महाराष्ट्र में एक जगह है, जिसका नाम है बुलढाणा। इस जिले में एक झील स्थित है। यह झील बहुत ही रहस्यमयी है। बताया जाता है कि यह लगभग 5 लाख 70 हजार साल पुरानी है। इस झील का नाम लोनार झील है। इस झील के बारे में बहुत सी बातें प्रचलित हैं। कहा तो यह भी जाता है कि इस झील का निर्माण उल्कापिंड से हुआ था। झील के बारे में आज तक शोध चल ही रहे हैं।
यहां तक कि ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी इस झील का जिक्र मिलता है। पद्म पुराण में भी इस झील के बारे में बताया गया है। एक कथा बताती है कि लोनासुर नाम का एक राक्षस यहां कभी रहता था। उसके अत्याचार ने हर किसी को दुखी कर दिया था। भगवान विष्णु ने लोनासुर के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाई थी। उन्होंने दैत्यसुदन नाम के एक सुंदर युवक की उत्पत्ति की थी। वास्तव में ये खुद भगवान विष्णु ही थे।
अपने प्रेमजाल में उसने लोनासुर की दोनों बहनों को फंसा लिया था। फिर उसने मांद के मुख्य द्वार को उनकी सहायता से खोल दिया। इसी में लोनासुर बैठा हुआ था। दोनों के बीच बड़ा युद्ध हुआ। इसमें लोनासुर का वध हो गया। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के पैर के अंगूठे पर लोनासुर का खून लग गया था। तब मिट्टी के अंदर अपने अंगूठे को भगवान विष्णु ने रगड़ा था। उन्होंने खून हटाने के लिए ऐसा किया था। इसी वजह से गहरा गड्ढा बन गया था और यहां झील बन गई थी।
पुराण में झील के पानी को लेकर एक बड़ी रोचक बात लिखी गई है। लिखा गया है कि इसका पानी लोनासुर का खून है। यही नहीं, इसमें जो नमक है, उसे लोनासुर का मांस भी कहा गया है। लोनासुर के मांद की दूरी यहां से लगभग 36 किलोमीटर है।
लोनार क्रेटर के नाम से भी लोनार झील को जाना जाता है। माना जाता है कि एक भारी उल्कापिंड लगभग 35 हजार से 50 हजार साल पहले यहां गिरा था। ऐसा प्लेइस्टोसिन युग में हुआ था। तभी इस झील का निर्माण हो गया था। इस झील में खड़ा पानी मौजूद है। यही नहीं, यहां का पानी क्षारीय भी है।
लोनार झील का जिक्र आइन-ए-अकबरी में भी मिलता है। इसे 1600 ईस्वी में लिखा गया था। इस झील के बारे में इसमें कई बातें बताई गई हैं। इसके मुताबिक कांच और साबुन बनाने वाली चीजें यहां से मिलती हैं। आइन-ए-अकबरी में लिखा गया है कि खाली पानी का झरना इन पहाड़ों में मौजूद है। इसके बीच का पानी एकदम ताजा है। किनारे का भी पानी एकदम ताजा है।
आइन-ए-अकबरी में एक और चीज इस झील को लेकर लिखी हुई है। इसके मुताबिक सूप में इस झील का पानी डालकर अकबर पीया करता था। इस झील को पहचान दिलाने का श्रेय ब्रिटिश अधिकारी जेई एलेक्जेंडर को जाता है। वे 1823 ईस्वी में यहां पहुंचे थे। इसके बाद उन्होंने इससे दुनिया को अवगत कराया था।
पहले लोनार झील के बारे में वैज्ञानिक कुछ और ही मान रहे थे। उनका मानना था कि ज्वालामुखी के मुंह की वजह से यह झील बनी होगी। हालांकि, वैज्ञानिकों का यह मानना गलत साबित हुआ। इसकी गहराई 150 मीटर है। ऐसे में यह साफ हो गया कि किसी उल्कापिंड के टकराने से यह झील बनी होगी। इसे लेकर हुए शोध यही बताते हैं। पहले तो माना जाता था कि यह झील केवल 52 हजार साल पुरानी है। बाद में इस झील के बहुत पुराने होने का पता चला। जानकारी सामने आई कि यह तो लगभग 6 लाख साल पुरानी है।
यह उल्कापिंड बहुत ही भारी रहा होगा। इसका वजन लगभग 10 लाख टन होगा। यही नहीं, पृथ्वी से यह 22 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से टकराया होगा। तापमान भी इसका तब 1800 डिग्री सेल्सियस रहा होगा। धूल का गुब्बार लगभग 10 किलोमीटर क्षेत्र में तब बना होगा। इस तरह से इस झील का निर्माण हुआ होगा। लगभग 7 किलोमीटर का इस झील का व्यास है।