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राम के नाम पर वोट मांगने की नौबत पर केजरीवाल, क्या फेल हो गए विकास के मॉडल

कुछ सालों से देश में सेक्यूलरिज्म पर लाखों सवाल खड़े किए जा रहे हैं। एक तबका मानता है कि मौजूदा केंद्र सरकार के राज में धर्मनिरपेक्षता खत्म हो गई है। एक वक्त था जब जवाहर लाल नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर जाने पर ऐतराज जता दिया था। नेहरू का कहना था कि भारत एक सेक्युलर देश है और यहां का मुखिया किसी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं हो सकता है। तब भी ये बहस छिड़ी थी कि क्या धर्म किसी का निजी मामला है और क्या राज्य को धर्म के मामलों में दखल देना चाहिए।

लेकिन अब दुनिया बहुत बदल गई है। राजनीति के साथ धर्म की मिलावट एक साधारण बात हो गई है। इसके लिए हर पार्टी जिम्मेदार है, किसी एक को जिम्मेदार कहना ठीक नहीं होगा। हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने मंच से चंडी पाठ किया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में भाषण के दौरान खुद को राम भक्त बताया। उन्होंने सदन में कहा कि उनकी सरकार रामराज्य के सिद्धांतों पर ही काम करती आई है।

ममता बैनर्जी एक तनाव भरे चुनावी माहौल के बीच में हैं। BJP ने पश्चिम बंगाल की राजनीति को जबरदस्त तरीके से घुमाकर रख दिया है। आर्थिक और धर्मनिरपेक्षता (Secularism)के मुद्दे कहीं गायब हो गए हैं। वहां पर सबसे बड़ी बहस इस बात पर छिड़ी है कि कौन कितना बड़ा हिंदू है। आप लॉजिक दे सकते हैं कि प्यार और जंग में सब जायज है। ऐसे में ममता बैनर्जी और अरविंद केजरीवाल को चुनावों के दौरान ऐसी गुस्ताखी के लिए माफ किया जा सकता है। लेकिन इसका क्या तर्क हो सकता है कि केजरीवाल विधानसभा सत्र के दौरान खुद को राम और हनुमान का भक्त बता रहे हैं।

क्या दक्षिणपंथी हो गए हैं केजरीवाल

केजरीवाल के भाषण से पहले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में देशभक्ति को शामिल करने की बात भी कही थी। साथ ही ये भी कहा कि दिल्ली में 500 जगहों पर तिरंगे लगाने के लिए 45 करोड़ रुपए खर्चे जाएंगे। इससे साफ संकेत मिलता है कि ये काफी सोचा-समझा कदम है। आम आदमी पार्टी के नेताओं ने धार्मिक नजरिए से बजट तैयार करने में अच्छा खासा समय खपाया है। क्या इसका मतलब माना जा सकता है कि केजरीवाल ने मोदी से कुछ पैंतरे उधार लिए हैं और अब वो दक्षिणपंथी हो गए हैं? क्या इसका ये मतलब भी है कि केजरीवाल का वो पहलू है जिसे अभी तक एक तबका देख नहीं पाया था।

क्यों बदलते जा रहे हैं केजरीवाल

राजनीति में आने से पहले केजरीवाल के लिए कहा जाता था कि वो आरएसएस के ही सदस्य हैं। जब अन्ना हजारे भी आंदोलन छेड़े बैठे तो कहा गया था कि पूरा आंदोलन संघ के द्वारा चलाया जा रहा है। बहुत से लोगों का ये मानना है कि केजरीवाल को आरएसएस ने ही उभारा था ताकि मनमोहन सिंह सरकार का तख्ता पलट किया जा सके। इसी से ये काफी उलझन में डालने वाली बात है कि वो अपनी राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और दक्षिण’ की तरफ मुड़ रहे हैं। ये और भी हैरान करने वाली बात इसलिए है क्योंकि वो न तो बहुत धार्मिक हैं, और ही धार्मिक कर्मकांड वाले व्यक्ति हैं।

केजरीवाल भी अब वो राजनीति कर रहे हैं जिससे कभी नफरत करते थे

दिल्ली के म्यूनिसिपल चुनाव आने वाले हैं। यही वजह है कि केजरीवाल अपनी धार्मिक पहचान को प्रकट कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वो भाजपा से बड़े रामभक्त और राष्ट्रवादी हैं। उनका आखिरी दांव ये है कि उनकी सरकार सीनियर सिटिजंस को मुफ्त में अयोध्या की तीर्थ यात्रा कराएगी और इसका उनके धर्म या हिंदूपने से कोई ताल्लुक नहीं है। दुखद ये है कि केजरीवाल को ऐसे शख्स के रूप में देखा जाता था जो भारतीय राजनीति का पूरा परिदृश्य बदल देगा। राजनीति को विवेकशील बनाएगा। लेकिन वो अब खुद ऐसी राजनीति कर रहे हैं जिससे कभी नफरत किया करते थे। अब वो उसी का एक हिस्सा बन गए हैं।