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मोदी जी आप भी जान लो कि किस सेक्टर में कितनी आर्थिक मंदी छाई हुई है…

Information Taranjeet 28 August 2019
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले कार्यकाल में एक के बाद एक ऐसे फैसले लिए थे, जिससे अर्थव्यवस्था की कमर अब टूटने लगी है। नरेंद्र मोदी सरकार की गलत नीतियों के चलते आज देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। देश भर में आर्थिक मंदी का संकट छाया हुआ है। देश की सभी छोटी-बड़ी कंपनियों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। सभी उत्पाद की मांग में भारी गिरावट आयी है। प्राइवेट से लेकर सरकारी कम्पनियां तक एक बड़े आर्थिक संकट से जूझ रही हैं।

आर्थिक मंदी से प्रभावित क्षेत्र

ऑटो इंडस्ट्री

आर्थिक मंदी ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को पिछले एक साल से बुरी तरह जकड़ लिया है। टाटा मोटर्स, मारुति सुजुकी और महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियों के शेयरों में लगभग 55% तक की गिरावट आयी है। इसके साथ ही तीन महीने के अंदर लगभग 2 लाख से ज्यादा नौकरियां भी चली गई है।

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के द्वारा आंकड़ों को जारी किया गया है, जिसके मुताबिक जुलाई 2019 में यात्री वाहनों की बिक्री में 30.9% गिरावट दर्ज की गई है। दिसंबर 2000 के बाद से ये सबसे ज्यादा गिरावट है। उस समय करीब 35.22 प्रतिशत की गिरावट आई थी। मौजूदा मंदी में SIAM ने कहा कि कमर्शियल वाहनों की बिक्री 25.7% गिरकर 56,866 इकाई रही। मोटरसाइकिल और स्कूटर की बिक्री 16.8% घटकर लगभग 1.51 मिलियन यूनिट हो गई, जबकि यात्री कार की बिक्री 36% गिरकर 122,956 यूनिट रह गई है।

ऑटोमेटिव कॉम्पोनेन्ट मनुफेक्चर्स एसोसिएशन (ACMA) ने सरकार को चेतावनी दी है अगर ऑटोमोबाइल उद्योग में लंबे समय तक मंदी जारी रही तो लगभग 10 लाख लोगों की नौकरियां जा सकती हैं, इसलिए ACMA ने कहा है कि मांग को प्रोत्साहित करने के लिए जीएसटी को कम करने जैसे कदम तत्काल उठाए जाने चाहिए।

कपड़ा उद्योग

हाल ही में कपड़ा मिलों के संगठनों ने विज्ञापन दिया है जिसमें उन्होंने नौकरियां खत्म होने के बाद फैक्ट्री से बाहर आते लोगों का स्केच बनाया है और इसके नीचे बारीक आकार में लिखा है कि देश की एक-तिहाई धागा मिलें बंद हो चुकी हैं, और जो चल रही हैं उनकी स्थिति ऐसी भी नहीं है कि वे किसानों का कपास खरीद सकें। इसके अलावा अनुमान है कि आने वाली कपास की फसल का कोई खरीदार भी न मिले। अनुमान है कि 80,000 करोड़ रुपये का कपास उगने जा रहे है, जिसकी खरीदारी न होने पर इसका असर किसानों पर भी पड़ेगा।

कपड़ा उद्योग देश में करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोगो को रोजगार देता है। अभी पिछले दिनों टेक्सटाइल एसोसिएशन के अनिल जैन ने बताया कि टेक्सटाइल सेक्टर में 25 से 50 लाख के बीच नौकरियां गई हैं। धागों की फैक्ट्रियों में एक और दो दिन की बंदी होने लगी है, धागों का निर्यात 33 फीसदी कम हो गया है।

फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री

जहां खाने-पीने के सामान फास्ट मूविंग कंजूमर गुड्स (FMCG) की मांग तेजी से बढ़ रहे थी, वहीं अप्रैल-जून तिमाही में वोल्यूम ग्रोथ में गिरावट होने लगी हैं। ज्यादातर मांग में कमी ग्रामीण क्षेत्रों में आयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांग की कमी धन की कम उपलब्धता के कारण हो रही है।

