हमारे भारत देश में कई तरह के त्यौहार मनाए जाते है ये सभी अपने-अपने रीति-रिवाज के चलते काफी विशेष माने जाते हैं। इनमे से कुछ त्योहार ऐसे भी होते हैं, जिनमें भगवान को साक्षी मान कर उन्हें कई तरह भोग लगाए जाते है। और फिर बाद उसेउस भोग को प्रसाद स्वरूप में ग्रहण किया जाता है। हालाँकि इसके पीछे धार्मिक तथ्य के साथ ही साथ वैज्ञानिक तथ्य भी होते हैं।
बिलकुल ऐसा ही पर्व है मकरसंक्रांति जिसे पूरा देश अलग-अलग तरीके से मनाता है। मकर संक्रांति के त्यौहार पर लोग पतंगबाजी का लुफ्त उठाते है। लोग पुरे दिन छतों पर जाके रंगबिरंगे आसमान को निहारते है। हालाँकि मकर संक्रांति के दिन लोग दानपुण्य भी करते है ऐसा कहा जाता है कि इस दिन दानपुण्य करना बहुत ही लाभकारी होता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को तिल गुड़ के लड्डू खिलाते है जिससे कि लोगो के दिलों में मिठास बानी रहे और वो सभी से प्यार से बात करें।
मकर संक्रांति पे क्यों खाई जाती है खिचड़ी
मकर संक्रांति को कई जगहों पर खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्राचीनकाल से ही खिचड़ी में पड़ने वाली सामग्री को ग्रहो का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि खिचड़ी को खाने से जीवन कि सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। खिचड़ी में पड़ने वाले चावल को चन्द्रमा, उड़द की दाल को शनि और इसमें पड़ने वाली सभी हरी सब्जियों को बुध गृह का प्रतीक माना जाता है। जिससे खिचड़ी खाने से हमारे ग्रहो की स्थिति स्थिर रहती है।
प्राचीन समय में बाबा गोरखनाथ ने खिचड़ी की परम्परा को शुरू किया था। ऐसा कहा जाता है कि नाथ योगी खिलजी से युद्ध करते वक्त काफी कमजोर हो गए थे। जिससे बाबा गोरखनाथ ने उनकी ऊर्जा शक्ति बढाने के लिए एक बर्तन में दाल,चावल और हरी सब्जियों को एक साथ पका कर पौष्टिक खिचड़ी बनवाने को कहा जिसको खाकर नाथ योगियों के अंदर एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ और वे स्वस्थ हुए जिससे बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी बनाने और खाने कि परम्परा को शुरू करने का श्रेय दिया गया है।
आयुर्वेद में खिचड़ी को स्वादिष्ट और सुपाच्य भोजन माना गया है। उसके साथ ही खिचड़ी को स्वास्थ्य के लिए एक असरकारक औषधि माना गया है। प्राचीनकाल की चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार जब भी जल नेती की क्रिया की जाती थी तो उसके बाद सिर्फ खिचड़ी के सेवन की सलाह दी जाती थी।
ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के पर्व पर सूर्य उत्तर दिशा में जाता है जिससे दिन बड़ा होने लगता हैं और इसी के साथ-साथ वसंत ऋतु का आगमन भी हो जाता है। सूर्य अगर उत्तर दिशा में है तो ये आध्यात्मिक रूप से काफी महत्व का है। सूर्य के उत्तरायण में होने से सभी व्यक्ति के शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है और सभी रोग, दोष और संताप आदि से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा भी कहा जाता है कि मकर संक्रांति से लेकर अगले छः माह तक देह का त्याग करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।