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2 महीनों से ज्यादा के इस लॉकडाउन में आखिर हमें मिला ही क्या

कोरोना महामारी से निबटने के लिए 4 महीने पहले पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था, उस दौरान देश में कोरोना के 500 मामले थे। लॉकडाउन से पहले जनता कर्फ्यू भी लगा था, उसी दिन से सब कुछ बंद कर दिया गया था। पहले 21 दिन का लॉकडाउन लगाया गया, फिर 3 मई के साथ बढ़ा दिया गया। 3 मई के बाद भी लॉकडाउन चला, अभी भी अलग अलग जगहों पर जारी है। लेकिन इसके बाद भी कोरोना रुका नहीं बल्कि एक विशाल रूप ले चुका है।

2 महीनों में क्या किया ?

जनता कर्फ्यू, दो महीनों का लॉकडाउन और ताली, थाली, घंटी, शंख, दीया-मोमबत्ती जलाने, आतिशबाजी करने, अस्पतालों पर सेना के विमानों से फूल बरसाने और बैंड बजाने जैसे देशव्यापी कार्यक्रमों को अंजाम देने के बाद भी सत्ता के शीर्ष से जनता को कोरोना के साथ जीना सीखने और आत्मनिर्भर बनने का महान मंत्र दे दिया गया है।

लोग पूजा पाठ कर सकें, इसलिए धार्मिक स्थल भी खोल दिए गए हैं। शॉपिंग मॉल, रेस्त्रो , क्लब आदि भी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। कोरोना संक्रमण जिस तेजी से फैलता जा रहा है, उससे निबटने में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की लाचारी साफ नजर आ रही हैं। निजी अस्पतालों को भी लूट की खुली छूट मिली हुई है, वहीं मास्क, सेनेटाइजर आदि की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी भी पूरी तरह से जारी है।

सरकार के लिए अब कोरोना जरूरी नहीं

सरकार ने कोरोना को अब साइड में रख दिया है और अब केंद्र में बैठी सरकार बहादुर का ध्यान राम मंदिर के शिलान्यास और विधानसभा चुनाव पर जा रहा है। इसलिए जनता भी अब संक्रमण के बढ़ते मामलों और उससे होने वाली मौतों के आंकड़ों को शेयर बाजार की तरह देख रही है।

वैसे देखा जाए तो कोरोना संक्रमण का संकट हमारे यहां केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में कभी भी शीर्ष पर अपनी जगह बना ही नहीं पाया था। भारत में कोरोना संक्रमण का आगमन जनवरी में हो गया था।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई विशेषज्ञों ने सरकार को इस बारे में आगाह भी किया था। लेकिन सरकार बहादुर कहां किसी की सुनती है। और सब कुछ नकार दिया गया और अनावश्यक भ्रम बनाने की बात, तथाकथित पत्रकारों ने भी सभी की खिल्ली उड़ा दी।

फरवरी में क्यों नहीं जागी सरकार?

फरवरी के महीने में ही चीन के कारनामे को देख कर ज्यादातर देशों ने शोध शुरु कर दिया ता। इटली के नजारें हम सबके सामने थे, लेकिन हमारी 56 इंची सरकार तब अपने परम मित्र अमेरिका के प्रधानमंत्री का स्वागत कर रही थी। इतना ही नहीं मार्च के महीने भी हमारी सरकार के शीर्ष नेतृत्व की प्राथमिकता में कोरोना का संकट नहीं बल्कि एक प्रदेश में विपक्षी दल की सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाना था।

ये सब काम निबटाने के बाद ही सरकार को कोरोना संकट याद आया। पहले प्रायोगिक तौर पर एक दिन का जनता कर्फ्यू और फिर मार्च के आखिरी सप्ताह में बगैर किसी तैयारी के आनन-फानन में लॉकडाउन लागू कर देश को नौकरशाही और पुलिस के हवाले कर दिया गया। 

देश में कोरोना वायरस का संकट लगातार बढ़ता ही जा रहा है और जून में अनलॉक के बाद अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सुधार की जो उम्मीदें बंधी थीं, वो भी खत्म हो रही है। हैरानी की बात ये है कि बिल्कुल सामने दिख रही हकीकत को नजरअंदाज करते हुए सरकार की ओर से लगातार प्रचारित किया जा रहा है कि देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। जबकि हकीकत ये है कि कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है न तो कोरोना से निबटने के मोर्चे पर और न ही अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में।

भारत में इलाज से ठीक हो रहे हैं लोग

हालांकि ये सही है कि भारत में ज्यादा लोग इलाज से ठीक हो रहे है और ये भी सही है कि भारत अभी दुनिया मे तीसरे स्थान पर है। लेकिन ये भी हकीकत है कि अब संक्रमण के रोजाना आने वाले मामलों में भारत अब ब्राजील को पीछे छोड़ अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आ गया है। ब्राजील में मामले कम हो रहे है और भारत में बढ़ रहे हैं।

रोजाना होने वाली मौतों के मामले में भी भारत दूसरे स्थान पर आ गया है। अमेरिका से ज्यादा लोगों की मौत भारत में हो रही है। लॉकडाउन होने के बाद भी हालत तो नहि ही सुधरे। कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीजों की संख्या के मामले में भी भारत अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। हालांकि ब्राजील और भारत एक दूसरे के आगे-पीछे होते रहते हैं।

इस पूरे सूरत-ए-हाल में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हर दिन ये कहा जा रहा है कि देश में कोरोना वायरस के संकट की गंभीरता कम हो रही है और ज्यादा चिंता की बात नहीं है, जबकि राज्यों में संकट लगातार गहराता जा रहा है।

राज्य सरकारें चिंतित हैं और उन्हें बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है तो वो लॉकडाउन लगा रही है। इस समय करीब एक दर्जन राज्यों में मिनी लॉकडाउन चल रहा है, जिसे सोशल मीडिया में मजाक के रूप में देखा जा रहा है और लॉकडाउन का छोटा रिचार्ज कहा जा रहा है। पूरे देश में लगे कंपलीट लॉकडाउन की तर्ज पर राज्य सरकारें अपने यहां किसी खास दिन को या किसी खास शहर में लॉकडाउन लागू कर रही हैं।

कम तो राज्य सरकारें भी नहीं

वैसे राज्य सरकारें बी कम नहीं है। वो अपनी स्थिति को छुपाने के लिए कम टेस्ट कर रही हैं। उन्हें लगता है कि ज्यादा टेस्ट कराने से ज्यादा मामले सामने आएंगे, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के चलते अफरातफरी और लोगों में घबराहट फैलेगी। मरीजों की कम संख्या दिखाने का ये मंत्र अमेरिका का है। जिसे भारत में सबसे पहले गुजरात ने अपनाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना आदि राज्यों ने भी गुजरात को फॉलो किया।

ये पूरी स्थिति यही जाहिर करती है कि केंद्र सरकार भले ही कुछ भी दावा करे मगर राज्यों में हालात ठीक नहीं हैं। ऐसे में अगर केंद्र सरकार आने वाले दिनों में एक बार फिर देशव्यापी कंपलीट लॉकडाउन लागू कर देने जैसा कदम उठाए तो कोई ताज्जुब नहीं। मगर सरकारों से ये सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि लॉकडाउन के अब तक चले आ रहे लंबे सिलसिले से भारत ने आखिर क्या हासिल किया?