इन्फोसिस भारत की शीर्ष आईटी कंपनी है। दुनियाभर में इसका नाम है। लाखों की तादाद में कर्मचारी यहां काम करते हैं। इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति हैं। नारायण मूर्ति की पत्नी का नाम सुधा मूर्ति है। अरबों की संपत्ति इनके पास है। फिर भी सुधा मूर्ति प्रेरणा की मूर्ति बनी हुई हैं। उनकी सादगी देखने लायक है। उनका त्याग प्रशंसनीय है।
बन चुकी हैं मिसाल
सुधा मूर्ति लेखिका भी हैं। अपने काम की वजह से वे मिसाल बनी हुई हैं। समाजसेवा से उनका अटूट नाता है। बड़ी सादगी से हर काम को वे अंजाम देती हैं। सुधा मूर्ति इन दिनों सोशल मीडिया में बड़ी चर्चा में भी हैं। फिर से वजह उनका सेवाभाव है। वजह उनकी तत्परता है, जो वे समाज के लिए दिखाती हैं। वजह वह भाव है, जो वे समाज के वंचित वर्गों के प्रति रखती हैं। वजह अपने कर्मों के प्रति उनकी सजगता है, जिसका वे पूरा ख्याल रखती हैं।
सोशल मीडिया में सुधा मूर्ति की एक फोटो वायरल हुई है। उनके सामने सब्जियों का ढेर रखा हुआ नजर आ रहा है। तस्वीर को देखकर प्रतीत होता है कि सुधा जी सब्जियां बेच रही हैं। फोटो के साथ यही लिखकर वायरल भी हो रहा है। हालांकि, सुधा जी सब्जियां नहीं बेच रही हैं। फिर भी वे जो कर रही हैं, वे किसी प्रेरणा से तो कम नहीं ही हैं।
घमंड नाम मात्र का भी नहीं
सुधा मूर्ति अरबों की मालकिन हैं। ऐसे में उनकी सोच है कि इसकी वजह से उन्हें घमंड न हो जाए। इस घमंड से वे खुद को बचाना चाहती हैं। यही कारण है कि हर साल वे बेंगलुरु के जयनगर स्थित राघवेंद्र स्वामी मंदिर पहुंचती हैं। यहां हर साल राघवेंद्र आराधना उत्सव का आयोजन होता है। इसी मंदिर में तीन दिनों तक सुधा मूर्ति कारसेवा देती हैं। वे खुद बैठकर सब्जियां छांटती हैं। इन सब्जियों को वे काटती हैं। सब्जियों को वे धोती भी हैं। इसके अलावा और भी कई काम वे यहां करती हैं।
सुधा मूर्ति 2500 करोड़ की संपत्ति की मालकिन है। फिर भी जमीन से उनका जुड़ाव देखने लायक है। राघवेंद्र स्वामी मठ में सब्जियां काटने में उन्हें जरा भी हिचक महसूस नहीं होती। यहां तक वे बर्तन भी साफ करती हैं।
वर्ष 2016 की तस्वीर
सादा जीवन, उच्च विचार। यह कहावत सुधा मूर्ति पर पूरी तरह से चरितार्थ होती है। सोशल मीडिया में वायरल हो रही तस्वीर वर्ष 2016 की है। गूगल रिवर्स इमेज सर्च से इसकी पुष्टि होती है। राघवेंद्र स्वामी मंदिर में सुधा मूर्ति सुबह से ही भोजनालय का जिम्मा एक सहयोगी के साथ संभाल लेती हैं। सुबह चार बजे वे उठती हैं। इसके बाद वे भोजनालय पहुंच जाती हैं। भोजनालय की वे सफाई करती हैं। फिर इसके बगल वाले कमरों की भी वे सफाई करती हैं।
सुधा मूर्ति सब्जियों और चावल की बोरियों को मंदिर के स्टोर रूम में रखवाने में भी हाथ बंटाती हैं। सवाल उठता है कि आखिर सुधा जी ऐसा क्यों करती हैं? वे तो अरबों की मालकिन हैं, फिर भी ये सब क्यों? इसका जवाब सुधा जी ने खुद वर्ष 2013 में दिया था।
क्यों करती हैं सुधा मूर्ति ये काम?
सुधा मूर्ति ने कहा था कि पैसे तो आप बहुत ही आसानी से दे सकते हैं। आपके पैसे हैं तो यह काम बहुत ही सरल है। कठिन तो शारीरिक सेवा होती है। इसलिए यह भी बहुत जरूरी है। मंदिर के प्रबंधक सुधा जी की सेवा के बारे में बता चुके हैं। उनके मुताबिक हर साल तीन दिन सुधा जी स्टोर मैनेजर की भूमिका संभालती हैं।
समाज में योगदान
जितना विद्या हासिल करने के बाद विनम्रता जरूरी है, उतना ही धन प्राप्ति के बाद भी। इसी विनम्रता को बनाये रखने के लिए सुधा जी ऐसा करती हैं। परोपकार से तो उनका पुराना रिश्ता है। सुधा जी ने लगभग तीन हजार सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास में अहम भूमिका निभाई है। बीते 18 से वे इस काम में जुटी हैं। यही नहीं, बेंगलुरु में तो उन्होंने सार्वजनिक शौचालयों का भी निर्माण बड़ी संख्या में करवाया है।
इंफोसिस को खड़ा करने में योगदान
आईटी सेक्टर में इंफोसिस आज जिस मुकाम पर है, उसमें बड़ा योगदान सुधा मूर्ति का भी है। सुधा जी ने अपने पति नारायण मूर्ति का हर कदम पर साथ दिया। कंपनी को खड़ा करने के लिए उन्होंने बड़ा त्याग किया। नारायण मूर्ति के साथ उन्होंने भी खूब मेहनत की। सुधा जी को अधिकतर भारतीय भाषाओं की जानकारी है। इन भाषाओं में वे अब तक 92 किताबें भी लिख चुकी हैं। वाकई, सुधा जी का जीवन हर किसी के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं।