राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) खुद को दुनिया का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन बताता रहा है। आरएसएस खुद को सबसे बड़ा देशभक्त संगठन बताता है। आरएसएस हमेशा देश प्रेम की बात करता है। आरएसएस इस देश के लिए जीने और मरने की बात करता है, मगर इसी आरएसएस ने 55 वर्षों तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया था। जो आरएसएस भारत में रहता है, जो भारत का खाता है, उसी आरएसएस ने अपने मुख्यालय पर 55 वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराने दिया था। तिरंगे की जगह पर आरएसएस के मुख्यालय पर भगवा ध्वज लहराता था। आखिर ऐसी क्या बात थी कि खुद को सबसे बड़ा देशभक्त होने का दावा करने के बावजूद आरएसएस उस तिरंगे को अपने मुख्यालय पर नहीं फहरा रहा था जो कि भारत की आन, बान और शान है।
क्या इसका यह मतलब था कि आरएसएस का भारत के संविधान पर भरोसा नहीं था जैसा कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कांग्रेस के अध्यक्ष पद की कमान संभालने के बाद कहा था। जो आरएसएस खुद को भारत का सबसे बड़ा हितैषी बताता रहा है, जो आरएसएस भारतीय जनता पार्टी की मातृ संस्था भी है, उसी आरएसएस ने आखिर 55 वर्षों तक क्यों अपने मुख्यालय पर तिरंगा झंडा नहीं लहराया? यहां हम आपको इसी राज के बारे में बता रहे हैं।
आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। स्थापना के बाद से ही आरएसएस पर कई तरह के आरोप लगते रहे हैं और इसके बारे में यह भी कहा जाता रहा है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसने हिस्सा नहीं लिया था। यहां तक कि महात्मा गांधी की हत्या में भी आरएसएस के शामिल होने की बात की जाती रही है। जहां कुछ लोग आएएसएस पर यह आरोप दबी जुबान लगाते रहे हैं, तो वहीं राहुल गांधी जैसे नेता ने तो खुले मंच से आरएसएस पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया है, जिसके बाद राजनीति बेहद गरमा गई थी। भाजपा ने तो इसे लेकर राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना का भी मुकदमा दायर कर दिया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राहुल गांधी को माफी मांगनी पड़ी थी। समय-समय पर आरोप तो बहुत से लगते रहे हैं। यहां तक कि इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था, इसके बावजूद आरएसएस पर कभी भी कोई आरोप साबित नहीं हो सका। बाद में आरएसएस पर से प्रतिबंध हटा लिया गया।
भले ही कितने भी आरोप लगते रहे हों, लेकिन आरएसएस अब तक भारत को अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के रूप में दो प्रधानमंत्री दे चुका है। इतना सबकुछ होने के बावजूद आरएसएस ने एक वजह से विरोधियों को खुद पर निशाना साधने का मौका दे दिया। आजादी मिलने के 55 साल बाद तक आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा नहीं, बल्कि भगवा ध्वज लहराता रहा। आरएसएस की शाखा में भगवा ध्वज ही फहराया जाता रहा है और भगवा ध्वज को ही ध्वज प्रणाम किया जाता रहा है।
राहुल गांधी ने इसे लेकर आरएसएस पर तीखा हमला भी बोला था। राहुल गांधी ने उस वक्त कहा था कि उन्होंने इस बारे में काफी गूगल किया है और यह जानने की कोशिश की है कि आखिर आरएसएस तिरंगा क्यों नहीं लहराता है? आखिर वह तिरंगे को सलामी न देकर भगवा ध्वज को सलामी क्यों देता है? लेकिन कभी भी मुझे इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया है। राहुल गांधी ने यह भी कहा था कि आज भले ही आरएसएस देशभक्ति की बातें करता है, लेकिन सच यह है कि आरएसएस का अपने देश की संवैधानिक व्यवस्था में ही भरोसा नहीं है। तभी तो वह भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को सम्मान नहीं देता है। उसने 55 वर्षों तक अपने मुख्यालय पर तिरंगा न फहरा कर भगवा झंडा फहराया है।
अब आपको बताते हैं इसके पीछे का सच। दरअसल भारत जे संविधान में कहा गया था कि आम जनता अपने घर, अपने ऑफिस, अपने संगठन के कार्यालय या संगठन के मुख्यालय आदि पर तिरंगा झंडा नहीं पहरा सकती है। इस बारे में एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इस पर वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैग कोड ऑफ इंडिया कानून को लेकर फैसला सुनाते हुए आम जनता को भी अपने घरों, कार्यालयों और मुख्यालयों आदि पर तिरंगा झंडा फहराने की अनुमति दे दी थी। वर्ष 2002 में जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया तो इस वर्ष पहली बार आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा झंडा लहराया गया। इस तरह से भारतीय संविधान को मानते हुए आरएसएस ने 55 वर्षों तक आजादी के बाद भी अपने मुख्यालय पर तिरंगा झंडा न लहराकर भगवा ध्वज फहरा रखा था।