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कोरोना पर सरकारी नाकामयाबी छिपाने में कब तक रिया का सहारा?

अक्सर कहते हैं कि गिरने की भी एक सीमा होती है, लेकिन शायद ये सीमा कभी हमारे देश की मीडिया के लिए बनी ही नहीं। मीडिया हर रोज अपने नीचे गिरने की लक्ष्मण रेखा को लांघ कर आगे बढ़ा देती है। जिस तरह से मीडिया पिछले ढाई महीनों से काम कर रहा है, ऐसा लगता ही नहीं है कि ये वो मीडिया है जिसके पत्रकार 1975 में जेल गए थे।

क्या ये वही मीडिया है जो बढ़े से बढ़े आदमी को जमीन दिखा देती थी। नहीं ये वो मीडिया नहीं है जिसकी ताकत को समझ कर मैं एक पत्रकार बना था। ये वो मीडिया है ही नहीं जो गलत को गलत और सही को सही दिखाने का दम रखती थी। ये मीडिया वो नहीं है जो बेबाक सवाल पूछ कर सत्ताधीशों की नींद उड़ा देती थी। ये मीडिया गाड़ियों के पीछे भागती एक ऐसे जीव की तरह है जिसका मकसद सच दिखाना नहीं बस कुछ भी दिखाना है।

सारी हदें पार कर गया है मीडिया

मैं जब भी सोचता हूं कि बस अब इससे नीचे हमारे देश का मीडिया नहीं गिरेगा, वो अपना दायरा बढ़ा देता है। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी मीडिया कुछ यही कर रहा है। मुझे गम है बहुत गम है कि सुशांत जैसा शख्स हमारे बीच नहीं है।

सुशांत की जिंदगी तो अभी शुरु ही हुई थी और वो चला गया। गम है, दुख है, सवाल भी है कि आखिर क्यों और कैसे सुशांत गया? ये सवाल भी है कि क्या सच में सुशांत ने खुदकुशी की थी? इन सवालों के जवाब मुझे भी चाहिए, मुझे भी लगता है कि हो सकता है ये सुसाइड नहीं बल्कि हत्या है। लेकिन मैं सब्र रखना बेहतर समझता हूं क्योंकि अब इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है।

टीआरपी की भूख कब होगी शांत

लेकिन क्या ये सब्र मीडिया को नहीं होना चाहिए? क्या मीडिया ने ये मान लिया है कि वो ही अदालत है और रात भर टीवी पर चिल्ला चिल्ला कर हम जो कहेंगे वही सच है। रोज एक नई कहानी, एक नया नाम, एक नया किरदार इस मामले में जुड़ता है और एंकर चीखते रहते हैं।

कभी ड्रग्स, कभी नेपोटिज्म, कभी काला जादू, कभी भूत कुछ नहीं छोड़ा हमारे देश के लोकतंत्र के चौथे खंभे ने। ढाई महीने से जिस डेडिकेशन के साथ मीडिया इस मामले को दिन और रात दिखा रही है, क्या कभी इतने डेडिकेशन से बेरोजगारी पर सवाल किया है? क्या इतनी डेडिकेशन कोरोना के बढ़ते मामलों पर दिखाया है? क्या कभी इतना हंगामा गिरती अर्थव्यवस्था पर किया है? नहीं क्योंकि वहां से टीआरपी नहीं मिलती ना।

सुशांत के निधन के बाद मीडिया ट्रायल में तो रिया चक्रवर्ती को दोषी, अपराधी सब बना दिया है। कुछ चीखने वाले किरदारों (इसे एंकर समझें) का तो बस नहीं चल रहा है कि वो नोएडा फिल्म सिटी पर ही रिया को फांसी पर लटका दें। रिया की हर एक चीज पर मीडिया इस तरह से नजर रख रही है जैसे सीबीआई ने जांच का ठेका इन्हीं चैनलों को दिया है।रिया के कसूरवार होने तक का इंतजार तो करिये। ये पूरा दिन चीख चीख कर कहते रहते हैं

‘Nation wants to know’ yes nation wants to know about government’s next steps to control covid-19, yes nation also wants to know the future of India. 

