नागरिकता कानून के विरोध को लेकर शाहीन बाग से लेकर पूरे देश में तनाव रहा, लगातार प्रदर्शन हुए और फिर दिल्ली में दंगे हो गए। इन दंगों में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और कई सवाल खड़े हो गए। सबसे बड़ा सवाल तो केंद्र सरकार से पूछा जा रहा है कि कैसे दिल्ली में होने वाले दंगों की भनक पहले से न लग सकी। सीएए से जुड़ी सारी अफवाहें क्यों फैल गई और अगर अफवाह रोकने की कोशिश भी की तो वो कम क्यों रह गई? उन सारे बयानों को क्यों ढीला लिया गया जिसमें जनता को उकसाया गया? माहौल में घुले जहर का इलाज करने के लिए मोदी सरकार के पास कोई रणनीति थी?
इन सवालों के जवाब हम सबके पास हैं। जो एक निष्कर्ष की ओर ले जाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार बड़े फैसले लेने का साहस तो रखती है, लेकिन उन फैसलों की प्रतिक्रिया स्वरूप जो होगा, उसको लेकर इस सरकार के पास कोई खास रणनीति नहीं होती है। आइए कुछ उदाहरण के साथ इन दलीलों को समझते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को पूरा यकीन था कि 2019 में भी भाजपा की ही सरकार मिलेगी। जिस कारण वो पहले से ही कुछ कठोर फैसलों के लिए तैयार थे और इन्हीं के लिहाज से चुनावी वादे कर रहे थे। आम चुनाव से पहले ही पुलवामा में आंतकी हमला हो गया और पूरे देश गुस्से का उबाल आ गया था। सरकार ने भी बालाकोट एयर स्ट्राइक कर दी और इस बात की परवाह नहीं की कि पाकिस्तान दुनिया भर में उसे कैसे भुनाने की कोशिश करेगा? हुआ भी कुछ वैसा ही, इमरान खान को हीरो बनने का पूरा मौका मिला और उसे काउंटर करने के लिए राजनयिकों को दिन-रात मोर्चा संभालना पड़ा।
सत्ता में वापसी करने के बाद मोदी सरकार ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ फैसलों की लाइन लगा दी। धारा 370, UAPA, तीन तलाक और बैंकों का विलय, ये ऐसे फैसले रहे जिन्हें पूरा करने के वादे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में लौट कर आए थे, लेकिन बिगड़ती अर्थव्यवस्ता की तरफ ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी और जब जीडीपी 5 से नीचे पहुंच गई तो भी सरकार बेपरवाह अपने काम में लगी रही। अपनी स्पीड में रफ्तार भरते हुए मोदी-शाह की जोड़ी ने एक झटके में ही नागरिकता संशोधन कानून भी संसद से पास करा डाला और तत्काल ही नोटिफिकेशन जारी कर लागू भी कर दिया। इसके बाद में जो हुआ वो सबके सामने ही है।
11 दिसंबर, 2019 को संसद से बिल पास होने और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद 10 जनवरी को नोटिफिकेशन जारी हुआ और नागरिकता कानून पूरे देश में लागू भी हो गया। उस दौरान दिल्ली में चुनाव की तैयारी हो रही थी और पूरे देश में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। काबू पाने के लिए पुलिस एक्शन हो रहा था। सीएए विरोध को हैंडल करने में मोदी सरकार हर कदम पर परेशान दिखी। केरल की लेफ्ट सरकार और पंजाब सरकार ने तो सीएए के विरोध में प्रस्ताव भी पास किया और सुप्रीम कोर्ट में भी अपील दायर की गई। बाकी शाहीन बाग तो विरोध का सबसे बड़ा सेंटर बन ही चुका है।
शाहीन बाग के प्रदर्शन दिल्ली चुनावों में मुद्दा बनाने में भाजपा नेतृत्व और बाकी नेताओं ने कोई कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन पूरा दांव उलटा पड़ गया। इस बार तो अरविंद केजरीवाल ने ये भी नहीं समझाया कि कोई उन्हें परेशान कर रहा है। वो तो सिर्फ यही बताते रहे कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बस काम करती रही और करती रहेगी। भाजपा ने शाहीन बाग को चुनावी मुद्दा बना कर अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को उलझाना जरूर चाहा, लेकिन वो बड़े चालाक निकले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शाहीन बाग को यूपी चुनावों की तरह श्मशान और कब्रिस्तान के कंसेप्ट में फिट करने की कोशिश की, मगर अफसोस सारी कवायद बेकार गई। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने शाहीन बाग को संयोग और प्रयोग के हिसाब से लोगों को समझाने की कोशिश की, यूपी और बिहार से आए लोगों ने भी दिल्ली में ऐसी बातों को अनसुना कर दिया।
धारा 370 को संसद ने खत्म कर दिया और भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा रहा और इसके साथ ही मोदी-शाह ने देश भर के लोगों से किया चुनावी वादा भी पूरा कर लिया लेकिन उसके बाद जो हालात बने हुए हैं, ऐसा तो नहीं लगता जैसे मोदी सरकार ने उसे हैंडल करने की पहले से कोई तैयारी की हो। संसद में ये प्रस्ताव लाए जाने से पहले भारी मात्रा में सुरक्षा बलों की तैनाती हुई और स्थानीय प्रशासन की तरफ से तमाम तरह की पाबंदिया लगाई हुई हैं और क्षेत्रीय नेताओं प्रशासन ने नजरबंद कर रखा है और उन पर कई तरह की कानूनी कार्रवायी भी हुई है। नेताओं के लिए तो ये राजनीतिक लड़ाई है, लेकिन आम अवाम के लिए?