आदमी थोड़ा शहर में रह ले तो दही को योगर्ट बोलने लगता है. वैसे ही जैसे मैं अपने छोटे भाई-बहन को ‘unpaid naukar’ न बोलकर सिब्लिंग्स बोलता हूँ. यू नो जस्ट फीलिंग लाइक रिच. बस वैसे ही हमारी सरकार भी है. आए दिन की बेचा-बाची से तंग आकर सरकार ने इसका नाम बदल दिया है. अब किसी को बेचा नहीं जाता उसे National Monetisation Pipeline योजना के अंतर्गत लाया जाता है. यानी उसे मोनेटाइज कर दिया। बेचना अब पुराना फैशन हो गया है. मोनेटाइज कहना शुरू कीजिए थोड़ा कूल लगेगा।
ये नाम ‘कूलत्व’ की प्राप्ति करवाता है-
देखिए न कितनी आसानी से सरकार ने आपको कूल बनने का मौका दिया है. पहले आप कहते थे कि या mumbai airport को सरकार ने बेच दिया तो बहुत अजीब लगता था. लगता था कि आप अनपढ़ गंवार हैं. इसलिए सरकार ने आपको आसानी से कूल बनने का मौका दिया और National Monetisation Pipeline योजना की शुरू की. अब आप कहिए की सरकार ने 440 railway stations को National Monetisation Pipeline योजना के तहत मोनेटाइज कर दिया। अब आप कूल लगेंगे। एकदम चिल, साउथ दिल्ली वाली भाषा बोलते हुए एकदम शहरी बाबू। जैसे आजकल मेरा दोस्त कूल दिखने के लिए ये नहीं कहता है कि ‘दिमाग का दही हो गया है” बल्कि वो कहता है की भाई “i am too frustrated’. ठीक वैसे ही अब आपको बोलना है की मोनेटाइज कर दिया।
अलग-अलग बेचने में दिक्कत होती थी-
दरअसल सरकार को अलग-अलग चीजें बेचने में समस्या होती थी. अब जब सबकुछ बेचना है तो इतनी सारी चीजों को अलग-अलग बेचन थोड़ा मुश्किल काम हो जाता है. ऐसे में एक योजना लाई गई National Monetisation Pipeline और इसके तहत एकसाथ सबको बेचने का काम शुरू कर दिया गया है. ये वैसे ही है जैसे डॉक्टर आपको खून बढ़ाने की सीरप देता है और आप रोज एक-एक ढक्कन पीते हैं. आपको लगता है क्या रोजाना एक-एक ढक्कन पीना। जब पीना मुझे ही है, खत्म मुझे ही करनी है तो एकबार में सारी पी जाता हूँ. उसके बाद आपके शरीर की दुर्गति शुरू हो जाती है वो अलग बात है. ऐसे ही सरकार भी देश की सम्पत्तियों को अलग-अलग न बेचकर एकसाथ बेचने की स्कीम बनाई है National Monetisation Pipeline. और अब बिक्री शुरू। दे दनादन।
अब सरकार भी क्या करे, कूल भी दिखना है और चीजें भी बेचनी हैं इसलिए ऐसा करना पड़ता है. ठीक है अब मैं भी जाता हूँ फेटी हुई कॉफ़ी पिऊंगा। ओह सॉरी ‘फेटी हुई कॉफ़ी’ is so middle class ‘ डालगोना बोलो भाई डालगोना।