कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए अपनाए जा रहे तरीकों के बीच में अब नई समस्या शुरु हो गई है, क्योंकि हर जगह पर लॉकडाउन होने की वजह से लोगों को अब मानसिक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। देशभर से ऐसी खबरें आ रही हैं कि लोग वायरस के डर से या अकेलेपन की वजह से डिप्रेशन में जा रहे हैं। वहीं
Indian Psychiatry Society ने एक सर्वे किया और पाया कि इतने दिनों में लॉकडाउन से डिप्रेशन के मामलों में 20% तक बढ़ोत्तरी हुई है। यानी की 200 मिलियन से ज्यादा भारतीय मेंटल हेल्थ से जुड़ी किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं। इसमें एक बड़ा योगदान मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों की कमी भी है और फिलहाल भारत में लगभग 9,000 मनोचिकित्सक हैं यानी हर 1 लाख पर 1 डॉक्टर है।
डर से कर रहे आत्महत्या
दुनियाभर में कोरोना के मामले साढ़े 13 लाख से ज्यादा हो चुके हैं और मरने वालों की संख्या भी काफी ज्यादा है। भारत में भी कोरोना के मामले लगातार बढ़े हैं। बढ़ते संक्रमण को कम करने के लिए लॉकडाउन हुआ पड़ा है और इसका नकारात्मक असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दिख रहा है। जिस वजह से डिप्रेशन बढ़ रहा है। ज्यादातर लोगों में नौकरी जाने, बीमारी या किसी अपने को खोने का डर बढ़ता जा रहा है। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा डर नौकरी और पैसों का हो रहा है। यहां तक कि अलग-अलग वजहों से लोग खुदकुशी जैसे कदम भी उठा रहे हैं। बंगाल में लॉकडाउन के 5वें ही दिन अकेलेपन से परेशान एक युवक ने आत्महत्या कर ली, तो वहीं पंजाब में एक पति-पत्नी ने इसलिए जान दे दी क्योंकि वो कोरोना से डर गए थे। दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में एक युवक ने 7वें माले से कूदकर जान दे दी, वो युवक कोरोना संदिग्ध था और डर गया था। हालात इतने खराब हैं कि लोगों को छींक या खांसी आने पर भी डर लगने लगा है।
कोरोना वायरस के चलते डिप्रेशन इसलिए भी बढ़ा है क्योंकि वैज्ञानिक तक इसके बारे में खास नहीं जानते हैं। किसी दिन मास्क को सिर्फ बीमारों के लिए बताया जाता है तो अगले ही दिन वो सबके लिए अनिवार्य हो जाता है और इस अनिश्चिता के कारण लोगों में डर बढ़ता जा रहा है। University of Sheffield और Ulster University के मनोवैज्ञानिकों ने इस पर एक स्टडी की है। इसमें 2000 लोगों को लिया गया और स्टडी में देखा गया कि लॉकडाउन के बाद लोगों की मानसिक अवस्था कैसे बदलती है। स्टडी में शामिल 95 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो रात में नींद खुलने पर भी साबुन से हाथ धोने चले जाते हैं। 76% ने माना कि उन्होंने ताबड़तोड़ खरीदी की और यहां तक कि टॉयलेट पेपर भी महीनों तक के लिए खरीद डाला।
कोरोना के खत्म होने के बाद ये बड़ा सवाल रहने वाला है कि मंदी के दौरान लोग डिप्रेशन से कैसे उबरेंगे। जबकि भारत में मानसिक सेहत के हालात इतने खराब है कि यहां हर पांचवा शख्स किसी न किसी तरह की मानसिक समस्या से जूझ रहा है, ऐसे में ये संकट और बढ़ जाता है। लेकिन इससे बचा भी जा सकता है और Centers for Disease Control and Prevention के अनुसार समय रहते ही इसके लक्षणों को पहचानना जरूरी है।
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जैसे अगर आप बार-बार सोशल मीडिया या न्यूज में खोज-खोजकर बीमारी की बातें पढ़ने लगे हों, बार-बार हाथ धोएं, रात में नींद न आए, हर बात पर रोना या गुस्सा आने लगे, खाने की आदतों में एकदम से बदलाव हो, जैसे बार-बार खाना, या खाकर उल्टियां करना, शरीर के किसी न किसी हिस्से में लगातार दर्द बना रहे- ये लक्षण डिप्रेशन की शुरुआत हैं।
इसके कई तरीके हो सकते हैं जैसे दफ्तर जाएं या घर से काम करें या फिर कोई भी काम न हो, लेकिन अपना एक रुटीन बनाएं और रोज उसे नियम से करें। जैसे तैयार होना, कसरत और अच्छा नाश्ता बनाकर खाना। अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखें और विटामिन सी और प्रोटीन की सही मात्रा लें। इसके अलावा आप अच्छी नींद लें और अल्कोहल या स्मोकिंग से दूरी रखें। वहीं परिवार और दोस्तों से लगातार संपर्क में रहें, इसके किए वीडिया कॉल, कॉल, टेक्स्ट, लेटर जैसे कई तरीके हैं। इस दौरान अपने पास थर्मामीटर, पैरासिटामोल और दूसरी दवाओं के अलावा पूरी तरह से तैयार फर्स्ट-एड-बॉक्स जरूर होना चाहिए। इसके अलावा कंपनियों को भी अपने कर्मचारियों के साथ संवेदना रखते हुए पूरी पारदर्शिता बरतनी चाहिए।