भारत में बिस्किट बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी पारले जी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के हजारों कर्मचारियों की नौकरी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मंदी के चलते कंपनी करीब 10000 कर्मचारियों की हटा सकती है। कंपनी के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया कि ग्रामीण इलाकों में पारले जी बिस्किट की डिमांड घटी है जिसके कारण उत्पादन में भी कमी आई है।

एफएमसीजी की प्रमुख कंपनी हिंदुस्तान लीवर की अप्रैल-जून तिमाही में मात्र 5.5 प्रतिशत की वृद्धि आयी हैं, जबकि पिछले साल ये 12 प्रतिशत थी। डाबर में पिछले साल 21 प्रतिशत वृद्धि के मुकाबले 6 प्रतिशत की ही वृद्धि आयी है। ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज़ ने पिछले साल के समान समय में 12 प्रतिशत के मुकाबले 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।

साथ ही उपभोक्ता सामान से अलग एशियन पेंट्स में पिछले साल अप्रैल-जून की तिमाही की वोल्यूम ग्रोथ 12 फीसदी से घटकर 9 फीसदी रह गयी है।

रियल स्टेट

नेशनल रियल स्टेट डेवलपमेंट काउंसिल के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने द टेलीग्राफ को बताया कि अर्थव्यवस्था खासकर रियल सेक्टर को बढ़ावा देने की जरूरत है, जिससे लंबे समय में जीडीपी को बढ़ाने और रोजगार पैदा करने में मदद मिलेगी। नेशनल रियल स्टेट डेवलपमेंट काउंसिल ने चेतावनी के लहजे में कहा कि रियल स्टेट में तीन लाख नौकरियां गई हैं और अगर साल के अंत तक सुधार नहीं किए गया तो 50 लाख नौकरियां खत्म हो सकती है।

देश में अधूरे और रुके प्रोजेक्ट्स की बढ़ती संख्या के कारण शहर वीरान बनना जारी हैं। एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के आंकड़ों के अनुसार, देश के रियल एस्टेट की सच्चाई की भयावहता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश के शीर्ष सात शहरों में 220 प्रोजेक्ट्स के लगभग 1.74 लाख घरों का निर्माण रुका पड़ा है। एनारॉक की रिपोर्ट के अनुसार, “साल 2013 या इससे भी पहले लॉन्च हुए इन प्रोजेक्ट्स पर कोई निर्माण कार्य नहीं हो रहा है। जिन घरों का निर्माण रुका हुआ है उनकी कुल कीमत लगभग 1,774 अरब की है। इनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट्स या तो पैसों की कमी या कानूनी मामलों के कारण रुके हैं।

लगभग 1.15 लाख घर कुल अधूरे घरों का लगभग 66 प्रतिशत, खरीदारों को पहले ही बेचे जा चुके हैं, जिसके कारण वो मजबूरन मंझधार में अटके हैं। अब वे या तो संबंधित डेवलपर या कानून के रहमो करम पर हैं। इन बेचे गए घरों की कुल कीमत लगभग 1.11 लाख करोड़ रुपये है। आर्थिक मंदी का असर चमड़ा उद्योग और आभूषण की खरीदारी पर भी पड़ा है जिसके कारण इन उद्योगों को भी बहुत बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

साथ ही कहा जा सकता है कि आर्थिक मंदी मांग में आयी कमी के कारण ही हुई है और मांग में कमी आम लोगों के पास पैसे की कमी के कारण और पैसे में कमी सरकार की गलत नीतियों के कारण आयी है। क्योंकि सरकार लगातार सार्वजनिक क्षेत्र में खर्च को कम करती रही है और नए रोजगार का सृजन नहीं हुआ है। सरकार लगातार सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीकरण को बढ़ावा देती रही है। लोगों को जिन सुविधाओं में खासकर शिक्षा, स्वास्थ्य में सरकार से रियायत मिलनी चाहिए थी, जिन क्षेत्रों में बजट खासकर मनरेगा में अधिक बजट होना चाहिए था, लोगों को उचित रोजगार और न्यूनतम वेतन सुनश्चित होना चाहिए था, जिससे उनकी क्रय क्षमता बढ़ती, लेकिन इसके बजाय लोगों को आमदनी से अधिक खर्च करना पड़ा है जिसके कारण उनकी खरीदारी की क्षमता बहुत कम हुई है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.