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रेप के अपराधी को गोली मारना सही है, लेकिन उसका तरीका क्या हो?

तेलंगाना में एक डॉक्टर का रेप हुआ और उसके बाद उसे जलाकर मार दिया गया। इस हादसे के बाद से पूरे देश में गुस्से की एक लहर चली। लोगों ने फिर से फांसी, फास्टट्रैक कोर्ट की मांग करी और सड़क से लेकर संसद तक इस हादसे पर बहस चली। लेकिन अचानक से एक दिन सुबह आंख खुली और देखा कि उस लड़की के रेप के चारों आरोपी मारे गए। ये तेलंगाना रेप केस का फैसला हो गया था। जो कि पुलिस ने एनकाउंटर के जरिये कर दिया था। लोगों ने खुशियां मनाई, मिठाई बांटी, फूल बरसाएं और पुलिस वालों को सलाम करने जैसे कई फेसबुक पोस्ट सोशल मीडिया पर आए।

2 हिस्सों में बंट गई फेसबुक आर्मी

इस पूरे एनकाउंटर के बाद से लोग 2 हिस्सों में बंटे हुए थे। एक खुश और दूसरे डरे हुए। जो लोग डरे हुए थे उनका मकसद रेप करना या रेप को सही ठहराना नहीं थे। बल्कि वो इस बात से डरे हुए थे कि जो लोग इस पर खुश है वो संविधान, लोकतंत्र, कानून, न्यायालय, संसद पर अपना विश्वास खो चुके हैं। उनका डर एक हद तक सही था। क्योंकि अगर ऐसा बार बार होने लगा तो शायद ये आदत बन जाएगी और ऐसे में बेगुनाह भी मारे जा सकते हैं। ये लोग दिमाग से सोच रहे थे और आगे के बारे में सोच रहे थे। इन लोगों को बहुत गालियां सुननी पड़ी, बहुत लोगों का विरोध सहना पड़ा। लेकिन मेरी नजर में ये किसी भी तरह से गलत नहीं थे।

वहीं एक पक्ष था जो इस एनकाउंटर से बहुत खुश था। जो कह रहा था कि ऐसा ही होना चाहिए रेपिस्ट को किसी भी तरह से बख्शा नहीं जाना चाहिए। ये वो लोग है जो दिल लगा रहे थे, जिन्होंने सड़क, फेसबुक, सोशल मीडिया पर जंग लड़ी है। महिलाओं के लिए किसी न किसी तरह से आवाज उठाई है। इन्होंने दरकिनार कर दिया कि किसी रेपिस्ट को मानवाधिकार हो। और सही भी है जो दानव जैसी हरकत करता है वो मानवाधिकार पाने के लायक भी नहीं है। उसे गोली अकेले में नहीं बल्कि चौराहे पर लाकर मारी जानी चाहिए। ये लोग भी मेरी नजर में बिलकुल सही है, इस खुशी में शामिल होना भी सही है।

दिल और दिमाग में गलत कौन?

लेकिन एक सवाल है अगर दोनों ही सही है तो गलत कौन है। दरअसल तेलंगाना रेप केस में हुए इस एनकाउंटर में कोई गलत नहीं है। जो इसे सही कह रहे हैं वो दिल लगा रहे हैं और जो इसे गलत कह रहे हैं वो दिमाग से सोच रहे हैं। ये सजा बिलकुल ठीक दी गई है, अगर ये चारों है और जो कहानी पुलिस ने बताई है वो सच है। लेकिन अगर ये लोग निर्दोष है या ये सिर्फ मोहरे थे असली बादशाह कोई और है तो फिर शायद यहां पर जल्दबाजी हुई है। साथ ही इस फैसले कि खुशी है लेकिन अगर ये कोर्ट की तरफ से आता तो ज्यादा खुशी और गर्व महसूस होता। क्योंकि तब ये एक कानून बन गया होता और पुलिस को ऐसी कहानियां नहीं बनानी पड़ती और एक अच्छे फैसले में खुद को साबित नहीं करना पड़ता।

लोग इसमें एक दूसरे की कमियां निकाल रहे हैं दिल वाले दिमाग वालों को गलत बोल रहे हैं। दिमाग वाले दिल वालों को समझा रहे हैं कि ये कोई फैसला करने का तरीका नहीं है। ये काम कोर्ट का है, पुलिस का नहीं। लेकिन इन दोनों ही पक्षों को ये समझना जरूरी है कि आप एक दूसरे को समझा कर या उनसे लड़कर उस हर एक रेप पीड़िता को कमजोर कर रहे हैं। इनके लिए आप सबने एक साथ लड़ाई लड़ी थी, लेकिन आज आप दोनों के बंट जाने से ये लड़ाई कमजोर हो गई है और इसका फायदा अपराधियों को मिलेगा।

जो हुआ सही हुआ लेकिन तरीका सही हो सकता है

ये जो भी हुआ अगर ये एक बार सिर्फ उदाहरण के लिए हुआ है तो एकदम सही है। लेकिन अगर ये आदत बनने जा रही है और लोग ऐसा करने की मांग कर रहे हैं तो फिर गलत है। क्योंकि ऐसे में पुलिस इसका गलत इस्तेमाल भी कर सकती है। और किसी बेगुनाह को सजा दे सकती है। आपको रेयान इंटरनेश्नल स्कूल वाले बच्चे का केस तो याद होगा। उसमें भी पहले पुलिस ने कंडक्टर को आरोपी माना था, लेकिन बाद में वो निर्दोष निकला। तब भी कहा गया था कि उसे फांसी दे दो और गोली मार दो। लेकिन अगर वो मर जाता तो? लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि फांसी न हो या गोली न मारी जाए। रेप के आरोपी की यही सजा होनी चाहिए। लेकिन सही तरीके से और पूरे कायदे कानून का पालन करते हुए। क्योंकि कहीं पुलिस वालों ने जॉली एलएलबी 2 देख ली तो इस कानून का गलत इस्तेमाल हो सकता है। इसलिए आप सब एक दूसरे से सवाल या एक दूसरे को गलत साबित करने की जगह पर एक सुर में मिलकर सरकार के पास जाएं। वहां पर जा कर गोली मारने की सजा की मांग करें लेकिन कोर्ट के द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद।