देश में पिछले कई सालों से आज़ादी को लेकर तगड़ी बहस चल रही है और इस बहस में समय-समय पर कोई न कोई तड़का लगा ही जाता है. इस बार तड़का लगाने आईं हैं जेड प्लस सिक्योरिटी प्रदत्त, झांसे की रानी कंगना रनौत। दीदी कंगना ने कह दिया है कि आज़ादी 2014 के बाद मिली है. वो सीधे तौर पर नहीं कह पाईं की आज़ादी मोदीजी ने दिलवाई है. कंगना के लगाए तड़के में लोग जमकर घी डाल रहे हैं और कंगना दीदी भी उस दाल का मजा ले रही हैं. लेकिन उन्हें कोई ये समझा दे कि भीख में आजादियां नहीं मिला करती, भीख में मिलता है अवार्ड। वो अवार्ड जिसके लिए तुमने आज़ादी को झुठला दिया।
जितनी बेशर्मी से कंगना ने ये बात कही है की 2014 से पहले की आज़ादी झूठी है उतनी ही बेशर्मी से कंगना ने 2014 से पहले सरकार से कई अवार्ड भी लिए हैं. कंगना दीदी अगर 2014 से पहले देश आज़ाद नहीं था तो फिर फिर लौटा दो न अवार्ड। क्यों लिए घूम रही हो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जो कांग्रेस के शासनकाल में मिला था. लेकिन जेड प्लस सिक्योरिटी की चाह रखने वाली दीदी से ऐसा नहीं होगा। अच्छा सुनो पद्मश्री अवार्ड भी तो कांग्रेस का ही बनाया हुआ है तो उसे भी लौटा दो. कह दो की मैं केवल आज़ाद भारत के अवार्ड्स लूंगी। लेकिन नहीं कर पाओगी क्योंकि ये सब करने के लिए सच के साथ खड़ा होना पड़ेगा। विक्टिम कार्ड खेलकर खुद को शोषित बताने वाली कंगना दीदी जब अर्धनग्न होकर तस्वीरें खिंचवाती हैं तो उन्हें देश के सम्मान की याद नहीं आती लेकिन बाद में वो संस्कृति पर बड़े-बड़े भाषण झाड़ती हैं. अरे मोदीजी की भाषा में मैं भी कहता हूँ-‘हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है’.
कंगना दीदी तुमनें वैसे गलत बयान दिया है. तुम्हें ये कहना चाहिए था कि साल 2014 के बाद भक्तिकाल की शुरुआत हुई है. एक ऐसा भक्तिकाल जिसमें केवल और केवल झूठ का गुणगान करने वाले लोगों को सामान मिलेगा। जैसे पहले भक्ति करने पर राजा-महाराज सोने की माला फेंक देते थे वैसे ही आजकल अवार्ड फेंके जा रहे हैं. लगे हाँथ कंगना दीदी तुम भी भक्तिकाल की दो चार लाइनें लिख ही डालो। चलो एक मैं बताता हूँ-‘ मोदी की भक्ति बिन, अधिक जीवन संसार, धुवाँ का सा धौरहरा, बिनसत लगै न बार’. भक्तिकाल में कंगना दीदी की लिखी ये लाइनें हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में पढ़ाई जाएंगी।
हे जेड प्लस सिक्योरिटी की मालकिन कंगना दीदी -‘हमें आज़ादी नहीं मिली है ये तुम नहीं बोल पाती अगर देश आज़ाद नहीं हुआ होता’. गुलाम भारत में इतना बोलने की आज़ादी थी ही नहीं।
और हाँ एक शब्द अंतिम जो शुरू में कहा था-‘भीख में आज़ादी नहीं अवार्ड मिलते हैं क्योंकि आज़ादी के लिए झांसी वाली रानी बनना पड़ता है, झांसे की रानी नहीं’