महात्मा गांधी को याद अक्सर कर ही लिया जाता है। कभी सरकार तो कभी विपक्ष किसी न किसी वजह से महात्मा गांधी को याद करती रहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसमें पीछे नहीं है वो भी कम से कम साल में एक बार तो महात्मा गांधी को याद करते ही हैं। वो दिन होता है 2 अक्टूबर का, जो उनका जन्मदिन होता है। नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत अभियान उन्होंने गांधी के नाम पर ही शुरु किए थे। वैसे तो महात्मा गांधी की इज्जत होनी भी चाहिए चरखे और लाठी से आजादी दिलाने वाले हैं वो, हालांकि कुछ लोग उन पर आरोप लगाते हैं कि वो बंटवारे की वजह थे, मुसलमानों के लिए अलग देश चाहते थे। भगत सिंह की फांसी नहीं रुकवाई वगैरह वगैरह। नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वो बापू का बहुत सम्मान करते हैं और हर साल 2 अक्टूबर के दिन ये लगता भी है, क्योंकि जिस तरह से वो राजघाट जा कर उन्हें याद करते हैं। उसे देख कोई भी ये मान लेगा कि उन्हें बापू से बहुत स्नेह है। लेकिन गोडसे का क्या? बापू के हत्यारे गोडसे पर नरेंद्र मोदी चुप क्यों रहते हैं? क्या नरेंद्र मोदी गोडसे मुर्दाबाद कहेंगे? क्या मोदी कहेंगे की गोडसे की विचारधारा गलत थी?
जी हां ये सवाल विवादित हो सकता है, लेकिन जरूरी है? क्या कभी नरेंद्र मोदी ने ये कहा कि वो गोडसे के खिलाफ है, उन्होंने गोडसे की बुराई नहीं की है। हां उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर से नाराजगी जरूर जताई थी, जब प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि गोडसे सच्चे देशभक्त हैं। लेकिन इससे ज्यादा नरेंद्र मोदी कभी कुछ कहते और करते नजर नहीं आए। कई बार आरएसएस के बड़े नेता गांधी के खिलाफ और गोडसे के पक्ष में बोल चुके हैं, यहां तक की भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी कहा है कि गोडसे आदर्श है, सच्चे देशभक्त है। उस वक्त न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई कार्रवाई की और न कोई बयान दिया। ऐसे में ये सवाल खड़ा होना बेहद लाज्मी है कि गोडसे पर नरेंद्र मोदी चुप क्यों रहते हैं?
गोडसे के पीछे आरएसएस का हाथ?
गोडसे के पीछे आरएसएस का हाथ था या नहीं इस बात पर विवाद हो सकता है, लेकिन, संघ गोडसे की हिंदू राष्ट्र की कल्पना का समर्थन करती है, इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता है। गोडसे जिस बात के सबसे बड़े प्रतीक थे, वो था ऐसा हिंदू राष्ट्र जहां पर अलग धर्म और विचार रखने वालों के प्रति कोई सहनशीलता न रखी जाए और जिस आरएसएस से मोदी-शाह की जोड़ी आती है, वो भी कुछ इसी के लिए जानी जाती है। आज भी हिंदू राष्ट्र की उस कल्पना को साकार करने में आरएसएस पूरी कोशिश करता है। गांधी अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की राजनीति के सामने खड़े थे, वो आजादी की लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कटिबद्ध थे। लेकिन गोडसे को ये मंजूर नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने से भिन्न विचारधारा रखने वाले गांधी से वैचारिक बहस करने की बजाय उनकी हत्या करना ठीक समझा था। ये एक संदेश था बाकी सबके लिए जो 1948 में देश आजाद होने के साथ ही दे दिया गया था।
