कश्मीर और धारा 370 की बात को लेकर भाजपा और संघ विचारधारा के समर्थक देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और कांग्रेस को अक्सर कोसते नजर आते हैं. वही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता भी अक्सर इस मुद्दे को लेकर आजादी के सात दशक बाद भी कांग्रेस और गांधी नेहरु परिवार की आलोचना करते हैं लेकिन इतिहास का सच कुछ और ही बताता है. पंडित नेहरु कश्मीर में धारा 370 लागू करने के जहां प्रबल विरोधी थें तो उन्हीं के सहयोगी और केंद्रीय गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल हर कीमत पर धारा 370 के पक्ष में थें. इसे लेकर दोनों के बीच कई बार विवाद हुए.
आइए, उन तथ्यों पर गौर पर करते हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि भारत के संविधान में धारा 370 जोड़ने का काम सरदार पटेल ने किया, न कि पंडित नेहरु ने.
- संविधान सभा की बैठकों में कांग्रेस ने धारा 370 का हमेशा विरोध किया और कहा कि इसकी वजह से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त हो जाएगा, जो समानता के अधिकार के उलट होगा. यही वजह रही कि कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्ला कांग्रेस और नेहरु का विरोध करते रहें.
- सरदार पटेल और पंडित नेहरु में भले ही मतभेद रहते थें लेकिन दोनों इस बात का ध्यान रखते थें कि किसी वजह से उन्हें नीचा न दिखना पड़े. कई बार इस मुद्दे पर तीखी बहस के बाद संविधान सभा की बैठक से पूर्व नेहरु को समझा बुझा कर सरदार पटेल ने उन्हें शांत कराया और इतने तार्किक तरीके से बातों का समझाया कि इस बैठक में कोई उनकी बातों को काट नहीं सका.
- नेहरु ने बार बार कांग्रेस की बैठकों में इस बात को कहा कि व्यक्तिगत रुप से मैं संविधान की धारा 370 का विरोध करता हूं लेकिन मैं नहीं चाहता कि मैं सार्वजनिक रुप से इसका विरोध करुं और दुनिया को यह संदेश जाए कि भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री में परस्पर मतभेद है.
- सरदार पटेल के निधन के बाद जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 समाप्त करने के लिए आंदोलन की शुरुआत की तो पंडित नेहरु ने उन्हें संविधान सभा की कार्यवाही की वो प्रति भेजी जिसमें साफ साफ सरदार पटेल के प्रस्ताव और उसके समर्थन में दिए गए भाषणों के अंश शामिल थें.
जम्मू कश्मीर और धारा 370 की बात करते करते हम इतने ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं कि तथ्यों की बात करने की बजाय सीधे पंडित नेहरु को कोसना शुरु कर देते हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरदार पटेल से बड़े देशभक्त और राष्ट्रवादी हम नहीं हो सकते, ऐसे में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ज्ञान प्राप्त करने की बजाय हमें इतिहास का अध्ययन करना चाहिए.