महाभारत हिंदुओं का एक प्रमुख ग्रंथ है। महाभारत को पांचवा वेद तक कहा गया है। महाभारत में एक से बढ़कर एक रोचक कहानियां हैं। महाभारत पर बना सीरियल भी काफी लोकप्रिय हुआ है। महाभारत की कई कहानियां तो ऐसी हैं, जिन पर यकीन ही नहीं होता।
महाभारत की बहुत सी कहानियों के बारे में आप जानते होंगे, फिर भी कई कहानियां ऐसी हैं, जिनसे शायद आप अब तक अवगत नहीं हों। इसी तरह की एक कहानी युधिष्ठिर और उनकी माता कुंती से संबंधित है।
कुंती 5 बच्चों की मां थी। जी हां, इनमें से तीन बेटे तो उनके अपने थे। वहीं दो बेटे उनकी सौतन माद्री के थे। इनका नाम था नकुल और सहदेव। कुंती के बेटों के नाम युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन थे। सभी जानते हैं कि कुंती के पांच बेटे थे। फिर भी कुंती का एक और बेटा था। इसका नाम था कर्ण।
कर्ण को महापराक्रमी कहा जाता है। कर्ण महाभारत में दुर्योधन के साथ खड़ा था। कर्ण पांडवों का ही भाई था। हालांकि, किसी को इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। केवल कुंती ही इसके बारे में जानती थी। कर्ण का जब जन्म हुआ था, उसी वक्त कुंती ने उसे छोड़ दिया था। कुंती भी मजबूर थी। उसके पास कोई और चारा भी नहीं था।
दरअसल हुआ यह था कि कुंती धर्म-कर्म में बहुत भरोसा करती थी। वह हमेशा भगवान का स्मरण करती रहती थी। हमेशा सेवा का भाव उसके अंदर रहता था। पुण्य के काम में वह खुद को हमेशा रमा कर रखती थी। इसी तरह से एक बार उसने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। दुर्वासा ऋषि कुंती की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए थे। इतने ज्यादा प्रसन्न हो गए थे कि वे कुंती को कुछ देना चाहते थे।
ऐसे में उन्होंने कुंती को एक मंत्र दे दिया था। कुंती को उन्होंने इस मंत्र के बारे में एक महत्वपूर्ण बात बताई थी। कुंती से उन्होंने कहा था कि यह मंत्र उन्हें संतान दिलाएगा जिस भी देवता से वह चाहे, उसे संतान की प्राप्ति हो जाएगी। मंत्र एक और वजह से बहुत ही खास था। कुंती को संतान तो हो जाती, लेकिन इससे कुंती का कौमार्य बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होता।
कुंती को यह मंत्र मिल गया। आशीर्वाद कुंती ने ऋषि दुर्वासा से ले लिया। वह अपने राजमहल लौट गई। कई दिनों तक ऐसे ही चला। एक दिन कुंती ने सोचा कि इस मंत्र का क्यों ना एक बार प्रयोग करके देख ही लिया जाए। फिर क्या था कुंती ने सूर्य देवता का स्मरण कर लिया। बस कुंती को कर्ण की प्राप्ति हो गई।
कर्ण दुनिया में तो आ गया, लेकिन कुंती के लिए बड़ी समस्या पैदा हो गई। कुंती डर गई कि अब इस बच्चे को वह अपने साथ कैसे रखेगी। आखिर समाज क्या कहेगा। शादी तो कुंती की हुई नहीं थी। बेटे को साथ रखना मुश्किल था। कुंती के तो चरित्र पर सवाल उठते ही, बेटे के चरित्र पर भी सवाल दागे जाते।
कुंती सोच में पड़ गई थी। सोच रही थी कि बेटे का जीना मुश्किल हो जाएगा। अंत में उसने अपने मन को बड़ा ही कठोर बना लिया। उसने निर्णय ले लिया कि कर्ण का वह त्याग करेगी। कर्ण को अपने पास वह नहीं रखेगी।
उधर कर्ण बड़ा हो गया। दुर्योधन से उसकी दोस्ती हो गई। महाभारत में वह दुर्योधन की तरफ से लड़ा भी। पांडव कर्ण के भाई थे, लेकिन उसे यह बात मालूम नहीं थी। युद्धभूमि में भयानक लड़ाई हुई थी। अर्जुन और कर्ण आमने-सामने थे। इसी दौरान निहत्थे कर्ण पर अर्जुन ने बाण चला दिया था। कर्ण युद्ध भूमि में मारा गया था।
कुंती को पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ। रोते हुए वह युद्धभूमि में पहुंच गई। युधिष्ठिर से कुंती ने कर्ण का अंतिम संस्कार करने के लिए कहा। युधिष्ठिर को उसने पूरा सच भी बता दिया। युधिष्ठिर को बड़ा दुख हुआ। युधिष्ठिर ने सोचा कि यह सच उसकी मां ने छुपाया। इस वजह से भाई के हाथों भाई मारा गया।
युधिष्ठिर ने तब कुंती को श्राप दे दिया। युधिष्ठिर ने कहा कि कोई भी नारी इस तरह का सच अब अपनी पेट में नहीं छुपा कर रख पाएगी। इस तरह से कुंती को अपने ही बेटे से श्राप मिल गया था।