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आप में से कई लोग मणिकर्णिका घाट से जुडी ये 8 मान्यताएं नहीं जानते

मणिकर्णिका घाट वाराणसी की गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गौरी माता (पार्वती जी) का कर्ण फूल यहाँ के किसी एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढने खुद भगवान शंकर जी धरती पर आये थे, तभी से इस स्थान का नाम मणिकर्णिका रखा गया। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ भगवान शंकर ने माता सति का अग्निसंस्कार इस जगह पर ही किया था, जिस कारण इस जगह को महाश्मसान भी कहते हैं। यहाँ आज भी अहर्निश दाह संसकार होते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर यहाँ आने वाले मृत देह के कानो में तारक मंत्र का उपदेश देते है और उनको मोक्ष प्राप्त करवाते है।

इस घाट से जुडी कई कथाएं है जिनसे आप अब तक अपरिचित है, कुछ ऐसी मान्यताएं जिनसे शायद ही कोई वाकिफ हो, कुछ ऐसी बातें जो जानना हमारे लिए आवश्यक है।

भगवान शिव को छुट्टी नहीं नहीं मिलती थी अपने भक्तो से-

एक कथा के अनुसार भगवान शंकर को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिलती थी। जिससे परेशान होकर माता पार्वती ने शिव जी को रोके रखने के लिए अपने कान के कुण्डल को इस जगह पे छुपा दिया और भगवान शंकर से उसे ढूंढने के लिए कहा पर शिवजी उसे ढूंढ नहीं पाए। ऐसा कहा जाता है कि जिसका भी इस घाट पर अंतिम संस्कार होता है तो भगवान उससे पूछते है की क्या तुम्हे वो कुण्डल मिला ? 

भगवान शिव ने 5000 साल पहले जलाई थी एक ज्योति-

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती काशी आए थे। मणिकर्णिका घाट के पास ही एक कुंड में स्नान करते समय माता का कुंडल गिर गया।और उसे कालू नाम के एक व्यक्ति ने छिपा लिया। वैसे कालू को कुछ लोग राजा और कुछ लोग ब्राह्मण बताते थे। ऐसी कहा जाता है कि शिव जी को तलाश करने पर भी जब कुंडल नहीं मिला तब भगवान शिव ने क्रोधित होकर कुंडल को चुराने वाले को नष्ट कर देने का श्राप दे दिया था।

इससे कालू डर गया और उसने आकर भगवान शिव से क्षमा याचना की तब भगवान ने अपना श्राप वापस ले लिया और उसे श्मशान का राजा घोषित कर दिया। और कालू के वंशजो को डोम के नाम से जाना जाता है। यमराज का यहाँ आना वंचित है। और फिर भगवान शिव खुद ही यहाँ रहकर लोगो को मुक्ति दिलाते है। आज से 5000 साल पहले भगवान शिव ने यहाँ एक ज्योति जलाई थी जो आज भी जलती रहती है।

प्राचीन ग्रन्थों के में कहा गया है कि मणिकर्णिका घाट का स्वामी वही चाण्डाल था, जिसने राजा हरिशचंद्र को खरीदा था। और फिर उसने राजा को अपना दास बना कर मणिकर्णिका घाट पर अन्त्येष्टि करने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दिया था। हालाँकि राजा ने अपने पुत्र की अंतिम क्रिया के लिए भी अपनी पत्‍नी से कर मांग कर अपनी कर्तव्‍य को निभाया था।

इस घाट पर दाह संस्कार करने से होती है मोक्ष प्राप्ति-

इस घाट कि ऐसी मान्यता है कि यहाँ पर जलाया जाने वाला शव सीधे मोक्ष प्राप्त करता है। इससे सभी लोगो की यही इच्छा होती है कि मृत्यु के बाद उसका दाह-संस्कार इस घाट पर ही हो क्योंकि उन्हें लगता है की यहाँ से वे सीधे मोक्ष प्राप्त करेंगे।  हालाँकि हिंदुओं के लिए इस घाट को अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। ऐसा कहा है कि मणिकर्णिका घाट को भगवान शिव ने अनंत  वरदान दिया है।

