प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन पार्ट 2 का ऐलान कर दिया है। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि राज्यों एवं विशेषज्ञों से चर्चा और पूरे विश्व की स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत में लॉकडाउन को अब 3 मई तक बढ़ाने का फैसला किया गया है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने कहा कि अब कोरोना के खिलाफ लड़ाई में कठोरता और ज्यादा बढ़ाई जाएगी। 20 अप्रैल तक हर कस्बे, हर थाने, हर जिले, हर राज्य को परखा जाएगा कि वहां लॉकडाउन पार्ट 2 का कितना पालन हो रहा है, उस क्षेत्र ने कोरोना से खुद को कितना बचाया है। पीएम ने हॉटस्पॉट से लेकर आर्थिक बातें तो कि लेकिन उन्होंने किसी तरह के आर्थिक राहत पैकेज 2 के बारे में न तो कुछ कहा और न तो कोई संकेत दिए।
आर्थिक राहत पैकेज पर फिर कोई बात नहीं
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में लोगों से 7 विषयों पर सहयोग भी मांगा जिसमें बुजुर्गों का ध्यान रखने, गरीबों के प्रति संवेदनशील नजरिया अपनाना आदि शामिल है। प्रधानमंत्री ने अपने पूरे संबोधन में आर्थिक बातों पर कम जोर दिया, जबकि अभी शायद नजर न आ रहा हो लेकिन आने वाले वक्त में लोगों को बेरोजगारी, भुखमरी की मार का सामना करना पड़ेगा। साथ ही कई कंपनियां बंद होना तो तय ही मानी जा रही है। इस पर सरकार को अब ध्यान देने की जरूरत है और इसके बारे में आज के संबोधन में ज्यादा बात होनी चाहिए थी।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से देश और दुनिया को गहरी चोट पहुंची है। इससे अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से चरमरा गई है। कोरोना की वजह से पहले से ही कमजोर भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने कई और नई चुनौतियां आ गई हैं। इसलिए एक रणनीति बनाए जाने की जरूरत है। अभी की हालत ये है कि हर दिन कोई न कोई संगठन अपने सर्वे में इस चुनौती की तरफ ध्यान दिला रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि भारत में 40 करोड़ लोग और अधिक गरीबी की चपेट में आ सकते हैं। वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि कोरोना वायरस के चलते भारत सहित 8 एशियाई देशों में 40 साल की सबसे भीषण आर्थिक सुस्ती आ सकती है।
रोजगार पर मंडरा रहा है खतरा
वहीं राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (एनएसएस) और पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वेज (पीएलएफएस) के आंकड़ों पर आधारित हाल के अनुमानों के मुताबिक करीब 14 करोड़ गैर कृषि रोजगारों पर खतरा मंडरा रहा है। इनमें स्थायी कर्मचारी ही नहीं बल्कि दिहाड़ी मजदूर भी शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया गया है कि कोरोनो वायरस के तेजी से फैलने के कारण विशेष रूप से विकासशील दुनिया में हाशिये के लोगों के बीच खाद्य असुरक्षा, कुपोषण और गरीबी बढ़ सकती है।
कोरोना वायरस संक्रमण और इसकी रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर कई दशक के निचले स्तर 1.6 प्रतिशत पर आ सकती है। गौरतलब है कि पहली बार लॉकडाउन की घोषणा के बाद सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था। हालांकि बाद में कई सरकारी एजेंसियों के आंकलन में इस राहत पैकेज को नाकाफी बताया था। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने कहा था कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित 1.70 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में सिर्फ 73,000 करोड़ रुपये की नई घोषणाएं हैं क्योंकि बाकी का पहले ही बजट में प्रावधान किया जा चुका था। उन्होंने कहा कि इस समय प्रभावित उद्योगों के लिए एक बड़े आर्थिक राहत पैकेज की जरूरत है।
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कांग्रेस ने भी की मांग
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने अपनी टिप्पणी में कहा कि लगभग 3.60 करोड़ रुपये के श्रम और पूंजीगत की आय के नुकसान को देखते हुए न्यूनतम वित्तीय पैकेज को पहले चरण की सहायता के तहत दी गई 73,000 करोड़ रुपये की धनराशि के अतिरिक्त तीन लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाना चाहिए। ऐसे में जब सरकार ने लॉकडाउन पार्ट 2 की घोषणा की है तो उन्हें फिर से आर्थिक राहत पैकेज की राशि को बढ़ाना चाहिए। ऐसी मांग मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी की है। कांग्रेस ने मांग की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना संकट की मार झेल रही अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए देश की जीडीपी की 5 से 6 फीसदी राशि के बराबर आर्थिक पैकेज की घोषणा करने का साहस दिखाना चाहिए। मौजूदा समय में भारत की जीडीपी करीब 3000 हजार अरब डॉलर की है।
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फिलहाल गेंद अभी केंद्र सरकार के पाले में हैं। उसके लिए अपने बेहाल नागरिकों की जीवनयापन की स्थितियां सुधारना सबसे बड़ी और सबसे पहली चुनौती होनी चाहिए। साथ ही भूखे, बेरोजगार और बीमार कामगारों के बीच आपात राहत पहुंचाने पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए उसे हर वो जरूरी कदम उठाने चाहिए जिनसे स्थिति बेहतर हो। अभी सरकार को नीतियों में जरूरी बदलाव करने होंगे, नई नीतियां बनानी होंगी, राहत पैकेज देने होंगे, निजी उद्यमों को हर लिहाज से प्रोत्साहित करते रहना होगा। दरअसल असाधारण समय में असाधारण फैसलों की आवश्यकता होती है। करोड़ो लोगों के रोजगार और जीवनयापन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऐसे ही फैसले लिए जाने की उम्मीद थी, लेकिन फिलहाल वो इस मोर्चे पर बहुत उम्मीद जगाते नजर नहीं आ रहे हैं।