहीं है जो पार्टी का कार्यभार संभाल सके।
बीजेपी के नेताओं का कहना है कि अमित शाह के अध्यक्ष बने रहने के पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि जिस तरह से पार्टी को जमीनी स्तर पर अमित शाह की अध्यक्षता में मजबूती मिली है वैसा कभी हुआ नहीं है। इसके अलावा पार्टी में अमित शाह की भरपाई कोई भी पूरा नहीं कर सकता है। वहीं एक परिवार का सत्ता में और पार्टी में कब्जा रखने का आरोप लगाने वाली भारतीय जनता पार्टी इस वक्त खुद ऐसे माहौल में है कि उसके पास सिर्फ एक ही चेहरा है और एक ही अध्यक्ष है, और अगर कोई है भी तो वो पक्का नहीं है। क्यों ना हम इसे ये कह दें कि नरेंद्र मोदी और शाह की जोड़ी ने पूरी बीजेपी को हाईजैक ही कर लिया है। कोई नेता इन दोनों के खिलाफ नहीं बोल सकता, कोई नेता इनकी जगह नहीं ले सकता तो क्या ये तानाशाही की तरफ बढ़ता हुआ एक कदम नहीं है। इस जय वूरी का पूरी भारतीय जनता पार्टी के पास विकल्प ही नहीं है।
साथ ही क्या हुआ उस संविधान का जिसका हर बार संबित पात्रा जैसे प्रवक्ता टीवी शो में बैठ कर हवाला देते थे, कि हमारी पार्टी का संविधान एक व्यक्ति या परिवार के बल पर ना चलने की सलाह देता है। हम अपने संविधान के तहत चलते हैं। लेकिन अब ये बीजेपी का संविधान शायद आडवाणी और जोशी जी की तरह हो गया है। जो सिर्फ मार्गदर्शन करता है, उसे मानता कोई नहीं है। क्योंकि जिस बीजेपी के अंदर पहले हर कुछ वक्त में अध्यक्ष बदलता रहा है, वहीं अब पिछले 5 सालों से तो एक ही इस पद पर कायम है। भारतीय जनता पार्टी के संविधान के मुताबिक लोग ‘एक व्यक्ति, एक पद’ के सिद्धांत के अनुसार तो अमित शाह के गृहमंत्री पद पर विराजमान होने के बाद उनको पार्टी के पद को छोड़ देना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण पीयूष गोयल है। गोयल पिछली मोदी सरकार में मंत्री बनने से पहले पार्टी के कोषाध्यक्ष के पद पर थे लेकिन जब उन्हें मंत्री बना दिया गया तब बीजेपी ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर से कोषाध्यक्ष के पद से उनका नाम हटा दिया था हालांकि ये अलग बात है कि किसी और का नाम नहीं डाला गया था।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के संविधान के मुताबिक एक अध्यक्ष को सिर्फ 3 साल का ही कार्यकाल मिलता था, लेकिन अब 2012 के बाद ये बदलाव किया गया है कि अब एक अध्यक्ष को 2 कार्यकाल दिये जाएंगे। आपको बता दें कि अमित शाह ने 2016 में अधिकारिक तौर पर पद संभाला था जो कि 2019 जनवरी में खत्म हो गया था। इसलिए अब उनको दूसरा कार्यकाल मिलेगा तो वो 2022 तक अध्यक्ष रह सकते हैं। हालांकि 2016 से पहले भी वो अध्यक्ष पद पर ही थे, लेकिन आधिकारिक तौर पर नहीं थे। खैर मोदी-शाह की जोड़ी को वैसे भी देश के संविधान के साथ कबड्डी खेलते देखा जा रहा है, तो पार्टी का संविधान कौन सा मायने रखता है।
वैसे एक बात है कांग्रेस इस बात के लिए हर वक्त आलोचना सहे, और बीजेपी करे तो इस पर सभी बड़े पत्रकारों की जुबान पर ताला क्यों लग जाता है। ये तो वही बात हो गई शाह करे तो रासलीला, राहुल करे तो कैरेक्टर ढीला। ये दोगला रवैया तो खैर पिछले 5 सालों से मीडिया और नेताओं ने तो अपनाया ही हुआ है, अब शायद और 5 साल ऐसा होने वाला है।
बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं को ये लोलीपॉप शायद दिया गया होगा कि आपको मंत्रिमंडल में नहीं रखेंगे लेकिन आप अगले पार्टी अध्यक्ष होंगे, इनमें शायद हम जेपी नड्डा का नाम ले सकते हैं। अब खैर देखते हैं कि क्या बीजेपी को नया अध्यक्ष मिलता है या फिर से शाह और मोदी की जोड़ी ही पार्टी को अपना बनाए रहती है।