शवों की राख से होती है सोना पाने की चाह –

मणिकर्णिका घाट का पर गंगा का पानी एक दम काला है. शवों के जलने के बाद राख को नदी में बहा दिया जाता है. इसी राख को लोग छलनी से छानते रहते है. ऐसा कहा जाता है कि ऐसी महिलाएं जिनके आभूषण अंतिम संस्कार से पहले उतारे नही जाते हैं, वो चिता के साथ ही उसी में भस्म हो जाते हैं. और जब राख को नदी में प्रवाहित किया जाता है तो ये लोग राख और कोयले को छान कर सोना चांदी निकालते हैं ।

 

जलती चिता के आस-पास नाचती है यहाँ की नगर-वधुएँ-

मणिकर्णिका घाट में जलती चिताओं के सामने नृत्य करती है नगर वधुएँ ऐसा रिवाज सैकड़ों साल पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले मान सिंह नाम का एक राजा  हुए था। उन्ही के द्धारा बनवाए गए बाबा मशान नाथ के दरबार में कार्यक्रम पेश करने के लिए प्रसिद्ध नर्तकियो और कलाकारों को बुलाया गया था।यह मंदिर श्मशान घाट के बीचों बीच स्थित था। इसलिए कलाकारों और नर्तकियों ने प्रदर्शन करने से इंकार कर दिया। 

राजा मान सिंह ने इस कार्यक्रम की घोषणा पूरे शहर में करवा दी थी। जोकि वो अपनी बात से मुकर नहीं सकते थे इसलिए राजा ने शहर की नगर-वधुओं को यहाँ मंदिर में नृत्य करने के लिए बुलाया गया। इसके बाद तो मनो ये कोई परम्परा बन गई हो और ऐसा कहा जाता है कि तब से लेकर अब तक चैत्र माह के सातवें दिन नवरात्रि की रात हर साल यहां इस प्रकार का श्मशान महोत्सव मनाया जाता हैं।

भगवान विष्णु की तपश्या से प्रशन्न हुए भगवान शिव-

इस घाट की ऐसी भी मान्त्यता है कि जब भगवान शिव विनाशक बनकर सृष्टि का विनाश कर रहे थे तब बनारस की पवन नगरी को बचने हेतु खुद भगवान विष्णु ने शिवजी को शांत करने के लिए धरती पर आकर तप किया था। इस घाट से जुडी इन सभी परम्पराओ का अपना ही महत्व है।

जीवन के आखरी सच से हम होते है रूबरू

मणिकर्णिका घाट इस घाट की चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती यहाँ एक के बाद एक लाशें जलती रहती है,इस घाट पर आज भी लाखो श्रद्धालु आते है और जीवन के अंतिम सत्य से खुद को रूबरू करवाते हैं। इन सभी चीजों के बावजूद इस घाट की परिश्थिति ठीक नहीं है यह घाट आज भी पुराण ही है इस घाट का पुर्ननिर्माण आज तक नहीं हुआ।

दोपहर में स्नान करने से होती है मोक्ष प्राप्ति –

ऐसा कहा जाता है की यहाँ दोपहर में स्नान करने वाले व्यक्ति को खुद भगवान शिव और विष्णु अपने सानिध्य में लेकर उस व्यक्ति को मुक्ति प्रदान कर देते हैं। लोग की ऐसी मान्यता है की यहां दोपहर में भगवान खुद स्नान करने आते हैं, इसलिए लोग इस घाट पर दोपहर में स्नान करते हैं। इस घाट को लग ही एक कुंड भी है और इस मणिकर्णिकाकुंड के बाहर विष्णुजी की चरण पादुका भी राखी गई है। इस कुंड की दक्षिण दिशा में भगवान श्री विष्णु-गणेश और भगवान शिव की एक प्रतिमा भी स्थापित है। इस प्रतिमा पर लोग स्नान करने के बाद जलअर्पण करते हैं।