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डरते-डरते चुनाव लड़े थे BJP के कैलाश मेघवाल, लेकिन गृह मंत्री को ही दे दी थी पटखनी

राजनीति में कभी कुछ भी निश्चित नहीं होता। राजनीति के पक्के खिलाड़ी मुमकिन को नामुमकिन और नामुमकिन को मुमकिन भी कर देते हैं। भाजपा के लिए भैरों सिंह शेखावत ने एक बार ऐसा ही किया था।

एक उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं था। उसे उम्मीदवार बनाया गया, तो वह बुरी तरह से डरा हुआ था। उसे यकीन ही नहीं था कि वह जीत सकता है, लेकिन उसे आदेश मिल गया था। चुनाव उसे लड़ना था। उसने चुनाव लड़ा भी। जिसकी उम्मीद नहीं थी, वह हो गया। यह उम्मीदवार चुनाव जीत गया।

राजीव गांधी के करीबी थे कैलाश मेघवाल

हराया भी तो एक बहुत बड़े नेता को। उस नेता को जो गृह मंत्री था। वह नेता जो राजीव गांधी का बड़ा करीबी हुआ करता था। जी हां, इस नेता का नाम था बूटा सिंह। जिसने हराया, उनका नाम था कैलाश मेघवाल। विधायक ये आज भी हैं। बीच में मंत्री भी बने थे। विधानसभा अध्यक्ष वे रह चुके हैं।

पंजाब के बड़े दलित नेता

यह दौर था वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव का। उस वक्त एक चर्चित सीट थी जालौर। यह राजस्थान की सीट थी। बूटा सिंह को यहां से राजीव गांधी चुनाव लड़वा रहे थे। बूटा सिंह तब गृह मंत्री थे। पंजाब के बड़े दलित नेता के तौर पर उनकी पहचान रही।

राजीव गांधी ने भेज दिया राजस्थान

पंजाब का रोपड़ उनका क्षेत्र हुआ करता था। रोपड़ से चुनाव जीते भी थे। वर्ष 1967 से वे लगातार यहीं से चुनाव लड़ रहे थे। वर्ष 1984 में बहुत कुछ बदल गया था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण परिस्थितियां अब पहले जैसी नहीं थीं। वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगे ने भी काफी कुछ बदल दिया था। राजीव गांधी कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे। इसलिए बूटा सिंह को अब उन्होंने पंजाब से चुनाव नहीं लड़वाया। बूटा सिंह को उन्होंने राजस्थान भेज दिया।

सुरक्षित सीट थी जालौर

यह मारवाड़ का इलाका था। जालौर एक सुरक्षित सीट थी। वर्ष 1984 का चुनाव बूटा सिंह ने यहां से लड़ा। आसानी से उन्हें जीत भी मिल गई। दो साल तक राजीव गांधी की सरकार में उन्होंने कृषि मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद बूटा सिंह को गृह मंत्री भी बना दिया गया। इस तरह से जालौर के सांसद के रूप में उन्होंने 5 साल पूरे कर लिए।

कांग्रेस के खिलाफ था माहौल

एक बार फिर से लोकसभा चुनाव आ गया था। यह 1989 का लोकसभा चुनाव था। फिर से जालौर से बूटा सिंह चुनाव मैदान में थे। इस बार 1984 जैसा माहौल यहां नहीं था। कांग्रेस का विरोध पुरजोर हो रहा था। विपक्षी पार्टियां भी अब कमजोर नहीं थीं। इस बार कांग्रेस के खिलाफ जनता दल और भाजपा अनौपचारिक रूप से ताल में ताल भी मिला रहे थे।

चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था कोई भाजपा नेता

सब कुछ ठीक था। फिर भी जालौर से चुनाव कोई लड़ना नहीं चाहता था। भाजपा में हर नेता इससे पीछे हट जा रहा था। पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत बहुत परेशान थे। बहुत सोच-विचार किया उन्होंने। इसके बारे में कार्यकर्ताओं से चर्चा भी की। फिर पत्रकारों के साथ एक दिन वे बैठे। यह जयपुर का पार्टी कार्यालय था।

शेखावत ने इन्हें थमा दिया लिफाफा

कुछ महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले थे। अब उन्होंने यहां किसी को बुलाया। उन्होंने उस कार्यकर्ता का नाम लिया। यह दो बार विधायक रह चुका था। उसने आने के साथ कह दिया कि जालौर नहीं जाऊंगा। कसम है मुझे। वहां मैं नहीं जाने वाला। यह सुनकर भैरों सिंह शेखावत हंस पड़े। हालांकि उन्होंने कुछ कहा नहीं। अलमारी से एक लिफाफा निकाल लिया। वह लिफाफा उस नेता को उन्होंने दे दिया।

कैलाश मेघवाल को मिल गई जिम्मेदारी

कुछ देर तक उस नेता ने लिफाफे को देखा। फिर वे लिफाफा लेकर चले गए। यह नेता कैलाश मेघवाल ही थे। उन्हें चुनाव लड़ने का निर्देश मिल गया था। इसकी तैयारी करने को कहा गया था। जयपुर से जालौर तक भैरों सिंह शेखावत चुनाव प्रचार में जुट गए थे।

वे कहते थे कि बूटा सिंह का राजीव गांधी सरकार में दूसरा नंबर है। राजीव सरकार के दो नंबरी काम की याद वे जनता को दिला रहे थे। भीड़ बोफोर्स वाले नारे लगाना शुरू कर देती थी। उस वक्त उन्होंने खूब नारा लगवाया। यह नारा था- गली गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है।

बूटा सिंह को हराने का किया आह्वान

शेखावत ने बूटा सिंह को हराने का आह्वान किया। सरकार को भगाने के लिए कहा। अपने प्रदेश के प्रतिनिधि को जिताने के लिए। कैलाश मेघवाल पीछे खड़े रहते थे। धीरे-धीरे मुस्कुराते रहते थे। अब नतीजे का दिन आ गया। कैलाश मेघवाल की छोटी सी मुस्कान खिलखिलाती हंसी में बदल गई।

कैलाश मेघवाल ने बूटा सिंह को हरा दिया था। ये समीप के उदयपुर जिले के नेता थे। जालौर में इन्होंने कमाल कर दिखाया था।