जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाया जा चुका है। जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्रशासित प्रदेश भी बन गया है। जम्मू-कश्मीर को लेकर विवाद तो आजादी के बाद से ही चला आ रहा है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर इसे लेकर कई आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर मुद्दे को ले जाकर उन्होंने गलती की थी। इसके कारण ही कश्मीर अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया। हालांकि, जिन्ना कुछ और ही मानते थे। उनका कहना था कि नेहरू ने इसके जरिए एक बड़ी चाल चली है।
लॉर्ड माउंटबेटन का था प्रस्ताव
पीयूष बबेले ने अपनी किताब ‘नेहरू मिथक और सत्य’ में इसके बारे में विस्तार से लिखा है। जिन्ना कश्मीर में जनमत संग्रह का विरोध कर रहे थे। उनका मानना था कि औसत मुसलमान पाकिस्तान के पक्ष में वोट नहीं देंगे। जनमत संग्रह का प्रस्ताव लॉर्ड माउंटबेटन ने लाया था। उन्होंने ही जिन्ना के सामने यह प्रस्ताव रखा था।
चिट्ठी में नेहरू ने बताई थी योजना
नेहरू ने बड़ा दिमाग लगाया था। बहुत सोच-समझकर वे कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे। नेहरू ने कश्मीर के महाराज को 23 दिसंबर, 1947 को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें उन्होंने अपनी रणनीति के बारे में बताया था। इसे गुप्त रखने की भी बात उन्होंने इसमें लिखी थी।
चिट्ठी में नेहरू ने लिखा था कि संयुक्त राष्ट्र संघ का ध्यान पाकिस्तानी आक्रमण की ओर खींचना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र से हम मदद की अपील करेंगे। पाकिस्तान को आक्रमण रोकने का आदेश देने के लिए हम अनुरोध करेंगे। चार से पांच दिन हम पाकिस्तान के जवाब का इंतजार करेंगे। फिर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा समिति के सामने इसे रख देंगे। सारी कार्यवाही जल्द पूरी हो जाएगी। अपना कमीशन सुरक्षा समिति शायद भारत भेज सकती है। सैन्य कार्यवाही यथावत चलती रहेगी। इस योजना को बस गोपनीय रखना होगा।
क्या थी दरअसल नेहरू की चाल?
अब नेहरू की चाल को समझें। भारत को पीड़ित पक्ष वे संयुक्त राष्ट्र में दिखाना चाहते थे। कश्मीर में सैन्य पकड़ भी वे मजबूत बना रहे थे। कश्मीरियों से रिश्ते सुधारना भी जरूरी था। जनमत संग्रह में इसका फायदा मिलता। भारत ने 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र में आवेदन दे दिया।
हालांकि, चीजें भारत की उम्मीदों के विपरीत हुईं। उम्मीद के मुताबिक समर्थन संयुक्त राष्ट्र संघ से भारत को नहीं मिला। फिर भी आज तक भारत को इसका कोई नुकसान नहीं नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र की टीम दोनों ही देशों का दौरा नहीं कर पा रही है। न तो पाकिस्तान इसकी अनुमति देता है और न ही भारत। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को भी दोनों ही देश मंजूर नहीं करते।
छोड़ा जनमत संग्रह का इरादा
जनमत संग्रह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से पाकिस्तान का कब्जा छोड़े बिना नहीं हो सकता। पूरा कश्मीर ही भारत में मिल सकता था। केवल इसका एक टुकड़ा नहीं। नेहरू ने बाद में जनमत संग्रह का इरादा छोड़ दिया था। अपनी स्थिति और मजबूत वे बनाना चाहते थे। कश्मीर मुद्दे को लेकर वे सोवियत संघ के राष्ट्रपति खुश्चेव के पास भी पहुंच गए थे। खुश्चेव का भी भारत को कश्मीर की नीति पर समर्थन मिला था।
शेख अब्दुल्ला को जेल
शेख अब्दुल्ला से नेहरू की अच्छी दोस्ती थी। उन्हीं के कहने पर महाराजा हरि सिंह को उन्होंने समर्थन दिया था। शेख अब्दुल्ला को कश्मीर की सरकार सौंपी गई थी। बहुलतावाद के सिद्धांत के मुताबिक नेहरू ने ऐसा किया था। हालांकि, बाद में दोस्त शेख अब्दुल्ला को जेल में ठूंसने से भी वे नहीं चूके। 10 साल तक शेख अब्दुल्ला जेल में रहे।
क्या चाहते थे नेहरू?
नेहरू चाहते थे कि किसी भी तरीके से कश्मीर भारत में ही रहे। अमेरिका का कोई सैन्य ठिकाना वे कश्मीर में नहीं चाहते थे। तब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध चल रहा था। नेहरू नहीं चाहते थे कि भारत पर इसका प्रभाव किसी भी तरीके से पड़े। महात्मा गांधी के भी सिद्धांतों का वे सम्मान करना चाहते थे। गांधी जी ने एक बार बड़ी महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने कहा था कि देश का आकार छोटा हो जाए तो इससे कोई दिक्कत नहीं है। भारत की आत्मा से समझौता नहीं होना चाहिए।
कामयाब हुए नेहरू
कश्मीर को भारत में रखना आसान नहीं था। ब्रिटेन और अमेरिका की नीति भी कश्मीर के पाकिस्तान में होने के पक्ष में थी। बहुसंख्यक आबादी का फार्मूला भी इसी का समर्थन कर रहा था। फिर भी नेहरू कश्मीर को भारत में रखने में कामयाब हुए। कश्मीर के राजा को मनाने में थोड़ी देर हुई। नहीं तो अक्टूबर 1948 के पहले हफ्ते में ही वहां भारत की सेना होती। पाक अधिकृत कश्मीर आज मानचित्र पर नहीं होता।