भारत जब आजाद हुआ, उसी समय उसने सोच लिया था कि वह अपने विकास की लकीर खुद खींचेगा। यही वजह रही कि आजादी के बाद भारत में जो विकास की परिकल्पना लोगों ने की थी, सरकार की ओर से उसे आकार दिए जाने की कोशिशें युद्धस्तर पर शुरू कर दी गईं। आजादी मिले केवल 27 वर्ष हुए थे और भारत 18 मई 1974 को दुनिया के कुछ गिने-चुने परमाणु संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में आकर खड़ा हो गया था। शांतिपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत अपनी इस परमाणु शक्ति का इस्तेमाल करने वाला था पूरी दुनिया भारत के इस पहले परमाणु परीक्षण के बाद हैरान रह गई थी। इसे लेकर भारत को तमाम विरोध का भी सामना करना पड़ा था, लेकिन भारत पूरी तरह से तटस्थ रहा था। यहां हम आपको भारत के पहले परमाणु परीक्षण के बारे में कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं, जिनसे शायद आप अब तक अवगत ना हों।
भारत ने जिस वक्त अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था, उस वक्त इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। भारत ने अपने सबसे पहले परमाणु परीक्षण को राजस्थान के थार मरुस्थल में स्थित पोखरण में अंजाम दिया था। अपने इस परमाणु परीक्षण को भारत की ओर से स्माइलिंग बुद्धा का नाम दिया गया था। वह इसलिए कि जिस दिन यह परमाणु परीक्षण किया गया, वह बुद्ध पूर्णिमा का ही दिन था। यही नहीं, जो परमाणु बम भारत ने तैयार किया था, उस पर स्माइलिंग बुद्धा की एक तस्वीर भी बनी हुई थी। भारत के पहले परमाणु बम को पोखरण-1 के नाम से भी जाना जाता है।
पोखरण में जो भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, इसमें 75 वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई थी। सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर भारत ने अपने सबसे पहले परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इधर भारत का पहला परीक्षण कामयाब क्या हुआ कि दूसरी और पूरी दुनिया में तहलका ही मच गया। भारत का लोहा तब पूरी दुनिया ने मान लिया था। भारत ने जो अपने पहले परमाणु बम का परीक्षण किया, उसकी गोलाई 1.2 मीटर की थी। साथ ही इसका वजन भी करीब 1400 किलोग्राम का था। इसके आकार और इसके वजन से ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह परमाणु बम कितना खतरनाक रहा होगा। ऐसा कहा जाता है कि जब भारत ने इसका परीक्षण किया था तो 8 से 10 किलोमीटर तक की धरती पूरी तरह से हिल गई थी।
जैसे ही भारत ने यह परमाणु परीक्षण किया, इसके साथ ही वह दुनिया का छठा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया था। भारत से पहले तब तक परमाणु संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में केवल 5 राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ही शामिल थे। यदि आपको लगता है कि आजाद होने के बाद भारत ने अपनी परमाणु परीक्षण की योजना बनानी शुरू की थी तो आप गलत हैं। दरअसल, आजादी मिली भी नहीं थी कि 1944 में महान भौतिक वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में भारत ने परमाणु संपन्न बनने की दिशा में अपनी तैयारी शुरू कर दी थी।
डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में भारत का परमाणु कार्यक्रम जोर पकड़ने लगा। महान भौतिक वैज्ञानिक राजा रमन्ना के साथ मिलकर भाभा ने इस दिशा में काम शुरू किया और इसके बाद बहुत से वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट से जुड़ते चले गए। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान भारत के परमाणु कार्यक्रम में तेजी आ गयी थी। जब तक भारत का यह परमाणु कार्यक्रम सफलता की दहलीज तक पहुंचा, तब तक देश की कमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों में पहुंच गई थी। इंदिरा गांधी ने भी भारत को परमाणु संपन्न बनाने में अपनी ओर से पूरी रुचि दिखाई। यहां तक कि सभी वैज्ञानिकों ने अपनी तरफ से इसके लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। भारत की सरकार और भारत के वैज्ञानिकों की मजबूत इच्छाशक्ति और उसके अथक परिश्रम का ही नतीजा रहा कि 1974 में 18 मई को भारत ने सफलता का स्वाद चखा और भारत भी अपने पहले परमाणु परीक्षण के बाद दुनिया के परमाणु संपन्न राष्ट्रों में से एक बन गया।
भारत के परमाणु परीक्षण करने के बाद दुनिया के कई देशों ने इसका विरोध किया, जिसमें सबसे मुखर अमेरिका रहा था। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इसकी शिकायत भी की थी कि भारत के बिना यूएन को सूचित किए परमाणु परीक्षण करने से दुनिया के बाकी देशों में असुरक्षा और भय का माहौल पैदा हो गया है। अमेरिका के अलावा कई देशों ने भारत को दी जा रही सहायता को बंद कर दिया था और कई तरह के प्रतिबंध भी लगा दिए थे। इसके बावजूद भारत ने हार नहीं मानी और भारत आज जिस स्थिति में है, यह पूरी दुनिया देख रही है। एक वक्त भारत का विरोध करने वाला अमेरिका आज भारत को अपना सबसे अच्छा दोस्त बता रहा है।