भाजपा के सहयोगी दल इस वक्त उनसे काफी ज्यादा खफा चल रहे हैं। कृषि कानून की वजह से पहले ही 2 राजनीतिक दल अपना साथ एनडीए को छोड़ चुके हैं। जिनमें अकाली दल जैसा भरोसेमंद साथी भी शामिल है, इसके अलावा हनुमान बेनिवाल की आरएलपी भी कानून के विरोध में साथ छोड़ गए हैं। इसके अलावा पहले शिवसेना भाजपा का साथ छोड़ यूपीए में शामिल हो गया है। वहीं अब लगता है एक बार फिर से जनता दल यूनाइटेड भी एनडीए छोड़ने वाला है। इसके कई प्रमाण भी मिल रहे हैं।
जेडीयू को मिल गया नया अध्यक्ष
जेडीयू के सुप्रीमो नीतीश कुमार ने राज्यसभा में संसदीय दल के नेता रामचन्द्र प्रसाद सिंह को अपनी जगह पार्टी का राष्ट्रीय नया अध्यक्ष मनोनीत कर दिया है। हालांकि 2 हफ्ते पहले ही नीतीश कुमार ने पटना के पार्टी कार्यालय से साफ कर दिया था कि उनके बाद पार्टी में आरसीपी सिंह ही हैं लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर देंगे। हालांकि नीतीश कुमार के इस फैसले से कई सवाल भी उठ रहे हैं, जिसमें सबसे अहम तो ये है कि आखिर नीतीश ने आरसीपी को क्यों चुना क्योंकि उनका कुल जमा संसदीय इतिहास सिर्फ 10 सालों का है और पार्टी में कई नेता उनसे काफी ज्यादा अनुभवी है।
कई कारणों से अहम है आरसीपी को चुना जाना
इसके कई कारण है एक तो सबसे अहम है कि वो नीतीश कुमार की ही जाति कुर्मी से आते हैं। इसके अलावा नीतीश का उनके ऊपर भरोसा और विश्वास भी काफी ज्यादा है। इसलिए आरसीपी वो चाहे 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार हो या इस बार विधानसभा चुनाव में दुर्गति या इससे पहले एक मार्च को पार्टी रैली का फ्लॉप होना हो, नीतीश उनकी हर खामी या विफलता पर आगे आकर खुद जिम्मेवारी ले लेते हैं। इसका कारण है कि वो उनके साथ सालों से काम कर रहे हैं और आईएएस भी रहे हैं जो नीतीश कुमार के पसंद के लिए सर्वोत्तम गुण है।
भाजपा को दिया है संदेश
आरसीपी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर नीतीश ने अब भाजपा से अपनी दूरी बनायी है क्योंकि विधानसभा चुनाव में जो कुछ हुआ और उनकी पार्टी अधिकारिक रूप से जो भी कहे लेकिन सच्चाई यही है कि नीतीश जानते हैं कि वो सब भाजपा के गेमप्लान के तहत हुआ है। और वो हर मुद्दे पर अब बिहार भाजपा के नेताओं से मुख्यमंत्री आवास में पंचायती से बचना चाहते हैं।
हालांकि सरकार अभी भी भाजपा के साथ ही चल रही है लेकिन नीतीश कुमार जानते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जब भी अनुकूल राजनीतिक माहौल मिलेगा तब कभी भी उन्हें चलता कर देगा। नीतीश ये भी जानते हैं कि आरसीपी के भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से मधुर सम्बंध रहे हैं और वो हमेशा भाजपा के साथ अच्छे सम्बंध रखने का ही पक्ष रखते रहे हैं।
लेकिन अब साफ हो गया कि नीतीश के बाद पार्टी में नंबर दो आरसीपी ही हैं और रहेंगे। ये बात अलग है कि वो पार्टी के कार्यकर्ताओं या नेताओं में बहुत लोकप्रिय नहीं है। यहां तक कि नालंदा की राजनीति में उनके पार्टी के संस्थापक में से एक पूर्व मंत्री श्रवण कुमार से 36 का आंकड़ा रहा है और पार्टी में अभी भी होगा वही जो नीतीश चाहेंगे। लेकिन आवाज अब आने वाले वक्त में आरसीपी की होगी और भाजपा के गेमप्लान में ये एक सेंध होगा।