गोडसे की विचारधारा
कभी नरेंद्र मोदी भी संघ के प्रचारक रहे हैं, वो आज तक संघ परिवार का हिस्सा बने हुए हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में जिस तरह से अलग धर्म मानने वालों जैसे- अल्पसंख्यकों के बीच में दहशत फैलाने का काम किया जा रहा है। जो आपसे अलग विचार रखते हैं या जिनका खाना-पीना आपसे अलग है, उन्हें देशद्रोही बताया जाता है। उन्हें मार दिया जाता है ये गोडसे जैसे विचार रखने वालों की एक सेना है जो आज दोबारा से तैयार हो गई है और एक लंबे वक्त से इसकी तैयारी की जा रही थी। इसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार के साथ संबंध बनता है क्योंकि जब इन हत्या के आरोपियों को जमानत मिलती है और वो जेल से बाहर आते हैं तो बाकायदा केंद्र के मंत्री उनका स्वागत करने के लिए जाते हैं। ये सब गोडसे की हिंदू राष्ट्र की कल्पना का प्रतिबिंब नहीं है तो क्या है? लेकिन गोडसे पर नरेंद्र मोदी चुप क्यों है, वो तो हर बात का जवाद देने वाले नेताओं में से एक हैं।
गोडसे की विचारधारा को मानने वाले लोग कभी महात्मा गांधी और भगत सिंह के पीछे, तो कभी राष्ट्रवाद और देशभक्ति के मुखौटे के पीछे छिप जाते हैं। इसलिए आमतौर पर आम जनता उनकी असलियत को पहचान नहीं पाती है। लेकिन कभी-कभार भाजपा की भोपाल की सांसद और आतंकवाद की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य नेताओं के बयानों से ये मुखौटा थोड़ा-सा हट जाता है। ये अलग बात है कि पार्टी के दबाव में वो अपनी बात पर खेद प्रकट कर दें, मगर उससे असलियत नहीं बदलती है।
गोडसे पर चुप क्यों है नरेंद्र मोदी
अगर नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी की बातों से इतने ही प्रेरित है तो क्या वो खुलकर कह सकते हैं कि गोडसे देशद्रोही था? क्या नरेंद्र मोदी कह सकते हैं कि गोडसे एक हत्यारा है, जिसने एक सोच की हत्या की है। मुझे नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी इस बात को कभी कह पाएंगे, क्योंकि सॉफ्ट हिंदूत्व तो भारतीय जनता पार्टी में भी है और आरएसएस तो है ही। तो वहीं अगर गांधी की विचारधारा लागू हो जाती है तो इसका मतलब है कि भगत सिंह की विचारधारा को नीचा दिखाना, क्योंकि हिंसा के मार्ग पर चलने वाले भगत सिंह का तरीका और अहिंसा वाले गांधी का तरीका बहुत अलग है। भारतीय जनता पार्टी ने युवा के सामने भगत सिंह की विचारधारा का रास्ता रख कर ही सत्ता का पुल तैयार किया था। जिसे अब वो बिलकुल कमजोर नहीं करना चाहेगी। वहीं अगर गांधी के तरीके को नरेंद्र मोदी अपना लेते हैं तो उन्हें मजबूरन ये मानना पड़ेगा कि कांग्रेस सही है और राजनीति में वो ऐसा नहीं कर सकते हैं।
इसलिए कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने खुलेआम कहा है कि अगर नरेंद्र मोदी को गांधी से स्नेह है तो वो खुलकर गोडसे के खिलाफ बोले औऱ वो मोदी का समर्थन करेंगे। नरेंद्र मोदी दोनों तरफ रह कर नहीं चल सकते हैं या तो आप मरने वाले की तरफ होंगे या मारने वाले की। यहां पर आप दोनों पक्षों से नहीं खेल सकते हैं। अगर आप गोडसे के खिलाफ है तो प्रज्ञा ठाकुर जैसे नेताओं के लिए सिर्फ इमोशनल बातें क्यों, उन्हें पार्टी से बाहर क्यों नहीं किया गया था।