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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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काशी इतिहास है.. मोदी जी यहाँ इतिहास रचिये

Politics Tadka Taaza Tadka 24 February 2019
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माँ गंगा ने ही क्यों …यहाँ तो बुलाने वाले इतने हैं कि गिनना मुश्किल है। सोचता ही जा रहा हूँ …. सोचता ही जा रहा हूँ .. और हज़ारों साल का टाइम इलैप्स हो रहा है। ब्रह्मा यहीं आकर रुके और कहा कि शिव का घाट पर स्वागत करना है। पर शिव को काशी के घाट पर उतार लाना कहाँ आसान था ? सो ब्रह्मा ने दस अश्वमेधों का यज्ञ कर दिया। दस अश्वमेधों का महायज्ञ …. दशाश्वमेध यज्ञ …और फिर आगे चलकर गंगा किनारे इस घाट का नाम पड़ा दशाश्वमेध घाट !

सोचिये आप ब्रह्मा के उसी घाट पर एक एक सीढ़ी उतर रहे हैं और शिव के ध्यान में हैं। टाइम इलैप्स होकर फिर बुद्ध पर रुक गया और फिर गुरु नानक पर। दोनों ही धर्मो के बीज यहीं अंकुरित हुए। शिवरात्रि मनाने पहुंचे नानक को ध्यान में खालसा का मंत्र मिला। रविदास, कबीर, तुलसी जैसे कई गंगा के स्पर्श से तेजस्वी बने। महानायकों की ये अमर यात्रा वाराणसी में कहीं विराम नहीं लेती। वो कबीर चौरा है।

और भीतर गली में गोपी कृष्ण हैं, थोड़ी दूर पर किशन महाराज। थोड़ा और चलें तो सितारा देवी, सिध्देष्वरी देवी …बिरजू, राजन साजन। संस्कृति की दूरियां इंच टेप से नहीं नापी जाती …इसलिए कितने फर्लांग पर कौन मिलेगा नहीं बता सकता … पर जानता हूँ , कुछ ही दूर पर सितार वादक रवि शंकर का घर है और पास में बिस्मिल्लाह खान, छन्नू लाल मिश्रा का।

काशी में बड़े नाम सोचते जाइये …और ईंट पत्थर की टूटती ढहती दीवारें आपको टाइम इलैप्स की अनुभूति कराती जाएँगी। भारतेन्दु हरिशचंद, मुंशी प्रेम चंद या फिर छायावाद की कभी न खत्म होने वाली छाया, जय शंकर प्रसाद। हर हस्ताक्षर इतना बड़ा कि आज के समूचे वर्तमान को अपने में अकेले समेट ले। मुझे नहीं लगता कि हज़ारों हज़ार बरस की इस महायात्रा में संसार में कोई और शहर हो जिसकी तुलना काशी से की जा सके। फिर भी मोदी ने की। उन्होंने क्योटो से इसको जोड़ा।

सच कहूं तो काशी की सांस्कृतिक भव्यता देख, क्योटो क्या पूरा जापान, इस नाम के आगे कहीं नहीं ठहरता है।

सच तो ये है कि बुद्ध की दीक्षा से प्रभावित होकर जापान के राजा कानमु ने कोई हज़ार साल पहले क्योटो को बसाया था।

वही बुद्ध जिन्होंने ने काशी से पहला पाँव आगे बढ़ाया था। यही अंतर है काशी और क्योटो में। काशी अगर संस्कृति का बरगद है तो क्योटो बोन्साई ! बहरहाल अगर क्योटो को काशी के बराबर खड़ा भी कर दें तो मोदी क्योटो के इंफ्रास्ट्रक्चर के दस फीसदी को भी पिछले पांच साल में यहां नहीं उतार सके। सिर्फ फ्लाईओवर, सड़क, प्राइमरी अस्पताल या काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तार या घाट की मरम्मत से काशी का काया कल्प नहीं हो सकता है। निसंदेह, आधुनिक भारत का प्रधानमंत्री आज से 6-7 सदियों पहले के शासकों से कहीं ज्यादा सर्वशक्तिमन है।

पर जितने भव्य मंदिर यहाँ अकबर ने बनवाये या जितने घाट और विहार होल्कर, सिंधिया, भोंसले या पेशवा राजाओं ने बनवाये उसका 10 फीसदी भी मोदी …माँ गंगा के चरणों में अर्पित नहीं कर सकें हैं।

उनसे बेहतर तो झोला लेकर नगर डगर चंदा मांगने वाले मदन मोहन मोलवीय रहे जिन्होंने एशिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी की स्थापना 100 साल पहले ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध के बावजूद कर दी थी।

बहरहाल समय कथनी का नहीं करनी का है।

इसलिए काशी के उद्धार के लिए हमे मोदी से अपेक्षा रहेगी। क्यों न रहे …चुनाव वो लड़े, वायदे उन्होंने किये और प्रधान मंत्री वो बने। हमारा तो उनसे यही आग्रह है वो फिर यहाँ से चुनाव लड़ें …और जीतें।

पर इस बार अकबर और पेशवा, सिंदिया या भोंसले, गुप्त या बुद्ध या फिर हिन्दू फ़क़ीर पंडित मदन मोहन मालवीय से कुछ आगे बढ़कर करके दिखाएँ। काशी इतिहास है.. मोदी जी यहाँ इतिहास रचिये ..