भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है। सुदामा भगवान कृष्ण के बड़े ही घनिष्ठ मित्र थे। फिर भी सुदामा बहुत ही गरीब थे। कृष्ण और सुदामा की कहानी हमने कई बार पढ़ी है। हम में से अधिकतर लोग जानते हैं कि कृष्ण ने किस तरह से सुदामा की मदद की थी।
सुदामा इतने गरीब हो गए थे, लेकिन वे अपनी गरीबी कृष्ण से छुपा कर रखते थे। वे कृष्ण से मिलने भी गए थे, तो वे उन्हें अपनी गरीबी के बारे में नहीं बताना चाह रहे थे। फिर भी भगवान कृष्ण ने सब जान लिया था। उन्होंने सुदामा की मदद की थी। अंत में सुदामा भगवान कृष्ण की मदद से संपन्न हुए थे।
सुदामा आखिर गरीब क्यों थे? यह एक बड़ा सवाल है, जो हमारे जेहन में आ जाता है। भगवान के दोस्त होने के बाद भी उनका जीवन गरीबी का शिकार था। इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है। दरअसल कहानी एक गरीब बुढ़िया से संबंधित है।
यह बुढ़िया बहुत ही गरीब थी। किसी तरीके से वह अपना भोजन जमा करती थी। जैसे-तैसे उसकी जिंदगी गुजर रही थी। वह भीख मांगने के लिए जाती थी। भीख में जो मिलता था, उसी से उसका गुजारा होता था। एक बार कई दिनों तक वह भीख मांगते-मांगते थक गई। भीख में उसे कुछ भी नहीं मिल रहा था।
बुढ़िया के पास कोई चारा नहीं बचा था। वह सिर्फ पानी पी रही थी। भगवान का स्मरण वह करती थी। हर रात वह पानी पीकर सो जाती थी। कई दिन इस तरह से गुजर गए। कई दिनों के बाद आखिरकार बुढ़िया को भीख मिली। इस बार भीख में उसे कुछ चने मिले थे। बुढ़िया खुश हुई कि चलो आखिरकार कुछ तो खाने को मिला है।
बुढ़िया चने लेकर अपनी झोपड़ी में आ गई। तब तक रात भी हो गई थी। बुढ़िया ने सोचा कि अब क्या खाना। अगले दिन इसे खाया जाएगा। उससे पहले भगवान को इसे भोग लगा दूंगी। यह सोचकर बुढ़िया ने चने को पोटली में बांध दिया। अपनी झोपड़ी में उसने पोटली रख दी। एक बार फिर से उसने हर दिन की तरह पानी पिया। इसके बाद भगवान का स्मरण करके वह सो गई।
रात में कुछ चोर बुढ़िया की झोपड़ी में पहुंच गए चोर ढूंढ रहे थे, लेकिन उन्हें कुछ मिल नहीं रहा था। तभी चोरों को पोटली दिख गई। यह वही चने वाली पोटली थी। चोरों को लगा कि इसमें सोने के सिक्के या हीरे-जवाहरात होंगे। चोर बुढ़िया की पोटली पर हाथ साफ कर गए।
बुढ़िया को आभास हो गया कि चोर आ गए हैं। बुढ़िया ने हल्ला मचा दिया। उसकी आवाज सुनकर लोग दौड़े-दौड़े आ गए। जैसे-तैसे वे भागे। उन्हें संदीपन मुनि (Sandeepan Muni)का आश्रम दिखा। चोर इसी में घुस गए। यहां वे छिपे हुए थे। गुरुमाता को एहसास हो गया कि कोई आया है। वे चोरों की तरफ बढ़ने लगीं। चोर तुरंत वहां से भागने लगे।
भागने में चने की पोटली उन्होंने वहीं छोड़ दी। उस समय भगवान कृष्ण और सुदामा संदीपन मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। गुरुमाता के हाथ चोरों की पोटली लग गई। उन्होंने देखा कि इसमें चने हैं। अगले दिन कृष्ण और सुदामा जंगल जा रहे थे। उन्हें लकड़ी काटनी थी। गुरुमाता ने चने की पोटली उन्हें दे दी। उन्होंने सुदामा को कह दिया कि जब भूख लगे तो आधा-आधा दोनों खा लेना।
सुदामा बहुत ही विद्वान ब्राह्मण थे। उन्होंने चने की पोटली हाथ में ली। उन्हें सब पता चल गया कि चने की पोटली के पीछे की क्या कहानी है। दरअसल, दूसरी तरफ बुढ़िया ने चोरों को श्राप दे दिया था। बुढ़िया का श्राप था कि जो भी चने को खाएगा, वह एकदम गरीब हो जाएगा। उसी की तरह उसे भी कई दिनों तक खाना नहीं मिलेगा।
सुदामा नहीं चाहते थे कि कृष्ण भी गरीब हो जाएं। कृष्ण के गरीब होने का मतलब तीनों लोगों का गरीब होना था। इसलिए सुदामा ने अपनी दोस्ती निभाई। चने उन्होंने अकेले ही खा लिए। कृष्ण को उन्होंने चना खाने को नहीं दिया। इस तरह से सुदामा ने कृष्ण के प्रति अपनी सच्ची दोस्ती दिखाई।
अब कृष्ण तो भगवान थे। बाद में उन्होंने भी अपनी लीला दिखाई। उन्होंने भी दोस्ती निभाई। सुदामा की गरीबी उन्होंने बाद में दूर कर दी थी।