रिया अगर बेकसूर निकली तो

रिया चक्रवर्ती से मुझे कोई लगाव नहीं है, न मुझे कोई मतलब। अगर रिया का सुशांत की जान लेने में कोई हाथ है तो उसे फांसी से नीचे की सजा न हो, ये गुहार भी अपने दायरे में रह कर करुंगा। लेकिन सिर्फ गुहार करुंगा चीख कर कोर्टरूम नहीं बना दूंगा।

रिया को किसी ने विष कन्या बना दिया है, तो किसी ने काला जादू करने वाली क्योंकि वो बंगाली लड़की है। जिस तरह से मीडिया ने रिया का कैरेक्टर खराब किया है उसका हिसाब कौन देगा। अगर रिया बेकसूर हुई तो रिया की जिंदगी बर्बाद करने की जिम्मेदारी क्या ये मीडिया लेगा? बशीर बद्र का शेर है न कि “दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे… जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों”

शर्म आने लगी है खुद को पत्रकार कहने में

हैरानी की बात होती है कि रिया कहती है कि उन्हें डेथ थ्रेट मिल रहे हैं, लोग रेप करने की धमकी दे रहे हैं। मीडिया बहुत बुरे तरीके से सलूक कर रही है। इसलिए वो अपने लिए प्रोटेक्शन चाहती है, इसमें भी मीडिया को आपत्ति होती है।

रिपब्लिक टीवी के पत्रकार जिस तरह से रिया से सवाल करने के लिए उनके ऊपर चढ़े जा रहे थे, वो देख कर बहुत शर्म महसूस हुई कि मेरी इंडस्ट्री के लोग इतने गिर गए। एक पुरुष रिपोर्टर मात्र टीआरपी के लिए एक महिला के ऊपर गिरता जा रहा है, ये शर्मनाक ही नहीं बल्कि लोकतंत्र में मिली आजादी का हनन है। सवाल करने की आजादी है लेकिन क्या इस कदर किसी को टॉरचर किया जाए।

रिया बेगुनाह होगी या गुनहगार इसका फैसला करने का हक सिर्फ और सिर्फ अदालतों को है न कि रोज डिबेट शो में बैठने वाले जजों को। टीवी पर अदालतों का शो चलाते चलाते खुद वकील और जज बनने की जरूरत एंकरों को नहीं है। इसके लिए बेहद पढ़ाई लिखाई कर जज और वकील दोनों है।

कभी इतने कठोर सवाल परिवार से भी तो पूछो

मीडिया के सारे सवाल रिया से होते हैं, लेकिन एक भी सवाल उनके परिवार से क्यों नहीं हुआ? उनके पिता कहते हैं कि रिया उनके बेटे की जान ले रही थी। मैं पूछता हूं उन पिता से कि क्या आपको 1 साल में बेटे की फिक्र नहीं हुई।

आपने तब बेटे को क्यों नहीं रोका, आपको नहीं पता चला कि बेटा डिप्रेशन में हैं और अगर नहीं था तो रिया उसे खराब कर रही है। उन बहनों को अपने भाई के बारे में नहीं पता था? क्यों तब भाई का ध्यान नहीं रखा?

अभिनेताओं का क्यो रोल

वो सारे सितारें जो आज चैनलों पर बैठ कर लंबा लंबा ज्ञान दे रहे हैं, तब कहां थे जब सुशांत भारी मन से ये कह रहा था कि बॉलीवुड उसे असेप्त नहीं कर पाया है। कुछ अभिनेता तो बॉलीवुड को ही गाली दे रहे हैं, तो आप इस इंडस्ट्री में कर क्या रहे हैं?

उसी इंडस्ट्री में रह कर करोड़ों कमाएंगे और उसी को गाली देंगे वाह भईया!! मतलब ये तो वही बात हो गई कि खाएंगे भी वहीं और थूकेंगे भी वहीं। इन लोगों को आज सुशांत के लिए इतना स्नेह आ रहा है और कभी जीते जी उससे बात तक नहीं की होगी।