हमारे देश में ऐसे कई सारे किले और महल हैं जो अपने आप में अद्भुत हैं. हर एक किला अपनी एक अलग विशेषता रखा है. कुछ किले ऐसे हैं जो राजा-महाराजा के ज़माने में बनाए गए थे लेकिन आज भी वैसे के वैसे हैं. कई किलों में आक्रमण हुए लेकिन दुश्मन उसे भेद नहीं पाए. ऐसा ही एक किला है Lohagarh Fort.
राजस्थान के भरतपुर में स्थित एक ऐसा किला है जहाँ अंग्रेजों ने एक-दो बार नहीं बल्कि पूरे 13 बार आक्रमण किया था लेकिन Lohagarh Fort (लोहागढ़ किले)को भेद नहीं पाए. आइए जानते हैं आखिर क्या खास था इस किले में.
अंग्रेजों ने बार बार लोहगढ़ (लोहागढ़ )किले को भेदने का प्रयास किया
अपनी वीर गाथाओं के लिए मशहूर राजस्थान में एक जिला है भरतपुर, वहीँ ये किला स्थित है. इसका निर्माण 19 फरवरी, 1733 को जाट शासक सूरजमल ने करवाया था. कहा जाता है कि अंग्रेजों ने इस किले में 13 बार आक्रमण किया लेकिन इस किले को भेद नहीं पाए. लॉर्ड लेक ने 1805 में 6 हफ़्तों तक किले की घेराबंदी भी की थी लेकिन उसे सफलता हाँथ नहीं लगी. गोला, बारूद और यहाँ तक तोपें भी किले में बेअसर हो जाती थीं.
राजस्थान के Lohagarh Fort में तोपें क्यों हो जाती थीं बेअसर?
क्या था ऐसा ख़ास- आप सोच रहे होंगे की lohagarh fort में ऐसा क्या था की इसमें तोपें बेअसर हो जाती थीं. दरअसल Lohagarh Fort की मुख्य इमारत कि दीवारें 100 फीट ऊँची और 30 फीट चौड़ी हैं. इन दीवारों का बाहरी हिस्सा ईंट और मोर्टार से बना था और आंतरिक हिस्सा मिटटी से बना था. मिटटी के संपर्क में आते ही तोपों की अग्नि बुझ जाती थी ऐसा कहा जाता था इसलिए इस किले में तोपें बेअसर हो जाती थीं. इस किले के चारों तरफ एक खाई थी जो सैकड़ों फीट चौड़ी थी और लगभग बीस फीट गहरी थी जिसे पार करना दुश्मन के लिए मुश्किल नहीं नामुमकिन जैसा था.
जवाहर बुर्ज और फ़तेह बुर्ज का राज़
इस खाई में मोती झील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया था. lohagarh fort में दो बुर्ज भी हैं जिनका नाम जवाहर बुर्ज और फ़तेह बुर्ज है. दरअसल ये दोनों बुर्ज मुगलों और अंग्रेजों से जीत के प्रतीक थे. कहते हैं जवाहर बुर्ज का निर्माण सवाई जवाहर सिंह ने 1765 में मुगलों पर अपनी जीत की याद में बनवाया था और फतेह बुर्ज का निर्माण राजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में करवाया था.
1805 में बुर्ज का निर्माण किया गया था. जवाहर बुर्ज का इस्तेमाल किले में शासन करने वाले शासकों के राज्याभिषेक के लिए इस्तेमाल किया जाता था. जवाहर बुर्ज के टावरों में तोपों के पहिए लगाए थे. ये इतने भारी थे कि इन्हें खींचने के लिए चालीस जोड़ी बैलों का सहारा लिया जाता था. अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड ने भी इस किले का विवरण देते हुए कहा है कि इसे भेदना लोहे के चने चबाने जैसा था.
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अष्ट धातु दरवाजा और लोहिया दरवाजा
इस किले का गेट भी बहुत चर्चित रहा. कहा जाता है कि इसे विशेष रूप से दिल्ली से लाया गया था. ऐसा ही गेट अल्लाउद्दीन खिलजी चित्तौड़गढ़ किले में लाया था जब उसने किले को जीता था. दुर्ग का उत्तरी प्रवेश द्वार अष्ट धातु दरवाजा और दक्षिणी प्रवेश द्वार लोहिया दरवाजा कहलाता है. किले के मुख्य दरवाजे को आठ धातुओं से मिलाकर बनाया गया था इसलिए इसे अष्टधातु दरवाजा कहा जाता था.
इसके बाद अंग्रेजी सेना ने महाराजा दुर्जन राव के शासनकाल में लॉर्ड कोम्बरमेयर के नेतृत्व में 25 दिसम्बर,1825 को विशाल सेना के साथ lohagarh fort पर आक्रमण किया और 18 जनवरी, 1826 को इसे अपने अधिकार में ले लिया। इस किले को लेकर उस समय वहां लोकमानस प्रचलित था जिसे ‘गोरा हट जा रे’ कहा जाता था.