कोणार्क सूर्य मंदिर भारत की शान है। यह उड़ीसा में स्थित है। जगन्नाथ पुरी से इसकी दूरी 35 किलोमीटर की है। यहां दरअसल कोणार्क नाम का एक शहर ही बसा हुआ है। भारत में सूर्य मंदिर कई हैं, लेकिन उनमें से यह सबसे प्रमुख है। भारत की शान यह इसलिए है, क्योंकि विश्व धरोहर स्थल के रूप में यूनेस्को ने इसे मान्यता दी है। वर्ष 1984 में इसे यह मान्यता प्राप्त हुई थी। यहां के पत्थरों पर उत्कृष्ट नक्काशी देखने के लिए मिलती है।
यह एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यह लगभग 800 साल पुराना है। इस मंदिर को एक बार अंग्रेजों ने बालू से भर दिया था। जी हां, अंग्रेजों ने ऐसा 1903 में किया था। मंदिर को उन्होंने बंद कर दिया था। अब आप सोच रहे होंगे कि अंग्रेजों ने आखिर ऐसा क्यों किया था। दरअसल कोणार्क मंदिर को वे और मजबूती प्रदान करना चाहते थे।
बाद में केंद्रीय भवन निर्माण शोध संस्थान ने इस पर एक वैज्ञानिक अध्ययन किया। यह रुड़की में स्थित है। इनका यह अध्ययन वर्ष 2013 से 2018 तक चला था। इन्होंने मंदिर की बनावट का अध्ययन किया। उन्होंने यह देखा कि जो बालू यहां भरे गए थे, उनकी स्थिति अब क्या है।
वर्ष 1282 तक इतिहासकारों के मुताबिक राजा लांगूल नृसिंहदेव ने शासन किया था। कई इतिहासकार कहते हैं कि मंदिर का निर्माण वही करवा रहे थे। हालांकि, उनकी अचानक मौत हो गई थी। इस वजह से निर्माण कार्य लटक गया था। कई इतिहासकार इससे अलग मत रखते हैं। फिर भी माना जाता है कि 1253 से 1260 ईस्वी के दौरान कोणार्क मंदिर बनवाया गया था। मंदिर बाद में ध्वस्त भी हुआ था। क्यों यह ध्वस्त हुआ था, इसका ठोस प्रमाण कहीं नहीं मिलता है।
समुद्र तट के किनारे कोणार्क सूर्य मंदिर स्थित है। इसकी सुंदरता अद्भुत है। सूर्य देवता के विशाल रथ की आकृति में यह मंदिर बना हुआ है। इसके पहिये बड़े ही कलात्मक तरीके से बने हैं। इसके 12 जोड़े इसमें बने हुए हैं। सात घोड़े इस रथ को खींचते हुए देखते हैं। कलिंग स्थापत्य कला का इसे बेजोड़ उदाहरण कहा जा सकता है।
इसके बीच में सूर्यदेव विराजमान हैं। हालांकि, वर्तमान में स्थिति अलग है। अब एक ही घोड़ा यहां बचा हुआ दिखता है। सूर्य भगवान को यहां बिरंचि नारायण के नाम से पहले जाना जाता था। तीन मंडप यहां बने हुए हैं। दो मंडप तो अब खत्म हो चुके हैं। तीसरा ही मंडप बचा हुआ है। मूर्ति यहीं पर स्थापित थी। अंग्रेजों ने यहीं पर बालू भरवाया था। इस मंदिर को उन्होंने इस तरह से बचा लिया था।
सूर्य भगवान की तीन मूर्तियां इस मंदिर में मौजूद हैं। एक उनकी बाल्यावस्था की मूर्ति है। इसे उदित सूर्य भी कहते हैं। इसकी ऊंचाई 8 फीट की है। दूसरी मूर्ति युवावस्था वाले सूर्य की है। इसे मध्याह्न सूर्य भी कहते हैं। इसकी ऊंचाई 9.5 फीट है। तीसरी मूर्ति सूर्य देवता के प्रौढ़ावस्था की है। इसे अपराह्न सूर्य के नाम से भी जाना जाता है। इसकी ऊंचाई 3.5 फीट की है।
उड़ीसा में तीन मंदिर विशेष स्थान रखते हैं। ये स्वर्णिम त्रिभुज के नाम से जाने जाते हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर इनमें से एक है। बाकी दो मंदिर पुरी का जगन्नाथ मंदिर और भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर हैं। कोणार्क सूर्य मंदिर काले रंग का है। यही वजह है कि ब्लैक पैगोडा के नाम से भी यह जाना जाता है। वहीं, जगन्नाथ मंदिर का भी नाम व्हाइट पैगोडा दिया हुआ है।
फरवरी का महीना आने वाला है हर साल इस दौरान यहां चंद्रभागा मेला लगता है बड़ी संख्या में लोग देश भर से यहां पहुंचते हैं हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ के रूप में भी कोणार्क विख्यात है।
मंदिर के नष्ट होने के पीछे के कारण बड़े ही अजीबोगरीब हैं। बहुत से लोगों ने इसके लिए वास्तु दोष को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि, सही मायने में देखा जाए तो मुस्लिम आक्रमण इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार रहे हैं। कहा जाता है कि कोणार्क की प्रधान पूज्य मूर्ति नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में है। हालांकि, इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है।