रॉ भारत की एक ऐसी खुफिया एजेंसी है, जो पिछले पांच दशकों से देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही है। चाहे पाकिस्तान के भारत पर हमले की प्लानिंग का पता करना हो या फिर पाकिस्तान में चल रहे परमाणु संयंत्रों के निर्माण की जानकारी हासिल करनी हो, हर जगह रॉ ने बहुत ही जिम्मेवारी के साथ काम किया है और अपने दुश्मनों से सतर्क रहने में भी भारत की बहुत मदद की है। इस लेख में हम आपको रॉ के उन पांच सबसे खतरनाक मिशन के बारे में बता रहे हैं, जिनकी वजह से देश की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाई है।
1971 के युध्द के दौरान
रॉ ने अपनी स्थापना के तुरंत बाद वर्ष 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अविस्मरणीय भूमिका निभाई। इस युद्ध में रॉ की वजह से ही भारतीय सेना की जीत सुनिश्चित हो पाई थी। रॉ ने ही यह खुफिया जानकारी हासिल की थी कि पाकिस्तान कब भारत पर हमला करने वाला है। इस जानकारी के मिल जाने से भारतीय सेना ने पहले ही अपनी तैयारी पुख्ता कर ली। यही नहीं, बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने में भी रॉ की अहम भूमिका रही थी।
भारत में सिक्किम का विलय कराना
साथ ही 1974 में सिक्किम के भारत में विलय में भी रॉ की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। उत्तर में तिब्बत, नेपाल और भूटान से लेकर पश्चिम बंगाल की उत्तरी सीमा तक सिक्किम राज्य फैला हुआ था। भारत में इसका विलय कराना आसान नहीं था। आजादी के बाद से ही यहां एक महाराजा का शासन चल रहा था। भारत सरकार की ओर से सिक्किम के महाराजा को धर्मराज की उपाधि दी गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वर्ष 1972 में रॉ को यह जिम्मेवारी सौंपी कि सिक्किम में भारत के लोकतंत्र के समर्थन में सरकार की स्थापना हो। रॉ ने इसे बखूबी अंजाम दिया और 26 अप्रैल, 1975 को रॉ की ही मदद से सिक्किम भारत का 22 वां राज्य बन गया।
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ऑपरेशन कहुता में रॉ की भूमिका
पाकिस्तान परमाणु हथियारों को विकसित कर रहा था तो उस दौरान रॉ ने अपने खुफिया सूत्रों से पता लगा लिया था कि पाकिस्तान कहां पर परमाणु संयंत्रों पर काम कर रहा है। रॉ के एक एजेंट के हाथ तो उसका नक्शा भी लग गया था। रॉ को 10 हजार रुपये की जरूरत थी पाकिस्तान के एक वैज्ञानिक से इसे खरीदने के लिए। हालांकि, उस दौरान प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने पैसे देने से मना कर दिया था। कहा जाता है कि बाद में मोरारजी देसाई ने इस बारे में पाकिस्तान के जिया-उल-हक को भी इसके बारे में बता दिया था, जिसकी वजह से ऑपरेशन कहूता सफल होने के बेहद नजदीक पहुंचकर भी फेल हो गया था। यदि रॉ का यह ऑपरेशन सफल हो गया होता तो पाकिस्तान आज भारत को परमाणु हमले की धमकी देने लायक नहीं रहता।
ऑपरेशन मेघदूत में रॉ की भूमिका
रॉ ने वर्ष 1984 में भारतीय सेना को यह जानकारी दी कि पाकिस्तानी सेना की अबाबीन नामक एक टुकड़ी भारत के जम्मू-कश्मीर में सियाचिन के एक ग्लेशियर पर कब्जा जमाने की तैयारी के लिए निकल चुकी है। जैसे ही भारतीय सेना को इस बात की जानकारी मिली, भारतीय सेना ने इसके लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया। यह मिशन सफल भी रहा। इसकी वजह से पाकिस्तानी सेना को अपने पांव पीछे खींचने पड़े। इस तरीके से रॉ द्वारा दी गई सूचना के आधार पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को अपने मंसूबे में कामयाब नहीं होने दिया।
ऑपरेशन कैक्टस की सफलता
तमिल उग्रवादियों ने 1988 में मालदीव के ऊपर हमला बोल दिया। जैसे ही इस बात की जानकारी रॉ को मिली तो उसने इसके लिए एक खुफिया मिशन भारतीय सेना के साथ मिलकर शुरू किया। इसे ऑपरेशन कैक्टस का नाम दिया गया। इस मिशन के तहत रॉ ने भारतीय सेना के साथ मालदीव में इन तमिल उग्रवादियों पर हमला बोल कर उन्हें वहां से खदेड़ डाला।
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स्माइलिंग बुद्धा मिशन
भारत के पहले परमाणु मिशन को स्माइलिंग बुद्धा मिशन का नाम दिया गया था। यह एकदम खुफिया और गुप्त मिशन था। यह पहला ऐसा मौका था, जब रॉ को भारत के अंदर किसी योजना में शामिल किया गया था। 18 मईज 1974 को भारत के पोकरण में 15 किलो टन प्लूटोनियम डिवाइस का परीक्षण किया गया। इस परीक्षण के संपन्न होने के साथ ही भारत परमाणु क्षमता वाले राष्ट्रों की सूची में शामिल हो गया। रॉ की स्पेशल प्लानिंग की वजह से ही भारत में चल रहे इस मिशन के बारे में चीन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियों तक को इसकी भनक तक नहीं लग सकी।
वैसे, कारगिल युद्ध के दौरान, भारत के संसद पर हमले के समय एवं मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान कोई जानकारी नहीं दे पाया था, लेकिन फिर भी देश में रॉ के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।