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मोहम्मद अली जिन्ना ने जब सभी धर्मों के लिए मांगी थी आजादी की गारंटी

Information Anupam Kumari 3 February 2021
मोहम्मद अली जिन्ना ने जब सभी धर्मों के लिए मांगी थी आजादी की गारंटी

भारतीय इतिहास में नेहरू रिपोर्ट बहुत मायने रखती है। नेहरू रिपोर्ट को 1928 में स्वीकार किया गया था। एक राष्ट्रीय सम्मेलन में इसे तब पेश किया गया था। मोहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट पर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम प्रस्तावों का हिंदुओं की तरफ से यह जवाब है।

चिढ़े हुए थे जिन्ना

नेहरू रिपोर्ट को कांग्रेस के एक प्रस्ताव में स्वीकार किया गया था। इस प्रस्ताव से जिन्ना बहुत चिढ़े हुए थे। इसे उन्होंने मुस्लिम संप्रदाय का अपमान बताया था। उन्होंने कह दिया था कि महात्मा गांधी से मुस्लिम संप्रदाय को न्याय नहीं मिलने वाला। कांग्रेस भी उनके संप्रदाय के साथ न्याय नहीं करेगी।

अस्वीकार किया प्रस्ताव

मुस्लिम लीग के गुटों के बीच वे एकता लाना चाहते थे। इस वजह से मार्च 1929 में उन्होंने लीग की एक बैठक बुलाई थी। यह बैठक दिल्ली में हुई थी। इसी बैठक में नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार किया गया था। बैठक में 14 सूत्री मांगें रखी गई थीं।

इन मांगों में एक मांग बहुत ही महत्वपूर्ण थी। सभी धार्मिक संप्रदायों को पूरी धार्मिक आजादी की गारंटी से जुड़ी यह मांग थी। पूजा, आचरण और प्रचार-प्रसार पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाने की यह मांग थी।

मोहम्मद अली जिन्ना ने जो मांग रखी थी, उनमें से पहली मांग भारतीय संविधान के संघात्मक होने की थी। जिन्ना का कहना था कि अवशिष्ट अधिकारों पर प्रांतों का अधिकार होना चाहिए। उनकी मांग थी कि स्वायत्त शासन बहुत ही जरूरी है। हर प्रांत में यह एक समान रूप से होना चाहिए। इसकी स्थापना पर उन्होंने बल दिया था।

फिर से विधानमंडलों का गठन

जिन्ना की मांग विधानमंडलों के फिर से गठन की थी। यही नहीं, वे मांग कर रहे थे कि निर्वाचित निकायों का नए सिरे से गठन हो। यही नहीं, अल्पसंख्यक जातियों के लिए वे पर्याप्त प्रतिनिधित्व मांग रहे थे। उनका कहना था कि इन्हें ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में उनके कल्याण के लिए योजनाएं नहीं बन पा रही हैं।

न घटे, न बराबरी हो

जिन्ना चाहते थे कि बहुसंख्यक लोगों का बहुमत प्रांतीय विधानमंडलों में रहे। इसे वे घटाने के पक्ष में नहीं थे। बराबरी पर भी वे इसे नहीं लाना चाहते थे। मुसलमानों का एक तिहाई प्रतिनिधित्व वे केंद्रीय विधानमंडल में चाह रहे थे। अपनी इस मांग पर वे काफी बल दे रहे थे।

पृथक निर्वाचन पद्धति

पृथक निर्वाचन पद्धति के आधार पर जिन्ना सभी संप्रदायों का प्रतिनिधित्व चाहते थे। उनका कहना था कि संयुक्त निर्वाचन पद्धति को किसी संप्रदाय को अपनाने की आजादी होनी चाहिए। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, बंगाल और पंजाब में वे क्षेत्रीय पुनर्गठन चाह रहे थे। वे चाहते थे कि यह इस तरीके से हो कि मुसलमान यहां अल्पसंख्यक नहीं रहें। सभी धर्मों के लिए जिन्ना पूरी स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे।

प्रचार-प्रसार पर न हो प्रतिबंध

मोहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि सभी धर्मों के लोगों को पूजा का पूरा अधिकार होना चाहिए। उन्हें आचरण करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। प्रचार-प्रसार पर भी किसी तरह का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। विधानमंडलों में विधेयक को लेकर भी उन्होंने मांग रखी थी। संप्रदाय विशेष के लिए हानिकारक विधेयक पेश किए जाने के पक्ष में जिन्ना नहीं थे। उनका कहना था कि इसका निर्णय बहुमत के तौर पर होना चाहिए। किसी धर्म के तीन चौथाई सदस्य विधेयक को लेकर असहमति जता दें, तो उसे पेश नहीं किया जाना चाहिए।

जिन्ना मांग कर रहे थे कि सिंध को बम्बई प्रांत से अलग कर दिया जाए। सिंध के लिए वे स्वतंत्र प्रांत का दर्जा मांग रहे थे। साथ ही उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में वे संवैधानिक सुधार शुरू करने के पक्ष में थे। बलूचिस्तान में भी वे इसी तरह का संवैधानिक सुधार चाह रहे थे।

मुसलमानों के लिए वे अवसर

कुशलता के आधार पर मुसलमानों के लिए जिन्ना अवसरों की मांग कर रहे थे। सरकारी संस्थाओं में वे इनके लिए अवसर चाहते थे। स्वायत्तशासी निकायों में भी वे इनके लिए नौकरी के उचित अवसर चाहते थे। मुसलमानों के धर्म की समुचित व्यवस्था वे भावी संविधान में चाह रहे थे। मुसलमानों की भाषा, उनकी शिक्षा और उनकी संस्कृति के लेकर भी ऐसी ही व्यवस्था की उनकी मांग थी।

मंत्रिमंडल में एक तिहाई प्रतिनिधित्व

यही नहीं, मुसलमानों के लिए जिन्ना केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक-तिहाई प्रतिनिधित्व मांग रहे थे। प्रांतीय मंत्रिमंडल के लिए भी उनकी यही मांग थी। वे कह रहे थे कि संविधान में संशोधन को लेकर केंद्रीय सभा का एक प्रावधान होना चाहिए।भारतीय संघ के घटक राज्यों से इसके लिए स्वीकृति पहले मिलनी चाहिए।

जिन्ना की मांगों से सर्वदलीय मुस्लिम कांग्रेस सहमत नहीं थी। शफी गुट भी इससे असहमत था। बैठक में खूब हंगामा हो गया था। आखिरकार बैठक को स्थगित कर दिया गया था।

Anupam Kumari

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