14 सितंबर से शुरु हुआ संसद का मानसून सत्र बहुत जल्दी खत्म होने वाला है। इस सत्र में कई बिल लाए गए हैं, बहुत से बिलों पर चर्चा होगी और बहुत पास हो रहे हैं। कोरोना की वजह से लोकसभा और राज्यसभा में बहुत कुछ बदल गया है। आधा दिन लोकसभा और आधा दिन राज्यसभा चलेगी, जब कोरोना ने इतना कुछ बदल दिया है फिर भी सदनों में इसकी कोई गूंज नहीं है।
सदन में कोरोना संक्रमण से बचने के सारे उपाय भी किए गए हैं। सरकार ने प्रश्नकाल खत्म किया और शुन्यकाल भी आधा घंटा ही होगा। इसमें भी कहीं पर उन मुद्दों की आवाज नहीं आई जिसके बारे में जनता सुनना चाहती है। ना तो कोविड और ना ही अर्थव्यवस्था पर संसद में कोई सवाल कर रहा है और ना कोई बात कर रहा है।
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने शुरू में ही कोरोना संक्रमण पर बयान दे दिया। जाहिर है, उन्होंने यही दावा किया कि सरकार की लॉकडाउन की नीति और दूसरे फैसलों ने संक्रमण और मौतों की संख्या काफी कम कर दी। वो जो आंकड़े बता रहे थे उन्हें साबित करने के लिए उनके पास कोई प्रमाण नहीं था। संसद का यह सत्र ऐसे समय में चल रहा है,जब कोरोना महामारी से 50 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और 80 हजार से ज्यादा लोग मर चुके हैं। ऐसे में हर्षवर्धन का मौतों की संख्या को काबू करने का दावा करते हुए बयान देना न सिर्फ भारी उकताहट पैदा करता है बल्कि ये अपने आप में अपर्याप्त भी है।
लिखित प्रश्नों पर दिए गए ये जवाब न सिर्फ आधा सच थे बल्कि इनमें आंकड़ों का भी हेरफेर किया गया था। कोरोना संक्रमण फैलने के बाद देश में जिस बड़े पैमाने पर शहरों से गांव की ओर रिवर्स माइग्रेशन के परेशान करने वाले मंजर दिखे, उसके बारे भी सरकार ने दावा किया कि ये पलायन भी सिर्फ फेक न्यूज फैलने की वजह से हुआ। उनका कहना था कि शहरों में काम करने वाले एक करोड़ कामगार अपने गांवों की ओर इसलिए भागे कि लॉकडाउन को लेकर अफवाहें फैलाई गईं। लोगों के बीच जरूरी सामान की सप्लाई में कमी की दहशत पैदा की गई।
सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य आपदा राहत कोष के लिए 11 हजार करोड़ रुपये का फंड जारी किया था। राज्य इसका इस्तेमाल परेशान प्रवासी कामगारों की मदद के लिए कर सकते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 24 मार्च को ये ऐलान किय था कि लॉकडाउन 3 सप्ताह का होगा और इसके अगले दिन से लोगों का अपने घरों की ओर पलायन शुरू हो गया था। फिर तीन सप्ताह बाद इसमें इसमें भारी तेजी आ गई थी।
एक और चालाकी 2018-19 की रिपोर्ट का हवाला देकर दिखाई गई। कहा गया कि देश में बेरोजगारी सिर्फ 5.5 फीसदी है। जब ये पूछा गया कि देश में कितने लाख लोगों की नौकरियां गई हैं तो कहा गया कि बेरोजगारी के नए आंकड़े तो हैं ही नहीं। जबकि CMIE ने कहा है कि अप्रैल में बेरोजगारी की दर 24 फीसदी बढ़ गई। इसका मतलब 12 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गई हैं।
महामारी और अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की चिंता का ये आलम था। इसमें नया कुछ नहीं है। संसद सरकार के इशारे पर चलती है और अक्सर वो जनता के वाजिब मुद्दों को नजरअंदाज कर देती है। इन मुद्दों को बड़े ही लापरवाह तरीके से झटक दिया जाता है। लेकिन सत्र में मानों इतना ही काफी नहीं था।
संसद के इस सत्र में जिन 40 बिलों को चर्चा के बाद कानून बनाने के लिए पारित कराया जाएगा उनमें से कुछ देश के कृषि और उद्योग जगत का चेहरा हमेशा के लिए और निर्णायक तौर पर बदल देंगे। और ये कहने की जरूरत नहीं कि ये बदलाव निजी क्षेत्र खास कर बड़े कॉरपोरेट घरानों और बड़े जमींदारों के हित में होंगे।
इन सबके बीच, वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने सदन को बताया कि 20 सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार रणनीतिक विनिवेश करने जा रही है। ये सारी कंपनियां निजी हाथों में बेचने की तैयारी चल रही है। जबकि 6 पूरी तरह बंद होंगी या फिर औद्योगिक विवाद में फंस जाएंगी। सरकार कामगारों से उनका रोPगार छीन कर कंपनियों को उपहार देगी।
दुर्भाग्य से इस देश के लोगों ने 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को भारी बहुमत से जिताया। जाहिर है कि लोगों को ये पता नहीं था कि सरकार एक ऐसा दैत्य बन कर उभरेगी जो न सिर्फ देश की संपत्ति और संसाधनों के निगल जाएगी बल्कि बड़ी संख्या में नौकरियों की कुर्बानी ले लेगी। ये सच है कि अपने भारी बहुमत की बदौलत भाजपा और इसकी सहयोगी पार्टियां इन जनविरोधी कानूनों को पारित करा लेगी।
कुछ बिलों पर विपक्ष सांकेतिक विरोध दर्ज कराएगा और कुछ में तो वो भी नहीं कर पाएगा। वैसे एनडीए कैंप में विरोध के कुछ स्वर सुनाई पड़ने लगे हैं। कृषि सेक्टर से जुड़े बिलों के खिलाफ अकाली दल का विरोध शुरू हो गया है। पंजाब में अपने किसान आधार को बड़ा करने के लिए उसने सरकार की मुखालफत शुरू की है। लेकिन ये भी सच है कि संसद में विपक्ष का रूतबा काफी घट गया है। अब विपक्षी पार्टियां भी संसद में बड़े लेफ्ट ब्लॉक की गैर मौजूदगी को महसूस कर रही है।
हालांकि संसद के बाहर लेफ्ट पार्टियां लाखों कामगारों के बड़े संघर्षों की अगुआई करती हुई दिख रही है। ये पार्टियां लाखों कामगारों, किसानों और कृषि मजदूरों और कर्मचारियों के विरोध को आवाज दे रही हैं। भले ही संघर्ष संसद में नहीं होगा लेकिन ये सड़कों पर होता हुआ दिखाई देगा।